Edited By Yaspal,Updated: 23 Oct, 2018 09:22 PM
रुपए की गिरती कीमत फ्रांस के साथ हुई राफेल डील पर भारी पड़ रही है। 59,600 करोड़ रुपये में हुए राफेल विमान डील की कीमत में अब 6,400 रुपए की बढ़ोतरी हो गई है...
नेशनल डेस्कः रुपए की गिरती कीमत फ्रांस के साथ हुई राफेल डील पर भारी पड़ रही है। 59,600 करोड़ रुपये में हुए राफेल विमान डील की कीमत में अब 6,400 रुपए की बढ़ोतरी हो गई है। अब यह डील बढ़कर 66,000 करोड़ की हो गई है। दरअसल, सितंबर 2016 में यूरोपीय मुद्रा यूरो के हिसाब से फ्रांस के साथ राफेल विमान का सौदा 7.89 बिलियन यूरो में हुआ था। जो भारतीय रुपए के हिसाब से 59,600 करोड़ रुपये था। लेकिन यूरो के मुकाबले रुपये के गिरते स्तर की वजह से इसकी कीमत अब 66,000 करोड़ रुपये हो गई है। बढ़ती कीमतों का असर राफेल डील के ऑफसेट करार पर भी पड़ा है, जिसके तहत अनिल अंबानी समेत दसॉल्ट के साथ ऑफसेट करार करने वाली अन्य कंपनियों का हिस्सा भी बढ़ जाएगा।
बता दें कि राफेल फाइटर जेट डील भारत और फ्रांस की सरकारों के बीच सितंबर 2016 में हुई थी, जिसके तहत भारतीय वायुसेना को 36 आधुनिक लड़ाकू विमान मिलेंगे। कांग्रेस इस सौदे में बड़े घोटाले का आरोप लगा रही है। कांग्रेस पार्टी का आरोप है कि सरकार एक राफेल को 1670 करोड़ रुपये में खरीद रही है, जबकि यूपीए के समय इस सौदे पर बातचीत के दौरान इस विमान की कीमत 526 करोड़ रुपये प्रति राफेल तय हुई थी।
गौरतलब है कि कांग्रेस लगातार सरकार पर विमान की कीमतों के बारे में जानकारी मांग रही है। लेकिन सरकार लगातार गोपनीयता का हवाला देकर राफेल लड़ाकू विमान की कीमत बताने से इनकार कर रही है। कीमतों के अलावा राफेल डील पर कांग्रेस मुख्य आरोप सरकारी कंपनी हिंदुस्तान ऐरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) के साथ सौदा रद्द कर अनिल अंबानी की कंपनी और दसॉल्ट के बीच हुए ऑफसेट करार को लेकर केंद्रित है। कांग्रेस के इस आरोप को फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के हालिया बयान से और बल मिल गया।
फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के बयान ने देश की सियासत में भूचाल ला दिया है, जिसमें उन्होंने दावा किया है कि अनिल अंबानी की कंपनी का नाम भारत की ओर से आगे बढ़ाया गया, जबकि फ्रांस की सरकार और दसॉल्ट की तरफ से बयान जारी कर कहा गया है। कि ऑफसेट करार में सरकार का कोई योगदान नहीं है और कंपनी अपना निजी पार्टनर चुनने के लिए स्वतंत्र है।