जलाशयों के जल प्रसार में वृद्धि से पांच राज्यों, दो केंद्र शासित प्रदेशों को गंभीर खतरा :सीएसई

Edited By rajesh kumar,Updated: 05 Jun, 2022 08:05 PM

five states two union territories risk due water spread reservoirs

भारत, चीन और नेपाल में 25 हिमनद झीलों और जलाशयों के जल प्रसार क्षेत्रों में 2009 के बाद से 40 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई है, जिससे पांच भारतीय राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों के लिए गंभीर खतरा पैदा हो गया है। एक नयी रिपोर्ट में इस बात...

नेशनल डेस्क: भारत, चीन और नेपाल में 25 हिमनद झीलों और जलाशयों के जल प्रसार क्षेत्रों में 2009 के बाद से 40 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई है, जिससे पांच भारतीय राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों के लिए गंभीर खतरा पैदा हो गया है। एक नयी रिपोर्ट में इस बात की जानकारी दी गयी है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) की रिपोर्ट के अनुसार, जिन सात राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को खतरा है, वे हैं- असम, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, बिहार, हिमाचल प्रदेश तथा जम्मू-कश्मीर और लद्दाख। हालांकि, यह केवल जल प्रसार में वृद्धि का विषय नहीं है।

'स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरनमेंट 2022: इन फिगर्स' नामक रिपोर्ट में प्रकाशित आंकड़े चिंताजनक कहानी बयां करते हैं। इसमें कहा गया है कि 1990 और 2018 के बीच भारत के एक तिहाई से अधिक तटरेखा में कुछ हद तक कटाव देखा गया है। पश्चिम बंगाल सबसे बुरी तरह प्रभावित है, जिसकी 60 प्रतिशत से अधिक तटरेखा भूमि के कटाव होने से प्रभावित है। रिपोर्ट में कहा गया है कि चक्रवातों की आवृत्ति में वृद्धि और समुद्र के जलस्तर में वृद्धि तथा मानवजनित गतिविधियां, यथा- बंदरगाहों का निर्माण, समुद्र तट पर खनन और बांधों का निर्माण तटीय कटाव के कुछ कारण हैं।

सरकारी आंकड़ों का हवाला देते हुए, रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में हर चार नदी-निगरानी केंद्रों में से तीन में भारी जहरीले धातुओं - सीसा, लोहा, निकेल, कैडमियम, आर्सेनिक, क्रोमियम और तांबे के खतरनाक स्तर दर्ज किए गए हैं। एक सौ सत्रह नदियों और सहायक नदियों में फैले एक-चौथाई निगरानी स्टेशन में, दो या अधिक जहरीले धातुओं के उच्च स्तर की सूचना मिली है। गंगा नदी के 33 निगरानी केंद्रों में से 10 में प्रदूषण का स्तर अधिक है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के वन क्षेत्र का 45 से 64 प्रतिशत 2030 तक जलवायु हॉटस्पॉट बनने की संभावना है। वर्ष 2050 तक, देश का लगभग पूरा वन क्षेत्र जलवायु हॉटस्पॉट बनने की संभावना है।

सीएसई की रिपोर्ट में कहा गया है, ''जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले नुकसान की गंभीरता 2085 में बढ़ने वाली है।'' जलवायु हॉटस्पॉट एक ऐसे क्षेत्र को संदर्भित करता है जो जलवायु परिवर्तन के गंभीर प्रभावों का सामना कर सकता है। रिपोर्ट से पता चला है कि भारत ने 2019-20 में पैदा हुए 35 लाख टन प्लास्टिक कचरे में से 12 प्रतिशत का पुनर्चक्रण किया और 20 प्रतिशत को जला दिया। इसमें कहा गया है कि शेष 68 प्रतिशत प्लास्टिक कचरे के बारे में कोई जानकारी नहीं है, जो संभवतः डंपसाइट्स और लैंडफिल साइट में खप गया होगा।

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