Edited By ,Updated: 08 Jan, 2016 06:45 PM
सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिकता का मुद्दा लंबित है। 2013 में सर्वोच्च न्यायालय में इसे अपराध करार दिए जाने के बाद केंद्र सरकार ने इस मामले पर याचिका दायर की है।
कोलकाता: सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिकता का मुद्दा लंबित है। 2013 में सर्वोच्च न्यायालय में इसे अपराध करार दिए जाने के बाद केंद्र सरकार ने इस मामले पर याचिका दायर की है। संसद में भी इस मुद्दे पर बहस हुई, लेकिन कोई ठोस निष्कर्ष नहीं निकला।
जानकारी के मुताबिक, कोलकाता के एक समलैंगिक पुरुष ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी में अपना दर्द बयां करते हुए लिखा- सर, मैं गे (समलैंगिक) हूं। मैं कोलकाता के शोभाबाजार में पला-बढ़ा हूं। छोटा था तब मां ने मेरे लिए बहुत सपने देखे। मिशनरी स्कूल में पढऩे भेजा। 12 साल की उम्र में मुझे अहसास हुआ है कि मैं अपने दोस्तों से अलग हूं। तब से मैंने जिंदगी अपने हिसाब से गुजारी।
देश में एलजीबीटी आंदोलन काफी पिछड़ गया है। 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने पाबंदी लगाई। मैंने भी कोलकाता की सड़कों पर उतरकर विरोध प्रदर्शन किया। बीते दिनों मुझे उस समय बहुत दुख हुआ जब कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने गे सेक्स पर प्राइवेट बिल संसद में पेश करना चाहा, लेकिन अनुमति नहीं मिली। यह असहिष्णुता है। इतना सब होने के बाद मेरे मन में बहुत डर है।
आगे लिखा, मुझे सार्वजनिक स्थल पर अपने पार्टनर का हाथ पकडऩे से पहले दो बार सोचना पड़ता है। ऐसा लगता है मानो सरकार कह रही हो, आप काम कर सकते हैं, स्कूलो में पढ़ा सकते हैं, दुर्गा पूजा में हिस्सा ले सकते हैं, लेकिन प्यार नहीं कर सकते? मैं जानता हूं कि इस संबंध में जागरूकता फैसले का काम अकेला आपका नहीं है। यह हर भारतीय की जिम्मेदारी है। मैं आपसे पूछता हूं कि भारत में गे सेक्स गैरकानूनी क्यों होना चाहिए? मैं बात करने को तैयार हूं, लेकिन क्या आप सुनने को तैयार हैं?