ईयू राजदूत ने कश्मीर के हालात पर जताई चिंता, कहा- सामान्य स्थिति बहाल होना अहम

Edited By Yaspal,Updated: 10 Dec, 2019 08:58 PM

eu ambassador expressed concern over the situation in kashmir

यूरोपीय संघ ने मंगलवार को कहा कि वह कश्मीर में लोगों की “मौलिक स्वतंत्रता” पर लगे प्रतिबंधों को लेकर चिंतित हैं और उसने घाटी में स्थिति को सामान्य बनाने के लिए संचार माध्यमों और जरूरी सेवाओं को बहाल करने जैसे कदम उठाने की अपील की। भारत में...

नई दिल्लीः यूरोपीय संघ ने मंगलवार को कहा कि वह कश्मीर में लोगों की “मौलिक स्वतंत्रता” पर लगे प्रतिबंधों को लेकर चिंतित हैं और उसने घाटी में स्थिति को सामान्य बनाने के लिए संचार माध्यमों और जरूरी सेवाओं को बहाल करने जैसे कदम उठाने की अपील की। भारत में यूरोपीय संघ के राजदूत उगो अस्तुतो ने कहा कि पाकिस्तान को आतंकवादियों और आतंकी संगठनों के खिलाफ कदम जरूर उठाने चाहिए और साथ ही कहा कि देश में आतंकवाद को रोकने के लिए आतंकवाद रोधी संस्था वित्तीय कार्रवाई कार्यबल (एफएटीएफ) द्वारा सुझाए गए कदमों का उसे अनुपालन करना चाहिए।

अस्तुतो ने मीडिया से कहा कि यूरोपीय संघ भारत और पाकिस्तान के बीच के मुद्दों को बातचीत के जरिए सुलझाए जाने का पक्षधर है। कश्मीर पर उन्होंने कहा कि यूरोपीय संघ भारत की सुरक्षा चिंताओं को समझता है लेकिन साथ ही जोर दिया कि घाटी में सामान्य स्थिति बहाल करने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए। उन्होंने कहा कि मामले में संघ के दृष्टिकोण में अगस्त से कोई बदलाव नहीं आया है। गौरतलब है कि अगस्त में, भारत ने जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा वापस लेने और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने की घोषणा की थी। पाकिस्तान ने इस कदम पर कड़ी प्रतिक्रिया दी थी और भारत के साथ अपने कूटनीतिक संबंधों को घटा लिया था। इसके अलावा उसने इस फैसले पर भारत के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय समर्थन जुटाने की भी कोशिश की थी।

सरकार स्थिति सामान्य करने के लिए कदम उठाए
अस्तुतो ने कहा, “हमने जमीनी हकीकत को लेकर अपनी चिंताओं को जाहिर किया था, खास कर मौलिक स्वतंत्रता पर लगे प्रतिबंधों को लेकर। यह जरूरी है कि आवाजाही की स्वतंत्रता और संचार के माध्यमों के साथ-साथ आवश्यक सेवाओं को बहाल किया जाए।” उन्होंने कहा, “हम चाहते हैं कि सरकार क्षेत्र में सामान्य स्थिति बहाल करने के लिए कदम उठाए....हम भारत की सुरक्षा संबंधी चिंताओं को समझते हैं। हमारे रुख में कोई बदलाव नहीं आया है।” जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन के फैसले के बाद से, वहां इंटरनेट और मोबाइल फोन नेटवर्क तथा लैंडलाइन नेटवर्क बंद कर दिया गया था जबकि प्रमुख नेताओं को नजरबंद रखा गया। घाटी का बड़ा हिस्सा अब भी प्रतिबंधों की मार झेल रहा है।

अस्तुतो ने कहा कि कश्मीर मुद्दे पर भारत और यूरोपीय संघ के बीच संपर्क होता रहा है। “हमने कई मौकों पर विदेश मंत्री से बात की है।” यूरोपीय संसद के सदस्यों के एक समूह के अक्टूबर में किए गए कश्मीर दौरे पर उन्होंने कहा कि यह आधिकारिक यात्रा नहीं थी। राजदूत ने कहा, “यूरोपीय संसद के सदस्य व्यक्तिगत क्षमता में भारत आए थे। यह आधिकारिक यात्रा नहीं थी...वह यात्रा यूरोपीय संघ के नीतिगत फैसलों की अभिव्यक्ति नहीं थी।”

विदेशी प्रतिनिधिमंडल के पहले दौरे में, यूरोपीय संसद के 23 सदस्यों के एक समूह ने कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने के बाद वहां की स्थिति का आंखो-देखा हाल जानने के लिए दो दिन का दौरा किया था। विपक्षी दलों ने सरकार के इस कदम की तीखी आलोचना की थी। कांग्रेस ने इसे “सबसे बड़ी कूटनीतिक चूक” बताया था। वहीं अन्य ने केंद्र से पूछा था कि इन विदेशी सांसदों को घाटी का दौरा कैसे करने दिया गया जबकि भारतीय नेताओं को इसकी अनुमति नहीं दी गई।

 

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