तीन दशक से इन क्षेत्रीय दलों की मदद के बिना नहीं बन सकी केंद्र सरकार

Edited By Seema Sharma,Updated: 24 Mar, 2019 02:25 PM

for three decades the regional parties have been the key to power

चुनाव दर चुनाव के नतीजे बताते हैं कि क्षेत्रीय दलों ने राष्ट्रीय राजनीति में अपनी जगह लगभग पक्की कर ली है। पिछले सात लोकसभा चुनाव में वाम दलों समेत क्षेत्रीय दलों के खाते में 160 से 210 सीटें आईं और छह बार इनके समर्थन के बिना केंद्र में सरकार नहीं...

नई दिल्ली: चुनाव दर चुनाव के नतीजे बताते हैं कि क्षेत्रीय दलों ने राष्ट्रीय राजनीति में अपनी जगह लगभग पक्की कर ली है। पिछले सात लोकसभा चुनाव में वाम दलों समेत क्षेत्रीय दलों के खाते में 160 से 210 सीटें आईं और छह बार इनके समर्थन के बिना केंद्र में सरकार नहीं बन सकी। साल 1991 के चुनाव में कांग्रेस को 244 सीटें मिलीं और भाजपा ने 120 सीटें जीतीं। वहीं, जनता दल को 69 सीट, माकपा को 35 सीट और भाकपा को 14 सीटें मिलीं। इसी तरह जनता पार्टी को 5 सीट, अन्नाद्रमुक को 11 सीट, शिवसेना को 4 सीट, आरएसपी को 5 सीट, तेदेपा को 13 सीट, झामुमो को 6 सीट, बसपा को 3 सीट, जनता पार्टी को 5 सीटें प्राप्त हुई थीं। इस चुनाव में भी वामदलों समेत क्षेत्रीय दलों को करीब 170 सीटें मिली थीं।

क्षेत्रीय दलों की भूमिका पर एक नजर

  • 1996 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस एवं भाजपा से अलग केंद्र में तीसरा मोर्चा बनाने का प्रयोग हुआ था मगर यह प्रयोग नाकाम रहा।
  • इस वर्ष के चुनाव परिणाम पर गौर करें तब भाजपा को 161 सीटें मिली थीं जबकि कांग्रेस को 140 सीट प्राप्त हुई। भाजपा के सहयोगी दलों के खाते में 26 सीटें आई थीं। तीसरे धड़े के तहत राष्ट्रीय मोर्चा को 79 सीटें प्राप्त हुई थीं जबकि वाम मोर्चा को 52 सीटों पर जीत मिली। अन्य क्षेत्रीय दलों एवं निर्दलीयों के खाते में 85 सीटें गई थीं।
  • 2014 के आम चुनाव के अपवाद को छोड़ दें तो बीते करीब तीन दशक में क्षेत्रीय पार्टियों के मजबूत समर्थन के बिना केंद्र में सरकार का गठन नहीं हो पाया।
  • 16वीं लोकसभा का चुनाव अपवाद इसलिए रहा कि तीन दशक बाद किसी एक पार्टी को अकेले बहुमत मिला। पिछले सात लोकसभा चुनाव पर गौर करें तब तमाम क्षेत्रीय पार्टियों को चुनाव में 160 से लेकर 210 के बीच लोकसभा सीटें मिली और केंद्र में सरकार के गठन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही।
  • 1998 के चुनाव में भाजपा को 182 सीटें मिली थीं जबकि कांग्रेस को 141 सीटें मिलीं।
  • माकपा को 32 सीट, सपा को 20 सीट, अन्नाद्रमुक को 18 सीट, तेदेपा को 12 सीट, समता पार्टी को 12 सीट, राजद को 17 सीट, सपा को 12 सीट, भाकपा को 9 सीट, अकाली दल को 8 सीट, द्रमुक को 6 सीट, शिवसेना को 6 सीट, जनता दल को 6 सीट मिली। इस बार भी केंद्र में सरकार गठन में क्षेत्रीय दलों की महत्वपूर्ण भूमिका रही।
  • 1999 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 182 सीटें प्राप्त हुई जबकि कांग्रेस को 114 सीटें मिली। इस चुनाव में तेदेपा को 29 सीट, बसपा को 14 सीट, सपा को 26 सीट, जदयू को 21 सीट, शिवसेना को 15 सीट प्राप्त हुई थी। तब द्रमुक को 12 सीट, अन्नाद्रमुक को 10 सीट, बीजद को 10 सीट, पीएमके को 8 सीट, राजद को 7 सीट, अन्य को 20 सीट प्राप्त हुई थी । इस चुनाव में भी क्षेत्रीय दलों के खाते में करीब 200 सीटें गई थीं।
  • 2004 के आम चुनाव में कांग्रेस और भाजपा दोनों ने मिलकर 283 सीटें हासिल कीं। कांग्रेस ने 145 सीटों के साथ क्षेत्रीय दलों को लेकर संप्रग की पहली गठबंधन सरकार बनाई। इस चुनाव में माकपा को 43 तो बसपा को 19 सीटें, सपा को 36 सीटें, राजद को 24 सीटें, द्रमुक को 16 सीटें, राकांपा को 9 सीटें, भाकपा को 10 सीटें मिलीं थीं। इस चुनाव में भाजपा को 138 सीटें मिली थी। इस चुनाव में बीजद को 11 सीट, जदयू को 8 सीट, शिवसेना को 12 सीटें प्राप्त हुई थी । इस चुनाव में भी क्षेत्रीय दलों के खाते में करीब 200 सीटें आई थी।
  • 2009 के लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस और भाजपा दोनों को मिलाकर इनके खाते में 322 सीटें आई थीं। कांग्रेस ने 206 सीटें जीत दूसरी बार संप्रग की सरकार बनाई जिसमें क्षेत्रीय पार्टियों की अहम भूमिका थी। जबकि मुख्य विपक्षी रही भाजपा को 116 लोकसभा सीटें मिलीं। तब माकपा को 16 और बसपा को 21 सीटें मिलीं।

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