पूर्व न्यायाधीश ने गोगोई यौन उत्पीड़न मामले पर उठाए सवाल,कहा- महिला के साथ हुआ अन्याय

Edited By vasudha,Updated: 22 May, 2019 03:15 PM

former sc judge raises questions on cji gogoi sexual harassment case

उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश मदन बी लोकुर ने मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के खिलाफ पूर्व महिला कर्मचारी के यौन-उत्पीड़न के आरोपों के मामले की शुरुआत जांच को संस्थागत भेदभाव बताते हुए कहा कि महिला कर्मचारी के साथ न्याय नहीं हुआ है...

नेशनल डेस्क: उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश मदन बी लोकुर ने मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के खिलाफ पूर्व महिला कर्मचारी के यौन-उत्पीड़न के आरोपों के मामले की शुरुआत जांच को संस्थागत भेदभाव बताते हुए कहा कि महिला कर्मचारी के साथ न्याय नहीं हुआ है। न्यायमूर्ति लोकुर ने एक अंग्रेजी दैनिक में लिखे एक लेख में कहा कि मेरा मानना है कि कर्मचारी के साथ न्याय नहीं हुआ है। शिकायतकर्ता महिला को मामले की सुनवाई करने वाली आंतरिक समिति की रिपोर्ट निश्चित तौर पर मिलनी चाहिए, ताकि शिकायतकर्ता को उन सारे सवालों का जवाब मिल सके, जो उसने और दूसरे लोगों ने उठाये हैं।
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न्यायमूर्ति ने इंदिरा जयसिंह बनाम उच्चतम न्यायालय के मामले का हवाला देकर शिकायतकर्ता महिला को जांच रिपोर्ट की प्रति देने से इन्कार करने के फैसले को अप्रासंगिक बताते हुए कहा कि शीर्ष अदालत का फैसला यह नहीं कहता कि शिकायतकर्ता को ‘आंतरिक समिति' की रिपोर्ट नहीं मिलेगी। इसके अलावा, सर्वोच्च न्यायालय के फैसले में यह नहीं कहा गया है कि शिकायतकर्ता को तथाकथित आंतरिक समिति की रिपोर्ट की प्रति पाने का अधिकार नहीं है। निष्पक्षता की मांग करते हुए न्यायमूर्ति लोकुर ने पूछा कि जमा होने के बाद इस रिपोर्ट का क्या होगा? क्या आंतरिक समिति की रिपोर्ट को संबंधित जज स्वीकार करेंगे? क्या इस संबंध में कोई आदेश है? क्या संबंधित न्यायाधीश तथाकथित अनौपचारिक रिपोर्ट से असहमत भी हो सकते हैं? 

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लोकुर ने कहा कि मेरा मानना है कि अगर आंतरिक प्रक्रिया लागू की जाती है तो संबंधित न्यायाधीश को उस रिपोर्ट को स्वीकार करने या अस्वीकार करने या उस कोई कारर्वाई नहीं करने का अधिकार होता है। किसी भी हालात में संबंधित न्यायाधीश को रिपोर्ट पर खुद से फैसला करना होगा। हालांकि लगता है कि ऐसा कोई फैसला नहीं हुआ और अगर हुआ भी तो उसे सार्वजनिक नहीं किया गया। न्यायमूर्ति ने कहा कि 20 अप्रैल, 2019 की घटनाओं को देखने पर संस्थागत भेदभाव की बात तब साफ हो जाती है जब मुख्य न्यायाधीश खुद को इस मामले की सुनवाई वाली पीठ का अध्यक्ष नामित कर लेते हैं। 
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उल्लेखनीय है कि शीर्ष अदालत की एक पूर्व कर्मचारी ने न्यायालय के 22 न्यायाधीशों को पत्र लिखकर आरोप लगाया था कि न्यायमूर्ति गोगोई ने अक्टूबर 2018 में उसका यौन उत्पीड़न किया था। गौरतलब है कि पिछले साल दिसंबर में सेवानिवृत्त हुए न्यायमूर्ति लोकुर उन चार न्यायाधीशों में से एक थे, जिन्होंने तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ जनवरी, 2018 में ऐतिहासिक प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी, जिनमें मौजूदा मुख्य न्यायाधीश भी शामिल थे।

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