ऑफ द रिकॉर्डः ‘गंभीर मुद्दों पर जनता से संवाद बनाने के लिए मंत्री समूह बनाएगी सरकार’

Edited By Pardeep,Updated: 26 Jan, 2021 04:52 AM

group of ministers will form govt to communicate with people on serious issues

सरकार अब-तब ऐसे गंभीर मुद्दों का सामना करती रहती है जिनमें संवाद की कमी उसके लिए परेशानी का कारण अधिक बनती है। ऐसी स्थिति से छुटकारा पाने के लिए सरकार मंत्रियों का एक छोटा समूह बनाने पर विचार कर रही है जो गंभीर मुद्दों...

नई दिल्लीः सरकार अब-तब ऐसे गंभीर मुद्दों का सामना करती रहती है जिनमें संवाद की कमी उसके लिए परेशानी का कारण अधिक बनती है। ऐसी स्थिति से छुटकारा पाने के लिए सरकार मंत्रियों का एक छोटा समूह बनाने पर विचार कर रही है जो गंभीर मुद्दों पर आम लोगों और उस मुद्दे विशेष से जुड़े खास वर्ग से संवाद का रास्ता बनाएगा। नए कृषि कानूनों को लेकर संवाद की कमी सरकार को सबसे अधिक अखरी है। पहले सरकार ने कृषि कानून बनाते हुए किसानों से कोई राय नहीं ली और अब जब किसान दिल्ली सीमा पर आ जमे हैं तो वह उनसे संवाद करके उन्हें शांत करने का प्रयास कर रही है। 

सरकार को अब यह समझ में आ रहा है कि पिछले सितम्बर में कृषि अधिनियम पारित करने में जल्दबाजी करने की बजाय अगर वह विपक्षी दलों से संवाद करके उन्हें विश्वास में ले लेती तो आज उसे परेशानी नहीं झेलनी पड़ती। कृषि कानूनों के अलावा कोवैक्सीन टीके का मसला भी कुछ ऐसा ही है। सरकार ने भारत बायोटैक के इस टीके के तीसरे चरण के प्रभावशाली आंकड़ों का इंतजार किए बिना ही उसे टीकाकरण के लिए अनुमति देकर मुसीबत मोल ले ली। वैसे कोवैक्सीन के विरोध जैसी कोई बात देश के लोगों में नहीं है बल्कि वे तो टीके का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। 

टीकों को टीकाकरण के लिए मंजूरी देने से दो दिन पहले कोविशील्ड को हरी झंडी दी गई और उसकी 50 मिलियन खुराकें भी तैयार थीं परंतु मोदी सरकार चाहती थी कि कोरोना से लड़ाई में एक और टीका होना चाहिए और उसने बड़ी ही जल्दबाजी में रहस्यमय ढंग से कोवैक्सीन को मंजूरी दे दी। औषधि नियंत्रक महानिदेशालय की विषय विशेषज्ञ समिति ने 36 घंटे के भीतर कोवैक्सीन के आपात इस्तेमाल को मंजूरी दे दी। इसके बाद सरकार पर आरोप लगे कि उसने लोगों को अच्छा इलाज देने के चक्कर में नियम तोड़कर उनके  ही जीवन को खतरे में डाल दिया। 

आई.सी.एम.आर., डी.सी.जी. आई. और स्वास्थ्य मंत्रालय में से किसी ने भी यह स्पष्ट नहीं किया कि कोरोना महामारी फैलने से लगभग एक साल पहले मार्च 2019 में सरकार ने टीकों व दवाइयों के आपात इस्तेमाल के नियम में बदलाव कर दिया था जिसमें तीसरे चरण के आंकड़ों का इंतजार किए बिना भी इनके इस्तेमाल को मंजूरी दे दी गई थी। इस तरह देखें तो कोवैक्सीन पर कोई मेहरबानी नहीं की गई। सरकार ने कोवैक्सीन के बारे में जनता को जागरूक करने के लिए भी कोई अभियान नहीं चलाया। 

जब वैज्ञानिक समुदाय ने कोवैक्सीन को लेकर सवाल उठाने शुरू किए तो आपात इस्तेमाल में बदलाव के मार्च 2019 के नियम खोदकर ढूंढ निकाले गए और डॉ. वी.के. पॉल ने प्रैस कॉन्फ्रैंस करके साफ किया कि ये नियम 2019 में बदले गए, 2020 में नहीं। अब सरकार के संवाद बनाने की योजना को मूर्तरूप देने के लिए केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर प्रधानमंत्री के विश्वसनीय हिरेन जोशी के साथ मंथन में जुट गए हैं।

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