गोधरा कांड: गुजरात हाईकोर्ट ने 11 दोषियों की सजा-ए-मौत को उम्रकैद में बदला

Edited By Punjab Kesari,Updated: 09 Oct, 2017 01:51 PM

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गुजरात हाईकोर्ट ने गोधरा ट्रेन नरसंहार मामले में आज 11 दोषियों की सजा-ए-मौत को उम्रकैद में बदल दिया। अदालत ने इसी मामले में विशेष एसआईटी अदालत द्वारा 20 अन्य को सुनाई गई उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा।

अहमदाबाद: गुजरात हाईकोर्ट ने गोधरा ट्रेन नरसंहार मामले में आज 11 दोषियों की सजा-ए-मौत को उम्रकैद में बदल दिया। अदालत ने इसी मामले में विशेष एसआईटी अदालत द्वारा 20 अन्य को सुनाई गई उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा। गोधरा में 27 फरवरी, 2002 को ट्रेन जलाए जाने की घटना में 59 कारसेवक मारे गए थे। इस घटना के बाद गुजरात के इतिहास का सबसे भयंकर दंगा हुआ था। न्यायमूर्ति अनंत एस. दवे और न्यायमूर्ति जी. आर. उधवानी की खंडपीठ ने दोषियों तथा अभियोजन पक्ष की याचिकाओं पर आज का फैसला सुनाया। विशेष एसआईटी अदालत ने एक मार्च, 2011 को 31 लोगों को इस मामले में दोषी करार दिया था। इनमें से 11 लोगों को मौत की सजा तथा 20 लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। अदालत ने 63 लोगों को बरी कर दिया था। हाईकोर्ट ने राज्य सरकार और रेलवे को आदेश दिया कि वे ट्रेन जलाए जाने की घटना में मारे गए सभी लोगों के परिवारों को 10-10 लाख रुपए का मुआवजा दें।
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27 फरवरी 2002: गोधरा रेलवे स्टेशन के पास साबरमती ट्रेन के एस-6 कोच में भीड़ ने पेट्रोल डालकर आग लगा दी थी। इसमें 59 कारसेवकों की मौत हो गई। इस मामले में करीब 1500 लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई।

3 मार्च 2002: ट्रेन जलाने के मामले में गिरफ्तार किए लोगों के खिलाफ आतंकवाद निरोधक अध्यादेश यानि पोटा लगाया गया हालांकि उसे बाद में हटा भी लिया गया था।

6 मार्च 2002: सरकार ने ट्रेन में आग लगने और उसके बाद हुए दंगों की जांच करने के लिए एक आयोग नियुक्त किया।

18 फरवरी 2003: एक बार फिर आरोपियों के खिलाफ आतंकवाद संबंधी कानून लगा दिया गया। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कोई भी न्यायिक सुनवाई होने पर रोक लगा दी थी।

21 सितंबर 2004 : यूपीए की सरकार बनी और पोटा कानून के खत्म कर दिया।

जनवरी 2005: जांच कर रही यूसी बनर्जी समिति ने अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट में एस-6 में लगी आग को एक दुर्घटना बताया और इस बात की आशंका को खारिज किया कि आग बाहरी तत्वों द्वारा लगाई गई थी।

13 अक्तूबर 2006 : गुजरात हाईकोर्ट ने यूसी बनर्जी समिति की रिपोर्ट को यह कहते हुए ठुकरा दिया कि यह अमान्य है।

-2008 में एक जांच आयोग बनाया गया औक नानावटी आयोग को जांच सौंपी गई, जिसमें कहा गया था कि आग दुर्घटना नहीं बल्कि एक साजिश थी।

18 जनवरी 2011: सुप्रीम कोर्ट ने मामले में न्यायिक कार्रवाई करने को लेकर जो रोक लगाई थी वो हटा दी।

22 फरवरी 2011: विशेष अदालत ने गोधरा कांड में 31 लोगों को दोषी पाया, जबकि 63 अन्य को बरी कर दिया गया।

1 मार्च 2011: विशेष अदालत ने 11 को फांसी, 20 को उम्रकैद की सजा सुनाई।

-2014 में नानावती आयोग ने 12 साल की जांच के बाद गुजरात दंगों पर अपनी अंतिम रिपोर्ट तत्कालीन मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल को सौंप दी थी।

दूसरी ओर पिछली सुनवाई में गुजरात हाईकोर्ट ने साफ किया है कि गुजरात दंगों की दोबारा जांच नहीं होगी। गुजरात में गोधरा कांड के बाद हुए दंगों को लेकर तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट बरकरार रहेगी।

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