किन 500 बिलियन डॉलरों को बचाएंगे ट्रंप ?

Edited By ,Updated: 21 May, 2016 09:56 AM

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अपनी जनसभाओं में अमरीकी राष्ट्रपति पद के लिए रिपब्लिकन पार्टी के संभावित उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप ने कई बार जिक्र कर चुके हैं

अपनी जनसभाओं में अमरीकी राष्ट्रपति पद के लिए रिपब्लिकन पार्टी के संभावित उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप ने कई बार जिक्र कर चुके हैं घाटे में जा रहे 500 बिलियन डॉलरों का। इसके लिए वे चीन को दोषी ठहराते हैं। अपनी विदेश नीति में चीन पर चर्चा के दौरान आक्रामक तेवर दिखाते हैं। फिर कहते हैं कि यदि वह राष्ट्रपति बने, तो चीन सुधर जाएगा। अमरीका का दोस्त बन जाएगा। ट्रंप चीन के साथ संबंध सुधारने के लिए स्वयं का सत्ता में आना बेहद जरूरी बताते हैं। वे विश्वास दिलाते हैं कि वही उससे बेहतर तरीके से निपट सकते हैं। वे चीन के साथ अमरीका के 500 बिलियन डॉलरों को बचाने के लिए व्यापारिक युद्ध करने के लिए भी तैयार हैं। आखिर इन डॉलरों का मामला क्या है? इन्हें समझने का प्रयास करते हैं।

दूसरी ओर वे व्यापारिक युद्ध करने की बात करते हैं। उनके विरोधी कह रहे हैं वैसा कोई युद्ध नहीं होने वाला। ट्रंप के मुताबिक चीन अपनी मुद्रा का अवमूल्यन कर देता है और वह इसी तरीके से हमें नुकसान पहुंचा रहा है। गौरतलब है कि पिछले साल चीन व्यापार के मामले में आयात और निर्यात मिलाकर 4,303 बिलियन अमेरिकी डॉलर के साथ विश्व में नंबर वन रहा था। अमेरिका 4032 बिलियन डॉलर के साथ दूसरे नंबर पर रहा था।

इंडियाना में आयोजित रैली में डोनाल्ड ट्रंप ने बड़ी अजीब भाषा का इस्तेमाल किया। उन्होंने कहा कि हम चीन को अपने देश का 'रेप' करते रहने की छूट नहीं दे सकते। वे चीन और अमेरिका का संबंध के रेप करने वाला और रेप पीड़िता की तरह बताते हैं। बात वही निर्यात की है कि चीन का निर्यात अमरीका के मुकाबले ज्यादा है। आरोप लगाया जाता है कि चीन अपनी मुद्रा में चालाकी के साथ हेरफेर करता है, ताकि वैश्विक बाजार में निर्यात के मोर्चे पर वह सबसे आगे रहे। ट्रंप ने चीन को अमरीका के व्यापार की हत्यारा तक ठहरा दिया है। ट्रंप चीन को घेरने के लिए वहां से आने वाली वस्तुओं पर कर लगाने को तैयार हैं। उनका मानना है कि अमरीका एक साल में 505 अरब डालर गंवा रहा है। इस संभावित उम्मीदवार के दो प्रतिद्वंद्वी रहे मारको रूबियो तथा जेब बुश ने इस प्रकार के निर्णय पर सवाल उठाए थे। उनका कहना था कि इस प्रकार का कर लगाने का मतलब होगा अमरीकी उपभोक्ताओं पर शुल्क लगाना।

यह घाटा अमरीका को इस प्रकार हो रहा है कि उसकी कंपनियां चीन के निर्माताओं की आउटसोर्सिस सेवा लेती हैं। अमरीका चीन को कच्चा माल निर्यात करता है। वहां इससे विभिन्न उत्पाद तैयार किए जाते हैं। इन उत्पादों पर सस्ती श्रम शक्ति लगती है। उन्हीं उत्पादों को अमरीका चीन से आयात कर लेता है। वर्ष 2015 के अंत में यह घाटा 532 बिलियल डॉलरों तक पहुंच गया था। लेकिन सिर्फ चीन ही नहीं अमरीका को अन्य व्यपारिक भागीदारों से भी घाटा उठाना पड़ रहा है। कई व्यापार विशेषज्ञों का आकलन है कि इन हालातों को सही तरीके से प्रस्तुत नहीं किया जा रहा है। अरिजोन स्टेट यूनिवर्सिटी के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के प्रोफेसर जोस मेंडोज कहते हैं कि अमरीकी को यह घाटा आज का नहीं, काफी समय पहले से हो रहा है। यह घाटा इस बात का सूचक है कि देश की आर्थिक स्थिति बेहतर है यानि देश में सोने की प्रचूर मात्रा है। आज घाटे की स्थिति न अच्छी है न ही बुरी।

कैलिफोर्निया-लॉस एंजिलिस यूनिवर्सिटी के अर्थशास्त्र के प्रोफेसर एंडी एटक्सन मानते हैं कि व्यापार घाटे का अच्छा या बुरा होना जरूरी नहीं है। ट्रंप जनता को बरगला रहे हैं। सस्ते उत्पाद मिलने से उपभोक्ताओं को व्यापार से फायदा होता है। अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता के कारण श्रमिक प्रभावित होते हैंं। अमरीका के हम निवासी हैं और श्रमिक भी हैं। हर व्यक्ति व्यापार करना शुरू कर दे तो हम घाटा उठाने वाले उन श्रमिकों की सहायता कर सकते हैं। यूसीएलए के अर्थशास्त्र विभाग के सहायक प्रोफेसर वॉकर हैंलोन व्यापारिक घाटे का स्वीकार करते हैं, पर वे ट्रंप की आलोचना करते हैं कि उन्हें अर्थशास्त्र की आधारभूत​ जानकारी नहीं है और वे जनता को गलत जानकारी देते हैं। हैंलोन कहते हैं कि इस घाटे का साधारण अर्थ है कि जितने माल का उत्पादन वे कर रहे हैं हम उसे जरुरत से ज्यादा खरीद रहे हैं। जबकि वे हमारा माल कम खरीद रहे हैं। यही पैसे को गंवाना है।

इन आर्थिक विशेषज्ञों, जिनमें हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के रिचर्ड कूपर भी शामिल हैं का मानना है कि डोनाल्ड ट्रंप अमरीका के व्यापारिक घाटे को कुछ ज्यादा ही बढ़ा-चढ़ा कर बता रहे हैं। चीन से हमें 134 बिलियन से अधिक का घाटा हो रहा है, जो वास्तव में 366 बिलियन है,  न कि 500 बिलियन डॉलर। इन लोगों को कहना है कि ट्रंप का यह आकलन बहुत पुराना हे। यह घाटा न अच्छा हे और न ही बुरा। अमरीका अपना पैसा नहीं गंवा रहा। वह तो चीन से माल और उसकी सेवाएं खरीदता है। दरअसल, सभी अर्थशास्त्रियों ने मुक्त व्यापार का समर्थन किया और कुछ कंपनियों के संरक्षणवाद की आलोचना की है। शिकागो में वर्ष 2014 में किए गए सर्वे के अनुसार देश के 93 प्रतिशत अर्थशास्त्री इस कात पर सहमत थे कि अमरीका के पुराने बड़े व्यापारिक सौदे से लोगों के लिए फायदेमंद साबित हुए, जबकि 7 प्रतिशत अर्थशास्त्री इस बारे में अनिश्चित थे।

ट्रंप के प्रतिद्वंद्वी बर्नी सैंडर्स भी उनकी इस बयान की निंदा कर चुके हैं। उनका कहना है कि अमरीका को 58 बिलियन डॉलर का घाटा मैक्सिको से, 100 बिलियन का जापान से और चीन से 366 बिलियन डॉलर का ही घाटा होता है। ट्रंप के आंकड़े गलत हैं। वैसे भी अर्थशास्त्र के दो आधारभूत सिद्धांत होते हैं कि पहला, दो देश नहीं, बल्कि व्यापार और उपभोक्ता एक-दूसरे से बंधते जाते हैं। दूसरा, जब बाजार के आदान—प्रदान में लोग जुड़ते हैं वे खरीददार और विक्रेता होते हैं और स्थितियों को बेहतर बनाते हैं। एक अन्य अर्थशास्त्री डोन बाउडरिएक्स कहते हैं कि सिर्फ घाटे की बात न करें। ट्रंप और जनता यह तथ्य भी जान लें कि हर साल कई विदेशी सैकड़ों बिलियन डॉलर अमरीका में निवेश भी करते हैं, जिससे हमारी अर्थव्यवस्था मजबूत होती है। 

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