मोदी को PM बनाने में जेटली का रहा अहम रोल

Edited By Anil dev,Updated: 24 Aug, 2019 01:04 PM

ex finance minister arun jaitley passes away

पिछले कई दिनों से अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्‍थान (एम्‍स) में भर्ती पूर्व वित्‍त मंत्री एवं भाजपा के वरिष्‍ठ नेता अरुण जेटली का आज निधन हो गया। बीते 9 अगस्‍त को उन्‍हें एम्‍स में भर्ती कराया गया था। 9 अगस्त को एम्स ने उनकी सेहत को लेकर एक...

नई दिल्‍ली : पिछले कई दिनों से अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्‍थान (एम्‍स) में भर्ती पूर्व वित्‍त मंत्री एवं भाजपा के वरिष्‍ठ नेता अरुण जेटली का आज निधन हो गया। बीते 9 अगस्‍त को उन्‍हें एम्‍स में भर्ती कराया गया था। 9 अगस्त को एम्स ने उनकी सेहत को लेकर एक स्टेटमेंट जारी किया था, उसके बाद से अभी तक एम्स प्रशासन की तरफ से कोई और स्टेटमेंट जारी नहीं किया गया है। 

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कैबिनेट में भी फ्रंट सीट पर बैठे अरुण जेटली
अरुण जेटली ऐसे नाम हैं जिनकी बदौलत ही बीजेपी भारतीय राजनीति में मजबूत विपक्ष की भूमिका निभाने में सक्षम रही और 2009-2014 तक पार्टी को प्रासंगिक बनाए रखा। कैबिनेट में भी अरुण जेटली फ्रंट सीट पर बैठे या अक्सर फाइटर पायलट की भूमिका में देखे जाते रहे। 2014 से पहले पांच साल तक दिल्ली में बीजेपी को प्रासंगिक बनाए रखने में ये नेता अग्रणी भूमिका में रहा।  अरुण जेटली पूरे पांच साल तक वित्त मंत्री तो रहे ही, ऐसे मौके भी आये जब वित्त मंत्री रहते हुए उन्हें रक्षा मंत्री का अतिरिक्त कार्यभार भी संभालना पड़ा और बजट पेश करने के लिए पीयूष गोयल को आगे आना पड़ा। ये परिस्थितियां जेतली की खराब सेहत के चलते पैदा हुईं।


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मोदी के संकटमोचक बने जेटली
बीजेपी को मौजूदा मुकाम दिलाने का श्रेय मोदी और अमित शाह की जोड़ी को श्रेय जाता है, तो मंजिल की तरफ रास्ता सपाट बनाये रखने का क्रेडिट सिर्फ अरुण जेटली को मिलेगा। 2002 के गुजरात दंगों को लेकर मोदी को जिन भी कानूनी चुनौतियों का सामना कर पड़ता, अरुण जेटली संकटमोचक बन कर हर बाधा दूर कर देते रहे। सिर्फ संकटमोचक ही नहीं, मोदी के गुजरात में रहते और फिर दिल्ली तक के सफर में भी जेटली उनके आंख और नाक ही नहीं, कान भी बने रहे।

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मोदी को पीएम बनाने के लिए किया रात दिन काम
2014 के लिए बीजेपी ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का चेहरा घोषित किया तो उस प्रक्रिया के भी रिंग मास्टर अरुण जेटली ही रहे। ये जेटली ही रहे जिन्होंने मोदी को नेता घोषित करने के लिए राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी और शिवराज सिंह चौहान को राजी करने में रात दिन एक किए  रहे। ये उन दिनों की बात है जब सीनियर नेता लालकृष्ण आडवाणी का दबदबा हुआ करता रहा। सुषमा स्वराज तो बीजेपी में आडवाणी काल की समाप्ति के बाद भी निष्ठावान बनी रहीं लेकिन अरुण जेटली ने नये समीकरणों को न सिर्फ वक्त रहते भांप लिया बल्कि अपनी काबिलयत और नेटवर्किंग के हुनर से पकड़ भी बेहद मजबूत बना लिया।

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