सवर्ण आरक्षण बिल: बनेगा मास्टर स्ट्रोक या फिर महज चुनावी स्टंट?

Edited By Anil dev,Updated: 08 Jan, 2019 04:54 PM

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लोकसभा चुनाव से पहले मोदी सरकार ने बड़ा फैसला लेते हुए गरीब और आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों को सरकारी नौकरियों और उच्‍च शिक्षा संस्‍थानों में 10 प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला लिया है।

नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव से पहले मोदी सरकार ने बड़ा फैसला लेते हुए गरीब और आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों को सरकारी नौकरियों और उच्‍च शिक्षा संस्‍थानों में 10 प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला लिया है। पीएम मोदी का इतना साहसिक कदम ऐसे मौके पर लिया गया है जब चुनाव पास हैं और संसद सत्र खत्म होने वाला है। विपक्ष का कहना है कि मोदी का ये फैसला महज एक चुनावी स्टंट हैं और सवर्ण वोटर जोकि एसी-एसटी एक्ट में संशोधन के बाद से ही माना जा रहा था कि भाजपा से नाराज है, उसे लुभाने की कोशिश मात्र है। अब गौर करने वाली बात यह होगी कि ये बिल लोकसभा चुनाव में मोदी के लिए मास्टर स्ट्रोक या फिर महज चुनावी स्टंट बनकर रह जाएगा। एक नजर डालते हैं उन कारणों पर जिसकी वजह से यह बिल लटक सकता है।

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आरक्षण का आधार सबसे बड़ी पेंच
सवर्ण आरक्षण को लेकर जो दिक्कते सामने आने वाली हैं उसमें सबसे पहले हैं संविधान का आधार...देश के संविधान में जिन जातियों को आरक्षण मिला है वो सामाजिक और शैक्षणिक असमान्यता, गैर बराबरी को देखते हुए दिया गया था। लेकिन मोदी सरकार गरीब सवर्णों को जिनकी आमदनी 8 लाख से कम है को देना चाह रही है। इस हिसाब से ये आरक्षण का बंटवारा आर्थिक आधार पर हुआ जोकि संवैधानिक ढांचागत व्यवस्था के बिल्कुल इतर है। 

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दोनों सदनों में बहुमत से पास कराना मुश्किल
आर्थिक आधार पर आरक्षण देने के लिए सबसे पहले तो संसद में संविधान संशोधन बिल लाना पड़ेगा। ये संशोधन संविधान के अनुच्छेद 15 में किया जाना है और धारा 4 को जोड़ा जाना है। संशोधन की जरूरत इसलिए है क्योंकि सवर्ण आरक्षण मौजूदा 49.5 फीसदी आरक्षण की सीमा के ऊपर जा रहा है। इसके लिए सबसे पहले लोकसभा और राज्यसभा में इसे दो तिहाई बहुमत के साथ पास कराना महत्वपूर्ण है। हालिया स्थिति ये हैं कि लोकसभा में मोदी सरकार फिर भी इसे पास करा लेगी लेकिन राज्यसभा में इसे पास कराना टेढ़ी खीर साबित होगी। तो सवर्ण बिल अटक सकता है। 

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लंबी खिंचने वाली प्रक्रिया, समय कम
दूसरा, दोनों सदनों में पास करने के बाद कुछ राज्यों की सदन से भी पास करना होता है। इस लिहाज से ये एक लंबी खिंचने वाली प्रक्रिया हैं जिसके लिए फिलहाल मोदी सरकार के पास वक्त नहीं बचा है। अप्रैल-मई 2019 में लोकसभा चुनाव होने वाले हैं और अप्रैल तक आचार संहिता लागू हो जाएगी। ऐसे में सिर्फ तीन महीनों में इसे लागू करवाना थोड़ा मुश्किल नजर आ रहा है।

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