Edited By Anil dev,Updated: 21 May, 2019 12:49 PM
अरे भईया, ये सफेद वाला हाथी कब मारा तुमने मेरा...चलो छोड़ो, मेरा वजीर तुम्हारे राजा को पटकनी दे रहा है बचा लो। भईया अभी मतगणना के लिए कितने दिन और बचे हैं, शायद दो दिन ही हैं ना भईया। ऐसी ही बातें तब मतगणना केंद्र के बाहर सुनाई देती थीं जब बैलेट...
नई दिल्ली: अरे भईया, ये सफेद वाला हाथी कब मारा तुमने मेरा...चलो छोड़ो, मेरा वजीर तुम्हारे राजा को पटकनी दे रहा है बचा लो। भईया अभी मतगणना के लिए कितने दिन और बचे हैं, शायद दो दिन ही हैं ना भईया। ऐसी ही बातें तब मतगणना केंद्र के बाहर सुनाई देती थीं जब बैलेट पेपर से चुनाव होते थे और मतपेटियां चुराए जाने व बदल देने का डर सभी राजनीतिक दलों के अंदर रहता था। इसके लिए बकायदा पार्टी कार्यकर्ताओं की शिफ्टवाइज ड्यूटी लगा करती थी। इन कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ाने के लिए बीच-बीच में प्रत्याशी भी आया करते थे। कार्यकर्ताओं को कई दिनों तक मतपेटी की रक्षा करनी पड़ती थी और टाइम पास करने के लिए कार्यकर्ता मिलकर चौपड़, शतरंज, अष्ट्राचक्कन, कैरमबोर्ड व लूडो जैसे खेलों को मतगणना केंद्रों के बाहर खेला करते थे।
टेक्नोलॉजी पर ज्यादा विश्वास कर रहे हैं इंसान
बता दें कि ईवीएम मशीन ने मतदान से लेकर मतगणना प्रक्रिया तक को जहां काफी आसान कर दिया है। वहीं इससे यह भी साबित हुआ है कि इंसान, इंसान पर विश्वास करने की बजाय टेक्नोलॉजी पर ज्यादा विश्वास कर रहे हैं। ईवीएम मशीनों के साथ ही सुरक्षा संसाधनों को भी चुनाव आयोग द्वारा बढ़ाया गया है, बकायदा मतगणना केंद्र में ईवीएम मशीनों को सुरक्षित रखने के लिए पुलिस, अद्र्धसैनिक बल के साथ ही सीसीटीवी भी लगाए गए हैं। बता दें कि मतदान की प्रक्रिया की समाप्ति के बाद जैसे ही मतपेटियां मतगणना केंद्रों में पहुंचती थीं कार्यकर्ताओं की 6-6 घंटे की शिफ्ट में ड्यूटी तय की जाती थी। स्ट्रांगरूम में बंद मतपेटियों की जिम्मेदारी पूरी तरह से पार्टी की ओर से कार्यकर्ताओं की होती थी।
प्रत्याशी बढ़ाते थे हौसला
समाजवादी नेता श्यामजी त्रिपाठी ने बताया कि उस दौरान मतगणना केंद्रों के बाहर बैठे कार्यकर्ताओं के मनोबल को बढ़ाने के लिए प्रत्याशी भी दिन में 3 से 4 बार आया करते थे। इतना ही नहीं प्रत्याशी कार्यकर्ताओं के साथ बैठकर घंटों बातचीत करते उनके परिवार का हालचाल जानते व खेल भी खेलते थे। कार्यकर्ताओं को महसूस होता कि नेता हमारे बीच से है लेकिन अब ऐसा माहौल नहीं रह गया है।
प्रत्याशी मांगते थे मांगपत्र
सेवाराम जयपुरिया ने बताया कि मतगणना केंद्र के बाहर जब कार्यकर्ता बैठते थे, तब प्रत्याशी उनसे मांगपत्र की भी मांग करते थे, ताकि उन्हें पता चल सके कि किन-किन इलाकों में कौन-कौन सी समस्याएं हैं। नेता सिर्फ मांगपत्र लेते ही नहीं थे बल्कि उन पर अमल भी करते थे। ईवीएम मशीनों ने इस प्रकार की सामाजिकता पर अंकुश लगा दिया है। उन्होंने कहा कि ना तो कार्यकर्ताओं में निष्ठा है और ना प्रत्याशियों के पास समय।