Edited By Tanuja,Updated: 07 Sep, 2020 01:01 PM
भारत-चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर यूरोपीय थिंक टैंक ने नया खुलासा किया है। यूरोपियन फाउंडेशन फॉर साउथ एशियन ...
इंटरनेशनल डेस्कः भारत-चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर यूरोपीय थिंक टैंक ने नया खुलासा किया है। यूरोपियन फाउंडेशन फॉर साउथ एशियन स्टडीज (European Think Tank European Foundation for South Asian Studies) की रिपोर्ट में बताया गया है कि चीन की हरकतों के जवाब में भारत के सख्त एक्शन से ड्रैगन पूरी तरह बैकफुट पर आ गया है। रिपोर्ट के अनुसार अपनी विस्तारवादी नीतियों के कारण अलग-थलग पड़ा चीन अब इस स्थिति से बाहर निकलने के लिए छटपटा रहा है। यूरोपीय थिंक टैंक ने कहा कि भारतीय सेना ने जिस चतुराई से चीन को जवाब दिया उससे चीन असमंजस की स्थिति में है।
वह न ही इस मसले को हल करने की स्थिति में है और न ही लंबे समय तक इसमें फंसा रह सकता है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि चीन भारत से बेवजह विवाद मोल लेकर तिब्बत और ताइवान जैसे गंभीर मुद्दों पर घिर सकता है। दरअसल, हाल ही में चीनी सरकार ने तिब्बत पर नियंत्रण को विस्तार देने की अपनी योजनाओं की घोषणा की थी। इसे तिब्बत के लोगों के मानवाधिकारों के उल्लंघन और उनकी धार्मिक स्वंतत्रता को छीनने के प्रयासों के रूप में देखा जा रहा है। अमेरिका सहित कई देश तिब्बत को लेकर चीन को निशाना बनाते रहे हैं।
यूरोपीय थिंक टैंक का मानना है कि यदि चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर भारत के साथ विवाद को लगातार बढ़ाता है, तो उसे इस मोर्चे पर परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। रिपोर्ट में भारत-चीन सीमा विवाद को लेकर अंतरराष्ट्रीय मीडिया की खबरों का हवाला भी दिया गया है। उदाहरण के तौर पर, ब्रिटिश दैनिक 'द टेलीग्राफ' ने दावा किया कि भारतीय सैनिकों ने न केवल घुसपैठ की चीनी सेना की साजिश को नाकाम किया, बल्कि उसने जवाबी कार्रवाई में कुछ चीनी शिविरों पर भी कब्जा किया।
इसी तरह 'द टेलीग्राफ' ने दावा किया कि लगभग 500 चीनी सैनिकों ने चुशूल गांव के नजदीक संकीर्ण घाटी स्पंगगुर को पार करने का प्रयास किया और कम से कम तीन घंटों तक दोनों पक्षों में संघर्ष चला. भारत और चीनी सैनिकों में हाथापाई भी हुई। रिपोर्ट के मुताबिक, चीन को उसी की भाषा में जवाब देने के लिए भारत तिब्बत विवाद को अंतरराष्ट्रीय मंच पर पुरजोर तरीके से उठा सकता है। यह मुद्दा वैसे भी कई देशों की सूची में शामिल है, इसलिए भारत के प्रयास को पर्याप्त समर्थन मिलने की उम्मीद हमेशा बनी रहेगी। इसके अलावा, ताइवान, हांगकांग और दक्षिण चीन सागर के मुद्दे पर भी भारत बीजिंग के विरुद्ध पश्चिमी देशों का साथ दे सकता है।