गुजरात में कहां जाएंगे मुस्लिम?

Edited By Punjab Kesari,Updated: 22 Nov, 2017 10:52 AM

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विधानसभा चुनाव में पहले चरण के लिए राजनीतिक दलों ने अपनी सियासी बिसात बिछा दी है, लेकिन इस बार के चुनाव में मुस्लिम समुदाय खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। दरअसल पाटीदार, ओबीसी और दलितों की लड़ाई में मुस्लिम समुदाय के मतदाताओं को भाजपा और कांग्रेस...

नई दिल्ली: विधानसभा चुनाव में पहले चरण के लिए राजनीतिक दलों ने अपनी सियासी बिसात बिछा दी है, लेकिन इस बार के चुनाव में मुस्लिम समुदाय खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। दरअसल पाटीदार, ओबीसी और दलितों की लड़ाई में मुस्लिम समुदाय के मतदाताओं को भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों में तव्वजो नहीं दी जा रही है। हालांकि मुस्लिम समुदाय को कांग्रेस का परंपरागत वोट माना जाता है, लेकिन इसके बावजूद राहुल के नरम हिन्दुत्व के चलते गुजरात की सियासी फिजाओं में यह सवाल घूम रहा है कि आखिर मुस्लिम समुदाय चुनाव में किस दल का दामन थामेगा। यहां बता दें कि गुजरात में मुस्लिम समुदाय के मतदाताओं की संख्या करीब दस प्रतिशत है, लेकिन विधानसभा में उन्हें प्रतिनिधित्व एक प्रतिशत भी नहीं मिल पा रहा है। पिछले कुछ सालों में कांग्रेस और बीजेपी ने अल्पसंख्यक समुदाय से काफी कम प्रत्याशियों को टिकट दिए हैं, जबकि कहा जाता है कि इस विधानसभा में कम से कम 18 सीटों पर मुस्लिस समुदाय अपनी संख्या के बल पर चुनाव नतीजों को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं।

2012 के विधानसभा चुनावों में केवल 5 मुस्लिम प्रत्याशी थे मैदान में 
1980 में 17 मुस्लिम प्रत्याशी मैदान में थे, जिनमें 12 प्रत्याशी विधानसभा में जीतकर पहुंचे थे। 1990 के चुनाव में केवल 11 मुस्लिम प्रत्याशियों को टिकट दिया गया इनमें केवल तीन ही जीतकर विधानसभा पहुंचे।  2012 के विधानसभा चुनावों में केवल 5 मुस्लिम प्रत्याशी मैदान में थे, जिनमें से जीतकर दो ही प्रत्याशी विधानसभा पहुंच सके। ऐसे में मुस्लिम समुदाय इस बार कांग्रेस से ही उम्मीदें लगाए बैठा था, लेकिन हार्दिक, जिग्नेश और अल्पेश की सियासत में फंसी कांग्रेस में भी मुस्लिम समुदाय को उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिल पा रहा है। यही नहीं गुजरात में इस बार नरम हिन्दुत्व की राह पर चल रहे राहुल गांधी की सियासत से भी मुस्लिम असमंजस की स्थिति में हैं। हालांकि 2002 में हुए गोधराकांड के बाद से मुस्लिम समुदाय कांग्रेस को ही अपना शुभचिंतक मानता रहा है। 

 कांग्रेस के समर्थक माने जाते हैं ज्यादातर मुस्लिम मतदाता
बरूच निवासी मो. शफी कहते हैं कि भरूच, बड़ोदरा, सूरत अहमदाबाद, मेहसाना, मोरबी और राजकोट विधानसभा क्षेत्रों में मुस्लिम समुदाय के अत्याधिक मतदाता हैं। शफी कहते हैं कि ज्यादातर मुस्लिम मतदाता कांग्रेस के समर्थक माने जाते हैं, कुछ अमीर मुस्लिमों को छोड़कर। वह बताते हैं कि भरूच में करीब 300 सुन्नी मुस्लिम परिवार हैं, जिनकी संपत्ति 100 करोड़ के लगभग मानी जाती है। इनके  परिवार के ज्यादातर लोग विदेशों में बस गए हैं। यह समूह पारंपरिक रूप से कांग्रेस का समर्थक माना जाता है। पुराने सूरत पर कांग्रेस और बीजेपी दोनों की सत्ता देख चुके एक वरिष्ठ नागरिक नूर मुहम्मद कहते हैं कि शासन ने पूरी तरह से मुस्लिमों के अस्तित्व को ही नकार दिया है। उन्हें लगता है कि बीजेपी ने कई तरीकों से यह संदेश दिया है कि ‘आपका वोट हमें नहीं चाहिए.’ इनमें से एक तरीका निश्चित तौर पर किसी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नहीं देने का है, लेकिन, वोट नहीं मांगने का मतलब यह नहीं है कि वोट बेस ही नहीं है।  यहां के स्थानीय लोगों का आरोप है कि बीजेपी स्थानीय लोकप्रिय नेताओं को निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लडऩे के लिए रिश्वत देती है। कुछ को 50,000 रुपये मिलते हैं, तो कुछ को 1-2 लाख रुपये भी उनकी लोकप्रियता के हिसाब से दिए जाते हैं।  यहां के ज्यादातर नागरिकों की अभी भी प्रतिक्रिया यही है कि ‘हम तो अभी भी कांग्रेस को ही वोट देंगे। वे भले ही निराश हैं और गुस्से में हैं, लेकिन पूर्वी सूरत में 42 फीसदी वोटरों के लिए किसी विकल्प के न होने से शायद वे अभी भी कांग्रेस को छोड़कर कहीं और जाने की स्थिति में नहीं हैं।

बड़ोदरा को बनाना था शंघाई
बड़ोदरा के स्थानीय निवासी कहते हैं कि पिछले विधानसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी ने बड़ोदरा को शंघाई बनाने का वायदा किया था। लेकिन केंद्र में जाने के बाद भी इसे अकेला ही छोड़ दिया। आलम यह है कि शंघाई तो दूर स्थानीय निकाय के स्तर की सुविधाएं भी बड़ोदरा के लोगों को नहीं मिल पा रही हैं। वह कहते हैं कि हाल ही में प्रधानमंत्री का रोड शो प्रधानमंत्री की इसी वादाखिलाफी की भरपाई थी। हालांकि राहुल गांधी  इन क्षेत्रों में अपनी रैली में बड़ी संख्या में भीड़ को एकत्र करने में सफल हो रहे हैं। खास बात यह है कि यहां की पांच ग्रामीण क्षेत्रों की विधानसभा सीटों पर पिछले चुनाव में कांग्रेस और भाजपा के बीच कांटे का मुकाबला हुआ था। ऐसे में देखना यह होगा कि इस बार मोदी के बिना मैदान में उतरी भाजपा इन सीटों पर कैसा प्रदर्शन करती है, जबकि भाजपा को आरक्षण को लेकर पाटीदार, दलित और ओबीसी मतदाताओं की नाराजगी का सामना करना पड़ रहा है।

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