Edited By Seema Sharma,Updated: 31 Jul, 2019 09:15 AM
मुस्लिम महिलाओं को लंबे समय से इस दिन का इंतजार था। तीन तलाक की कुप्रथा ने अनेक महिलाओं के जीवन को नर्क कर दिया था। यह उनके साथ असमानता के व्यवहार का प्रतीक था। कुछ महिलाओं ने इसके खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ी।
नेशनल डेस्कः मुस्लिम महिलाओं को लंबे समय से इस दिन का इंतजार था। तीन तलाक की कुप्रथा ने अनेक महिलाओं के जीवन को नर्क कर दिया था। यह उनके साथ असमानता के व्यवहार का प्रतीक था। कुछ महिलाओं ने इसके खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ी। बहुत सी महिलाओं के लिए यह तीन तलाक के भय से मुक्ति का दिन है। विद्वानों का कहना है कि तीन तलाक का जिक्र न तो कुरान में कहीं आया है और न ही हदीस में। इस तरह तीन तलाक जिसे तलाक-ए-बिद्दत भी कहा जाता है, इस्लाम का मूल भाग नहीं है। तीन तलाक से पीड़ित कोई महिला उच्च अदालत पहुंची है तो अदालत ने कुरान और हदीस की रोशनी में ट्रिपल तलाक को गैर इस्लामिक कहा है। इसके बावजूद राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी की वजह से महिलाएं इस अभिशाप को ढो रही थीं। मगर अब इस पर रोक लगेगी। तीन तलाक देने वाले पुरुषों को जेल का डर सताएगा....
पिछले दो साल का घटनाक्रम
सुप्रीम कोर्ट में बहस (20 अगस्त 2017)
यूनिफार्म सिविल कोड पर सुप्रीम कोर्ट में भारत सरकार से चली लंबी बहस के बाद 22 अगस्त 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) को असंवैधानिक बताया। सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की पीठ में से तीन जजों का कहना था कि तीन तलाक का चलन असंवैधानिक है, जबकि दो जजों का कहना था कि तलाक वैधानिक है अगर सरकार चाहे तो कानून बनाकर इस पर रोक लगा सकती है।
लोकसभा में विधेयक पास (28 दिसंबर 2017)
मोदी सरकार ने मुस्लिम महिला (विवाह सुरक्षा एवं अधिकार) विधेयक संसद में पेश किया जो 28 दिसंबर 2017 को लोकसभा में पारित हो गया। इसमें प्रावधान किया गया कि किसी भी तरीके से तीन तलाक देने पर पति को तीन साल जेल की सजा होगी। लोकसभा में राजद, एआईएमआईएम, बीजद, कांग्रेस, अन्नाद्रमुक और आईयूएमएल के सांसदों ने विधेयक का विरोध किया। विधेयक का राज्यसभा में कड़ा विरोध हुआ।
दोबारा फिर पेश हुआ
भारी बहुमत से चुनाव जीतकर आई मोदी सरकार ने 25 जुलाई 2019 को इस विधेयक को फिर से लोकसभा में पेश किया और पास कराया। इसके बाद इसे 30 जुलाई को राज्यसभा में भी पास कर दिया गया।
यह भी जानें
मुस्लिम समुदाय के लिए तीन तरह के तलाक का उल्लेख आता है, जो इस तरह है-
1 तलाक-ए-अहसन
पति एक बार पत्नी से तलाक कहता है और शुद्धता की स्थिति में इद्दत के वक्त का इंतजार करता है। इस तलाक को इद्दत के वक्त में खत्म किया जा सकता है। मगर इद्दत का वक्त बीत जाने के बाद इस तलाक को नहीं बदला जा सकता।
2. तलाक-ए-हसन
इसमें तीन बार तलाक कहा जाता है मगर तीनों तलाक एक बार में ही नहीं कह सकते हैं। हर सफल तुहर (मासिक धर्म) के बाद एक तलाक कहना होता है और तीन तुहर के बाद तीन बार कहने पर यह तलाक पूरा होता है। अगर महिला को मासिक धर्म नहीं हो रहा है तो 30-30 दिन के अंतराल में तीन बार कहकर यह तलाक दिया जा सकता है। तीसरे तलाक से पहले कभी भी इस तलाक को खत्म कर मियां-बीवी साथ रह सकते हैं। मगर तीन बार कह देने के बाद इसे नहीं बदला जा सकता।
3. तलाक-ए-बिद्दत
बिद्दत का अर्थ है नया तरीका अर्थात तलाक का यह तरीका शुद्ध रूप से इस्लामिक नहीं है। माना जाता है कि इसे उमय्याद के दौरान शुरू किया गया। इसमें एक तुहर के दौरान ही तीन बार तलाक कहा जा सकता है या फिर एक बार में ही यह कहकर कि मैं तुम्हें तीन तलाक देता हूं, यह तलाक तत्काल दिया जा सकता है। इसे बदला नहीं जा सकता। इसमें एक बार तलाक देने के बाद उसी महिला से तब तक पुनर्विवाह नहीं किया जा सकता, जब तक कि वह किसी और से विवाह कर तलाक नहीं ले लेती। इसे हलाला कहा जाता है। हालांकि पूर्व नियोजित हलाला को पाप माना जाता है। तलाक-ए-बिद्दत को हनफी सुन्नी इस्लामिक विधान का हिस्सा माना जाता है। यह तलाक मौखिक, लिखकर या आधुनिक इलैक्ट्रानिक माध्यमों से भी दिया जा सकता है।
इस्लाम में शादी तोड़ने के चार तरीके हैं
1. तलाक : जब पति अपनी मर्जी से अलग हो जाता है
2. खुला : जब दोनों पक्षों के लोग बैठकर शादी खत्म करते हैं, पत्नी मेहर लेकर अलग होने को राजी हो जाती है
3. फस्ख-ए-निकाह : इसमें इस्लामिक कोर्ट या शरिया काऊंसिल द्वारा कुरान के मुताबिक तलाक तय किया जाता है। ऐसा तब होता है जब पत्नी तलाक लेना चाहती हो और पति इच्छुक न हो।
4. तफ्वीद-ए-तलाक : जब तलाक देना महिला की इच्छा पर छोड़ दिया जाता है।