नजरिया: दिन से नहीं दिल से मनाएं Friendship Day

Edited By Anil dev,Updated: 05 Aug, 2018 01:19 PM

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दोस्ती आम है ए दोस्त, लेकिन दोस्त मिलता है बड़ी मुश्किल से.... हफीज होशियारपुरी का ये शेर मैं जालंधर में बैठकर इसलिए लिख रहा हूं क्योंकि आज फ्रेंडशिप डे है। यानी दोस्ती का दिन , दोस्तों से मिलने का दिन। व्हाट्सऐप , एफबी, ट्विटर, नेट और नेटफ्लिक्स की...

नेशनल डेस्क (संजीव शर्मा ): दोस्ती आम है ए दोस्त, लेकिन दोस्त मिलता है बड़ी मुश्किल से.... हफीज होशियारपुरी का ये शेर मैं जालंधर में बैठकर इसलिए लिख रहा हूं क्योंकि आज फ्रेंडशिप डे है। यानी दोस्ती का दिन , दोस्तों से मिलने का दिन। व्हाट्सऐप , एफबी, ट्विटर, नेट और नेटफ्लिक्स की दुनिया का। हालांकि अपुन उस पीढ़ी से नहीं है जहां रिश्तों के लिए कोई दिन तय होता है। हमारे जमाने में तो दोस्ती बस हो जाती थी, बस में ,स्कूल में, राह चलते, शादी-ब्याह जैसे समारोहों में यहां तक कि अस्पताल में बीमारी के दौरान पास के बिस्तर पर पड़े लोगों में भी।कोई स्थान, काल, पात्र तय नहीं था इसके लिए। डेस्क पर एक सहयोगी ने चॉकलेट आगे बढ़ाकर हैप्पी फ्रेंडशिप कहा तो याद आया की आज फ्रेंडशिप डे है। चॉकलेट खानी पड़ी ,हालांकि मुझे चॉकलेट पसंद नहीं, लेकिन दोस्ती पसंद है। और वास्तव में दोस्ती है ही ऐसी चीज जो हम सबको पसंद है।  हो भी क्यों नहीं। कोई काम हो तो दोस्त ही काम आते हैं. कुछ चाहिए हो तो दोस्त याद आते हैं। कुछ देना हो तो दोस्त याद आते हैं, और कुछ भी न हो खाली बैठें हों..तो भी दोस्त याद आते हैं।  ऐसी चीज है दोस्ती। बफा के लिए भी दोस्त और बेबफाई में भी दोस्त।  

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हमें भी आ पड़ा है दोस्तों से काम कुछ... यानी
हमारे दोस्तों के बेवफ़ा होने का वक्त आ गया 


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 बहरहाल फ्रेंडशिप डे की शुरुआत 1935 में अमेरिका से हुई थी। अगस्त के पहले रविवार को एक प्रदर्शन के दौरान प्रशासन की कार्रवाई में एक व्यक्ति मारा गया और इस गम में उसके एक दोस्त ने आत्महत्या कर ली। उसी दिन से सरकार ने अगस्त के पहले रविवार को फ्रेंडशिप डे के रूप में मनाने का निर्णय लिया। तब से इस दिन को हम दोस्तों के लिए मनाते आ रहे हैं। लेकिन हिंदुस्तान में दोस्ती की नींव उससे भी कई शताब्दियों पहले पड़ गयी थी। ऋषि संदीपनी के आश्रम में, द्रोणाचार्य के घर में, किष्किंधा के जंगलों में (कृष्ण-सुदामा-अर्जुन, कर्ण -दुर्योधन, राम-सुग्रीव आदि ) वास्तव में हमारा देश दोस्ती का सबसे पड़ा पक्षधर रहा है।  हम तो युद्ध सहकर भी हिंदी-चीनी भाई भाई गाते रहे हैं। हमारी सनातनी सभ्यता  भी यही कहती है।  सनातन यानी जिसका न आदि है न अंत बस मध्य यानी वर्तमान है. और यही दोस्ती है।  लेकिन दिक्कत वहां हो गई जहां सनातन हिन्दू-मुस्लिम-सिख -ईसाई हो गया। यानी पृथक हो गया। और पृथक्कीकरण का सीधा सा मतलब है एक नहीं रहना यानी दोस्ती में दरार। इसी दरार को भरने की जरूरत है। फिर चौतरफा व्याप्त आतंक, भय, भूख, व्याधियां स्वत: थम जाएंगी।  
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आधुनकि परिपेक्ष्य में फ्रेंडशिप डे को लें तो हमें अपने पड़ोसियों के साथ  स्नेहिल सम्बन्ध कायम करने होंगे। लेकिन भारत-चीन-पाकिस्तान से यह अंदाज़ लगाया जा सकता है कि हम क्या कर रहे हैं। पाकिस्तान के नए वजीर-ए -आजम बनने जा रहे इमरान खान कहते हैं कि उनके सबसे ज्यादा दोस्त हिंदुस्तान में हैं।  बेहतर है वे इसे अपनी कार्यशैली में भी ट्रांसलेट करें। इधर भारत सरकार को भी चाहिए कि नए निजाम से कोई पॉजिटिव संकेत आए तो उसे अनदेखा न किया जाए । उधर डोकलाम और एनएसजी पर भी चीन और भारत को अपना रुख दोस्ताना करना होगा। जब आपका दोस्त  शक्तिशाली हो तो आप भी शक्तिशाली होते हैं, लेकिन जब हम दोस्ती के बजाए दुश्मनी  रखेंगे तो एक दूसरे का शक्तिशाली होना चुभता और डराता  रहेगा और फिर वही होगा  जो हो रहा है। रूस को चीन पसंद नहीं, चीन,पाकिस्तान को भारत पसंद नहीं , सभी देशों को मिलकर एशिया की समस्याओं को लेकर दोस्त बनकर काम करना होगा।  और ध्यान रखना होगा कि -- 

शर्तें लगाई जाती नहीं दोस्ती के साथ
कीजे मुझे कुबूल मिरी हर कमी के साथ

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और  इस तरह जब राष्ट्रों की दोस्ती बढ़ेगी तो मानवीय दोस्ती को भी नए आयाम मिलेंगे। फिर फ्रेंडशिप डे पर हम जैसे भी यह नहीं लिखेंगे की इसकी शुरुआत कहां से हुई थी।  हमें लगेगा कि यह तो हमने शरू किया है, हम सबने। जाते जाते हफीज जालंधरी का एक शेर (थोड़े परिवर्तन के साथ ) 

दोस्तों को भी मिले सुकूं की दौलत या रब
मेरा अपना ही भला हो मुझे मंजूर नहीं। 

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