Edited By Mahima,Updated: 14 Sep, 2024 02:16 PM
भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने हाल ही में स्विट्ज़रलैंड के जिनेवा में भारतीय समुदाय से बातचीत करते हुए 1984 के हाईजैक की एक गहन और भावनात्मक कहानी साझा की। इस घटना ने न केवल उनके पेशेवर जीवन को प्रभावित किया, बल्कि उनके व्यक्तिगत जीवन को भी...
नेशनल डेस्क: भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने हाल ही में स्विट्ज़रलैंड के जिनेवा में भारतीय समुदाय से बातचीत करते हुए 1984 के हाईजैक की एक गहन और भावनात्मक कहानी साझा की। इस घटना ने न केवल उनके पेशेवर जीवन को प्रभावित किया, बल्कि उनके व्यक्तिगत जीवन को भी गहराई से छुआ। जयशंकर ने खुलासा किया कि उस समय इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट 421, जो कि सिख उग्रवादियों द्वारा हाईजैक की गई थी, में उनके पिता भी सवार थे।
1984 का हाईजैक और जयशंकर का अनुभव
जयशंकर ने बताया कि 1984 में जब इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट 421 को हाईजैक किया गया, वह एक युवा भारतीय विदेश सेवा (IFS) अधिकारी के रूप में अपने कर्तव्यों को निभा रहे थे। इस हाईजैक की घटना ने उन्हें एक कठिन और संवेदनशील स्थिति में डाल दिया, खासकर तब जब उन्हें पता चला कि उस विमान में उनके पिता भी सवार हैं। यह खुलासा उनके लिए एक बड़ा झटका था और उसने उन्हें एक दुविधा में डाल दिया, क्योंकि एक ओर वह संकट के प्रबंधन में शामिल थे, वहीं दूसरी ओर उनके परिवार की सुरक्षा के प्रति उनकी चिंता भी थी।
हाईजैक का पूरा परिदृश्य
24 अगस्त 1984 को, इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट 421 को प्रतिबंधित ऑल इंडिया सिख स्टूडेंट्स फेडरेशन के सात सदस्यों ने हाईजैक कर लिया था। यह विमान दिल्ली से श्रीनगर जा रहा था और इसका चंडीगढ़ में पहला पड़ाव था। हाईजैकर्स ने बिना किसी हथियार के विमान को कब्जे में ले लिया, और इसके बाद विमान को दुबई की ओर मोड़ दिया गया।
पिता की स्वास्थ्य स्थिति और यात्रियों की कठिनाइयाँ
हाईजैक के दौरान, जयशंकर के पिता कृष्णास्वामी सुब्रह्मण्यम, जो उस समय दिल्ली स्थित इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस (IDSA) के निदेशक थे, डायबिटीज से पीड़ित थे। उन्हें तत्काल इंसुलिन शॉट्स की आवश्यकता थी, जिससे स्थिति और भी जटिल हो गई। दुबई में, यात्रियों को विमान के अंदर ही भीषण गर्मी और तनाव का सामना करना पड़ा।
मामले का समाधान और जयशंकर की प्रतिक्रिया
हाईजैकर्स ने दबाव डालने के लिए के सुब्रह्मण्यम को एक एम्बुलेंस में ले जाने की कोशिश की और फिर उनसे बातचीत करने वाले अधिकारियों पर दबाव बनाया। उन्होंने धमकी दी कि अगर उनकी मांगें पूरी नहीं की गईं, तो वे हर आधे घंटे में एक यात्री की जान लेंगे। इसके बावजूद, सफल बातचीत के परिणामस्वरूप सभी यात्रियों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया और हाईजैकर्स को भारत प्रत्यर्पित किया गया। जयशंकर ने उस समय की भावनात्मक और तनावपूर्ण स्थिति का वर्णन करते हुए कहा कि यह एक जटिल और अजीबोगरीब परिस्थिति थी। उन्होंने अपनी मां को फोन कर इस संकट की जानकारी दी और बताया कि वह घर नहीं आ सकते थे। यह स्थिति उन्हें व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन के बीच एक कठिन संतुलन स्थापित करने पर मजबूर कर रही थी।
लोगों की प्रतिक्रिया और जयशंकर का योगदान
जयशंकर के द्वारा साझा की गई इस घटना ने न केवल उन्हें बल्कि उनके परिवार को भी गहराई से प्रभावित किया। इस कहानी को सुनकर लोगों ने जयशंकर की साहसिकता और उनके परिवार के प्रति उनकी चिंता की सराहना की। यह घटना न केवल एक ऐतिहासिक संकट की गवाही देती है बल्कि यह भी दर्शाती है कि कैसे व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन आपस में जुड़ा हुआ हो सकता है, विशेषकर संकट की स्थितियों में।