जब हाथ में गीता लेकर फांसी के फंदे पर झूल गया था ये क्रांतिकारी, उम्र थी महज 18 साल

Edited By Anil dev,Updated: 11 Aug, 2020 12:10 PM

freedom fighter death anniversary khudiram bose

देश की आजादी की लड़ाई में कुछ नौजवानों का बलिदान इतना उद्वेलित करने वाला था कि उसने पूरे देश में स्वतंत्रता संग्राम का रूख बदलकर रख दिया। इनमें एक नाम खुदीराम बोस का है, जिन्हें 11 अगस्त 1908 को फांसी दे दी गई। उस समय उनकी उम्र महज 18 साल कुछ महीने...

नई दिल्ली: देश की आजादी की लड़ाई में कुछ नौजवानों का बलिदान इतना उद्वेलित करने वाला था कि उसने पूरे देश में स्वतंत्रता संग्राम का रूख बदलकर रख दिया। इनमें एक नाम खुदीराम बोस का है, जिन्हें 11 अगस्त 1908 को फांसी दे दी गई। उस समय उनकी उम्र महज 18 साल कुछ महीने थी। 
अंग्रेज सरकार उनकी निडरता और वीरता से इस कदर आतंकित थी कि उनकी कम उम्र के बावजूद उन्हें फांसी की सजा सुनाई गयी। यह साहसी किशोर हाथ में गीता लेकर खुशी-खुशी फांसी चढ़ गया। खुदीराम की लोकप्रियता का यह आलम था कि उनको फांसी दिए जाने के बाद बंगाल के जुलाहे एक खास किस्म की धोती बुनने लगे, जिसकी किनारी पर खुदीराम लिखा होता था और बंगाल के नौजवान बड़े गर्व से वह धोती पहनकर आजादी की लड़ाई में कूद पड़े। 

PunjabKesari, Revolutionary Khudiram Bose, क्रांतिकारी खुदीराम बोस

दरअसल 11 अगस्त 1908 को सुबह 6 बजे महान क्रांतिकारी खुदीराम बोस को फांसी के फंदे पर झुलाया जाना था। 10 अगस्त की रात को उनके पास जेलर पहुंचा। जेलर को खुदीराम से पुत्रवत स्नेह हो गया था। वह अपने साथ 4 रसीले आम लेकर उनके पास पहुंचा और बोला, ‘‘खुदीराम, ये आम मैं तुम्हारे लिए लाया हूं। तुम इन्हें चूस लो। मेरा एक छोटा-सा उपहार स्वीकार करो। मुझे बड़ा संतोष होगा।’’

PunjabKesari, Revolutionary Khudiram Bose, क्रांतिकारी खुदीराम बोस
खुदीराम ने जेलर से वे आम लेकर अपनी कोठरी में रख लिए और कहा, ‘‘थोड़ी देर बाद मैं अवश्य इन आमों को चूस लूंगा।’’सुबह जेलर फांसी के लिए खुदीराम को लेने पहुंचा। वह पहले से ही तैयार थे। जेलर ने देखा कि उसके द्वारा दिए गए आम वैसे के वैसे रखे हुए हैं। उसने पूछा, ‘‘क्यों खुदी राम! तुमने ये आम चूसे नहीं? तुमने मेरा उपहार स्वीकार क्यों नहीं किया?’’ खुदीराम ने बहुत भोलेपन से उत्तर दिया, ‘‘अरे जेलर साहब! जरा सोचिए, सुबह ही जिसको फांसी के फंदे पर झूलना हो, क्या उसे खाना-पीना सुहाएगा?’’

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जेलर ने कहा, ‘‘खैर, कोई बात नहीं, मैं ये आम उठा लेता हूं और अब इन्हें तुम्हारा उपहार समझकर मैं चूस लूंगा।’’ यह कह कर जेलर ने जैसे ही आमों को उठाना चाहा, वे पिचक गए। खुदीराम जोर से ठहाका मारकर हंसे और काफी देर तक हंसते रहे। उन्होंने उन आमों का रस रात में ही चूस लिया था और उन्हें फुलाकर रख दिया था। जेलर खुदीराम की मस्ती पर मुग्ध और आश्चर्यचकित हुए बिना न रह सका। वह सोच रहा था कि कुछ समय बाद मृत्यु जिसको अपना ग्रास बना लेगी, वह अट्टहास कर किस प्रकार मृत्यु की उपेक्षा कर रहा है। जेलर ने कहा, ‘‘वास्तव में यह मातृभूमि रत्नगर्भा है और खुदीराम जैसे लोग इस मातृभूमि के रत्न हैं। ऐसे महापुरुष बार-बार हमारी मातृभूमि पर अवतरण लें, ऐसी मंगल कामना है।’’

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