Edited By Punjab Kesari,Updated: 30 Oct, 2017 07:53 PM
इस बीच गंदगी खाने वाले जीवाणुओं के इस्तेमाल से बड़े पैमाने पर जैविक उपचार कर कुछ हद तक गंगा नदी के पानी की गुणवत्ता को सुधारा जा सकता है
नई दिल्लीः स्वच्छ गंगा मिशन के तहत सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) लगाने में काफी समय लग रहा है। एेसे में सरकार ने एक नई तकनीक पर काम करना शुरू कर दिया है। अब सरकार बैक्टीरियल बायॉरेमेडिएशन टेक्नीक के जरिए गंगा के पानी को स्वच्छ बनाने पर विचार कर रही है।
बता दें, एसटीपी के तहत काम करने में 2 से 3 साल लग सकते हैं। इस बीच गंदगी खाने वाले जीवाणुओं के इस्तेमाल से बड़े पैमाने पर जैविक उपचार कर कुछ हद तक गंगा नदी के पानी की गुणवत्ता को सुधारा जा सकता है। इस तकनीक के तहत जीवाणु नदी के पानी में मौजूद प्रदूषकों जैसे तेल और ऑर्गैनिक मैटर को खा लेते हैं। सीवेज के ट्रीटमेंट में ये बैक्टीरिया महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
ट्रीटमेंट की प्रक्रिया के दौरान भारी धातु और जहरीले रसायन जैसे प्रदूषक कम हो जाते हैं। इस तकनीक के तहत माइक्रोब्स की डोज सीवेज में मौजूद ऑर्गैनिक प्रदूषकों की मौजूदगी के आधार पर निर्धारित की जाती है। पटना के बाकरगंज नाले में इस तकनीक का सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया है। राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) की ओर से हाल ही में दो और पायलट प्रॉजेक्ट्स को मंजूरी दी गई है। एक पटना में दूसरा इलाहाबाद में होगा।
एनएमसीजी ने कहा है कि यह तकनीक काफी कम खर्चीली है और इसके शुरू होने में महज 6 से 8 महीने का ही समय लगता है। एनएमसीजी द्वारा निर्धारित किए गए प्रॉजेक्ट्स की लागत 7 लाख से 17 करोड़ रुपए आ सकती है। जल संसाधन मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया, 'इन लो-कॉस्ट प्रॉजेक्ट्स को प्राइवेट/पब्लिक कंपनियों की कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (सीएसआर) से जुड़ी गतिविधियों के जरिए शुरू किया जाएगा।