Edited By Yaspal,Updated: 05 Dec, 2020 06:51 PM
कृषि कानूनों को लेकर दिल्ली की सीमाओं पर किसानों की नाराजगी का दौर 10वें दिन भी जारी है। सरकार के साथ 4 बार चर्चा होने के बाज भी कोई हल नहीं निकल सका है। हालांकि, इस दौरान सरकार कृषि कानूनों में कुछ संसोधन के संकेत दिए हैं। इतना ही नहीं मामले की...
नेशनल डेस्कः कृषि कानूनों को लेकर दिल्ली की सीमाओं पर किसानों की नाराजगी का दौर 10वें दिन भी जारी है। सरकार के साथ 4 बार चर्चा होने के बाज भी कोई हल नहीं निकल सका है। हालांकि, इस दौरान सरकार कृषि कानूनों में कुछ संसोधन के संकेत दिए हैं। इतना ही नहीं मामले की जानकारी रखने वाले सूत्रों ने बताया कि इसके लिए सरकार अलग से खास संसद सत्र का आयोजन भी कर सकती है।
सूत्रों ने बताया है कि सरकार भी किसानों की कुछ मांगों को मानना चाह रही है। माना जा रहा कि इन संशोधनों में एमएसपी (MSP), प्राइस गारंटी स्कीम और कॉन्ट्रैक्ट खेती के विवादों से जुड़ी तीन से चार काफी जरूरी मांगों को शामिल किया जा सकता है। इसके अलावा गैर सरकारी बाजारों से खरीदी करने पर निजी ग्राहकों को खुद को रजिस्टर भी कराना पड़ सकता है।
शनिवार को हुई पांचवे दौर की मीटिंग से पहले रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, गृहमंत्री अमित शाह और कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर (ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनके आवास पर चर्चा की थी। इन प्रदर्शनों को विपक्षी दलों का छलावा मानने के अलावा सरकार ने भी किसानों की मांगों को लेकर लचीलापन दिखाया है। सरकार को भरोसा है कि संशोधित कानूनों को संसद के दोनों सदनों में आराम से पास कर दिया जाएगा।
पंजाब और हरियाणा को सबसे ज्यादा डर
बीते सितंबर में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंदने तीन कृषि कानूनों पर हस्ताक्षर किए थे। कई लोगों ने इसे 1991 में प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के औद्योगिक बदलाव से जोड़कर देखा था। खास बात है कि सरकार के इन कानूनों से सबसे ज्यादा डर पंजाब और हरियाणा को है। ये दोनों राज्य चावल, गेंहूं के सबसे बड़े उत्पादक हैं और ये दोनों चीजें न्यूनतम समर्थन मूल्यों पर खरीदी जाती हैं।