Edited By Anil dev,Updated: 03 Aug, 2018 02:40 PM
देश में बाढ़, लैंडस्लाइडस और बादल फटने की घटनाओं ने भले ही पिछले कुछ दिन से दहशत का माहौल पैदा कर रखा हो। दिल्ली की नहर बनी सड़कें हों, उत्तराखंड में बहती गाडिय़ां या हिमाचल में बारिश के बाद लैंड स्लाइड में दबे घर। यह सब बारिश और मानसून को डरावना...
नेशनल डेस्क (संजीव शर्मा ): देश में बाढ़, लैंडस्लाइडस और बादल फटने की घटनाओं ने भले ही पिछले कुछ दिन से दहशत का माहौल पैदा कर रखा हो। दिल्ली की नहर बनी सड़कें हों, उत्तराखंड में बहती गाडिय़ां या हिमाचल में बारिश के बाद लैंड स्लाइड में दबे घर। यह सब बारिश और मानसून को डरावना रूप देकर प्रस्तुत करने के लिए काफी है। पूरा देश खासकर उत्तर भारत मॉनसून से हो रहे नुक्सान से परेशान है। लेकिन क्या आपको पता है कि इसके बावजूद मॉनसून ज्यादा तो क्या सामान्य रूप में भी नहीं बरसा है ?
जी हां अस्सी फीसदी देश में मानसून सामान्य से कम बरसा है। जून से सितंबर तक के चार महीनों को मानसून सीजन माना जाता है। इस लिहाज से आधा समय बीत चुका है। दूसरे शब्दों में आधा मॉनसून बरस जाना चाहिए था, लेकिन आपको बता दें कि इन दो माह में देश के किसी भी हिस्से में ज्यादा बारिश नहीं हुई है। अलबत्ता बीस राज्य/केंद्र शासित प्रदेश ऐसे हैं जहां मानसून अभी माइनस में है।
खास बात यह कि पूर्वोत्तर जिसे भारी बारिश के लिए जाना जाता है, वहां मानसून बहुत की कम बरसा है। मसलन मणिपुर में माइनस 64 फीसदी बारिश हुई है तो मेघालय में माइनस 43 फीसदी बारिश हुई है। असम में सामान्य से 27 प्रतिशत, बिहार में 23 और नगालैंड में 20 फीसदी कम बारिश हुई है। इसी तरह उत्तरी भारत के पहाड़ी राज्यों जम्मू -कश्मीर, हिमाचल और उत्तराखंड में भी सामान्य से कम बारिश हुई है। पूरे देश की बात करें तो औसतन 8 फीसदी कम बारिश हुई है। ऐसे में अब जबकि आधा सावन माह बीत चुका है यह देखना होगा कि भादों और आश्विन में क्या बारिश की कमी पूरी हो पाएगी ।