आपातकाल की काली रात याद कर आज भी सिहर उठते हैं लोग, इंदिरा गांधी को मिला था बड़ा सबक

Edited By Seema Sharma,Updated: 25 Jun, 2018 11:47 AM

emergency was imposed on midnight on 25th june 1975

25 जून, 1975 की आधी रात को आपातकाल की घोषणा की गई थी जिसे भारतीय राजनीति के इतिहास का काला अध्याय कहा जाता है। लोग आज भी उस दौर को याद करते हैं तो सिहर जाते हैं। तब देश को एक प्रकार से जेलखाने में तब्दील कर दिया गया था।

नेशनल डेस्कः 25 जून, 1975 की आधी रात को आपातकाल की घोषणा की गई थी जिसे भारतीय राजनीति के इतिहास का काला अध्याय कहा जाता है। लोग आज भी उस दौर को याद करते हैं तो सिहर जाते हैं। तब देश को एक प्रकार से जेलखाने में तब्दील कर दिया गया था। यह 25 जून 1975 से लेकर 21 मार्च 1977 तक रहा था। इस दौरान जयप्रकाश नारायण सहित मोरारजी देसाई, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और जॉर्ज फर्नांडीस समेत विपक्ष के हजारों नेताओं और कार्यकर्त्ताओं को जेलों में बंद कर दिया गया था।
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क्यों लगाया गया था आपातकाल
इस दौर से गुजरे लोग बताते हैं कि आपातकाल का विरोध करने वालों को पुलिस ने ब्रिटिश हुकूमत के दौरान किए गए अत्याचारों की याद दिला दी थी। इसे 25 जून 1975 को लगाया गया था। 25 जून की रात को आपातकाल के आदेश पर तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के दस्तखत के साथ देश में आपातकाल लागू हो गया। अगली सुबह 26 जून को समूचे देश ने रेडियो पर इंदिरा गांधी की आवाज में संदेश सुना कि भाइयों और बहनों, राष्ट्रपति जी ने आपातकाल की घोषणा की है लेकिन इससे सामान्य लोगों को डरने की जरूरत नहीं है। दिल्ली के रामलीला मैदान में हुई 25 जून की रैली की खबर पूरे देश में न फैल सके इसके लिए दिल्ली के बहादुर शाह जफर मार्ग पर स्थित अखबारों के दफ्तरों की बिजली रात में ही काट दी गई। रात को ही इंदिरा गांधी के विशेष सहायक आर.के. धवन के कमरे में बैठ कर संजय गांधी और ओम मेहता उन लोगों की लिस्ट बना रहे थे जिन्हें गिरफ्तार किया जाना था।
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दरअसल 1971 में हुए लोकसभा चुनाव में इंदिरा ने अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी राजनारायण को पराजित किया था। लेकिन चुनाव परिणाम आने के चार साल बाद राज नारायण ने हाईकोर्ट में चुनाव परिणाम को चुनौती दी। 12 जून, 1975 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जगमोहन लाल सिन्हा ने इंदिरा गांधी का चुनाव निरस्त कर उन पर छह साल तक चुनाव न लड़ने का प्रतिबंध लगा दिया और उनके मुकाबले हारे और इंदिरा के चिरप्रतिद्वंद्वी राजनारायण सिंह को चुनाव में विजयी घोषित कर दिया था। राजनारायण सिंह की दलील थी कि इंदिरा ने चुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग किया, तय सीमा से अधिक पैसा खर्च किया और मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए गलत तरीकों का इस्तेमाल किया। अदालत ने इन आरोपों को सही ठहराया था। इसके बावजूद इंदिरा ने इस्तीफा देने से इनकार कर दिया। तब कांग्रेस पार्टी ने भी बयान जारी कर कहा था कि इंदिरा का नेतृत्व पार्टी के लिए अपरिहार्य है।इसी दिन गुजरात में चिमनभाई पटेल के विरुद्ध विपक्षी जनता मोर्चे को भारी विजय मिली। इस दोहरी चोट से इंदिरा बौखला गईं। इंदिरा ने अदालत के इस निर्णय को मानने से इनकार करते हुए सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने की घोषणा की और 26 जून को आपातकाल लागू करने की घोषणा कर दी गई।
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सरकार के पास असीमित अधिकार
आपातकाल के दौरान कांग्रेस ने आम जन की आवाज कुचलने की पूरी कोशिश की।  धारा-352 लगा दी गई जिसके तहत सरकार को असीमित अधिकार मिल गए। इस धारा के मुताबिक इंदिरा जब तक चाहें सत्ता में रह सकती थीं। लोकसभा-विधानसभा के लिए चुनाव की जरूरत नहीं थी। मीडिया और अखबार आजाद नहीं थे। सरकार कैसा भी कानून पास करा सकती थी।

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इंदिरा को मिला बड़ा सबक
इमरजेंसी के बहुत बाद एक साक्षात्कार में इंदिरा ने कहा था कि उन्हें लगता था कि भारत को शॉक ट्रीटमेंट की जरूरत है लेकिन, इस शॉक ट्रीटमेंट की योजना 25 जून की रैली से छह महीने पहले ही बन चुकी थी। 8 जनवरी 1975 को सिद्धार्थ शंकर रे ने इंदिरा को एक चिट्ठी में आपातकाल की पूरी योजना भेजी थी। चिट्ठी के मुताबिक ये योजना तत्कालीन कानून मंत्री एच.आर. गोखले, कांग्रेस अध्यक्ष देवकांत बरुआ और बांबे कांग्रेस के अध्यक्ष रजनी पटेल के साथ उनकी बैठक में बनी थी। आपातकाल के जरिए इंदिरा जिस विरोध को शांत करना चाहती थीं, उसी ने 19 महीने में देश का बेड़ागर्क कर दिया। संजय गांधी और उनकी तिकड़ी से लेकर सुरक्षा बल और नौकरशाही सभी निरंकुश हो चुके थे। एक बार इंदिरा गांधी ने कहा था कि आपातकाल लगने पर विरोध में कुत्ते भी नहीं भौंके थे, लेकिन 19 महीने में उन्हें गलती और लोगों के गुस्से का एहसास हो गया। 18 जनवरी 1977 को उन्होंने अचानक ही मार्च में लोकसभा चुनाव कराने का ऐलान कर दिया। 16 मार्च को हुए चुनाव में इंदिरा और संजय दोनों ही हार गए। 21 मार्च को आपातकाल खत्म हो गया लेकिन अपने पीछे लोकतंत्र का सबसे बड़ा सबक छोड़ गया।
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इंदिरा ने आकाशवाणी को बनाया प्रचार तंत्र
आपातकाल में इंदिरा ऑल इंडिया रेडियो यानी आकाशवाणी का अपनी प्रचार मशीन के रूप में अधिक से अधिक इस्तेमाल कर रही थीं। कांग्रेस के द्वारा यह सत्ता का दुरुपयोग ही था जब इंदिरा ने गुजरात के पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री बाबूभाई पटेल को, 15 अगस्त के अवसर पर ऑल इंडिया रेडियो में प्रसारित होने जा रहे उनके संभावित भाषण को सेंसर करने के लिए कहा था। उन दिनों मुख्यमंत्री ऑल इंडिया रेडियो के माध्यम से 15 अगस्त को अपने राज्यों के लिए संदेश भेजते थे।

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