ISIS के खिलाफ कामयाब हो पाएंगे जी-7 ​के देश !

Edited By ,Updated: 23 May, 2016 07:37 PM

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यह अच्छी खबर है कि आईएसआईएस का आतंक समाप्त करने के लिए जी-7 समूह के सदस्य देश एकजुट होकर प्रयास आरंभ करने वाले

यह अच्छी खबर है कि आईएसआईएस का आतंक समाप्त करने के लिए जी-7 समूह के सदस्य देश एकजुट होकर प्रयास आरंभ करने वाले है। इन देशों ने इस आतंकी संगठन को हो रही फंडिंग पर अंकुश लगाने का संकल्प लिया है। ये सदस्य देश खुफिया जानकारियों को साझा करेंगे, आतंकियों की संपत्तियों को जब्त करेंगे और अंतर्राष्ट्रीय लेन देन के नियमों को सख्त बनाएंगे। इन देशों में ब्रिटेन, जापान, फ्रांस, इटली, कनाडा, जर्मनी और अमरीका शामिल हैं। गौरतलब है कि इन्हीं में से अधिकाश देश जी-20 समूह के भी सदस्य हैं और इन पर आईएसआईएस को फायदा पहुंचाने के आरोप लग चुके हैं।

जी-7 समूह के सदस्य देश जब खुफिया जानकारियों का साझा करेंगे तो इन्हें आतंकी गतिविधियों से निपटने में आसानी होगी। हमला होने से पहले ही उन्हें सारे प्रबंध करने का अवसर मिल जाएगा। दूसरा, यदि इस आतंकी संगठन को लगातार फंडिंग होती रहेगी तो वह हथियारों और गोला बारूद का प्रबंध करता रहेगा। आकर्ष​क वेतन के लालच में नई भर्तियां करेगा। जब फंडिंग रुक जाएगी तो आर्थिक संकट से इसकी कमर टूट जाएगी। तीसरा, आतंकियों की संपत्त्यिां जब्त होंगी तो उन पर मानसिक दबाव बनाना आसान हो जाएगा। चौथा, लेन देन के नियम सख्त कर दिए जाएंगे तो इस सगठन की जरुरतें पूरी नहीं होंने से इसे फलने-फूलने का अवसर नहीं मिलेगा।

इससे पहले तुर्की में आयोजित जी-20 सम्मेलन में पूरी दुनिया के लिए सिरदर्द बन चुके आईएसआईएस संगठन के बारे में सबसे बड़ा सवाल रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने उठा चुके हैं। उन्होंने कहा था कि आखिर 40 देश इसकी मदद क्यों कर रहे हैं। उनका पता लगाना चाहिए कि वे देश कौन हैं। दुनिया को बचाने के लिए मददगारों को सबसे पहले रोकना चाहिए। आश्चर्य की बात है कि जी-20 के साथी देश भी इनमें शामिल हैं। यह संगठन तेल का गैरकानूनी कारोबार करता है। पुतिन का कहना सही था कि इसे तुरंत प्रभाव से ख़त्म करने की ज़रूरत पर जोर दिया जाए।

यही देश हैं जो आतंक का रोना भी रोते हैं और आईएसआईएस की भरपूर मदद भी करते हैं। इस सूची में सबसे ऊपर तो अमेरिका का ही नाम है। ताजा आतंकी हमला झेलने वाला फ्रांस, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, मैक्सिको, कनाडा, इस्राइल, अर्जेंटीना, तुर्की, सऊदी अरब, कतर, यूएई, कुवैत, बहरीन, ट्युनेशिया, लीबिया जैसे देश भी रुपए पैसे से बगदादी की मदद करते हैं। जब आतंकी संगठन को इन देशों से फंडिंग होती रहेगी तो उसे अपना काम करने में आसानी हो जाएगी।
इतना कुछ होने के बावजूद अमरीका आईएसआईएस को नेस्तनाबूद करने की हुंकार भरी है। तुर्की की राजधानी में बैठकर जी-20 देशों के जिन 20 शिखर नेताओं ने इस आतंकी संगठन के खिलाफ जंग का एलान किया था, उनमें दुनिया की दो तिहाई आबादी रहती है। साथ ही, दुनिया की सकल घरेलू उत्पाद के 85 फीसदी हिस्से पर इन्हीं का कब्जा है। दुनिया का 75 फीसदी कारोबार यही 20 देश करते हैं। इतना कुछ होने पर क्या से देश इस आतंकी संगठन को समाप्त कर पाएंगे। यह पेचीदा सवाल है।

 
इस्लामिक स्टेट के सरगना ने जितने इलाकों पर कब्जा कर रखा है उनमें रहने वाले लोग जो कुछ भी बेचते हैं वे उसका टैक्स बगदादी को देते हैं। विभिन्न देशों के लोगों का अपहरण करने के बाद बगदादी उन देशों की सरकारों से करोड़ों की फिरौती मांगता है। यह उसका आय का दूसरा स्रोत है। तीसरा स्रोत है तेल की तस्करी करना।​ जिन इलाकों पर आईएसआईएस का कब्जा है वहां के कुओं से तेल निकाल कर पहले रिफाइनरी में साफ किया जाता है फिर इसे तस्करों को बेच दिया जाता है। अत: आय के इन मुख्य स्रोतों को समाप्त करने के लिए इस संगठन के इर्द-गिर्द सेना का घेरा कसना होगा।

कुछ दिन पहले एक खबर इंटरनेट पर छाई हुई थी कि ब्रिटेन की एक संस्था के मुताबिक़ चरमपंथी संगठन आईएसआईएस को हर माह लगभग आठ करोड़ डॉलर यानि 530 करोड़ रुपए की आमदनी होती है। सवाल उठता है कि इतना पैसा आख़िर आता कहां से है? बात वही सामने आई कि इसकी आमदनी का एक बड़ा हिस्सा तेल व्यापार और वसूले गए टैक्स से आता है। इसके अलावा ज़ब्त की गई संपत्ति भी इसमें विशेष स्थान रखती है। आईएचएस नामक आर्थिक संस्था के अनुसार तेल व्यापार से 43 फीसदी और अन्य धनराशि नशीले पदार्थों की तस्करी, पुरातन तस्करी और अन्य तस्करी के ज़रिए इकट्ठी की जाती है। इस रिपोर्ट के में ये भी कहा गया है कि विदेशी स्रोतों से इस संगठन को काफ़ी कम मदद मिलती है। देखना यह है कि अब जी—20 के बाद जी—7 देशों की बारी है कि चिंता जताने के अलावा वे कुछ ठोस कदम उठाते हैं या नहीं।

 

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