आखिर किसके पक्ष में जाएंगे पाटीदार

Edited By Punjab Kesari,Updated: 21 Nov, 2017 10:59 AM

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साल 2012 में केशुभाई पटेल ने गुजरात परिवर्तन पार्टी बनाई और 167 सीटों पर चुनाव लड़े जिसमें 2 सीटों पर उनकी जीत हुई थी। साल 1995 के बाद यह पहला समय था जब किसी तीसरी पार्टी ने वहां सीट जीती थी। जीपीपी का गठन पाटीदारों के खिलाफ हो रहे अन्याय को मुद्दा...

नई दिल्ली: साल 2012 में केशुभाई पटेल ने गुजरात परिवर्तन पार्टी बनाई और 167 सीटों पर चुनाव लड़े जिसमें 2 सीटों पर उनकी जीत हुई थी। साल 1995 के बाद यह पहला समय था जब किसी तीसरी पार्टी ने वहां सीट जीती थी। जीपीपी का गठन पाटीदारों के खिलाफ हो रहे अन्याय को मुद्दा बनाकर किया गया था और इसने 3.63 प्रतिशत वोट लाया था। अब फिर से चुनाव के समय पाटीदार नेता हार्दिक पटेल की उपस्थिति से ऐसा लग रहा है कि कहीं फिर से भाजपा को पाटीदार वोट खोना तो नहीं पड़ेगा। इस चुनाव में जहां, आधा से अधिक मतदाता 40 से कम उम्र के हैं, पाटीदार नेता हार्दिक युवाओं के चहेते बनते दिखाई दे रहे हैं। उल्लेखनीय है कि गुजरात में पाटीदारों का हिस्सा करीब 12 प्रतिशत है। करीब 71 सीटों पर 15 प्रतिशत पाटीदार मतदाता हैं, जो चुनाव की दिशा बदल सकते हैं। यही नहीं बारछा में 60 प्रतिशत तो कटरगाम में 40 प्रतिशत पाटीदार वोटर हैं। 

चुनाव लडऩे के योग्य नहीं हैं 23 साल के हार्दिक 
हालांकि, 23 साल के हार्दिक चुनाव लडऩे के योग्य नहीं हैं लेकिन चुनाव में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। उन्होंने नरेंद्र मोदी, अमित शाह और भाजपा के खिलाफ लोगों को एकत्र किया है। पिछले एक सप्ताह में हार्दिक के खिलाफ सेक्स वीडियो के माध्यम से हमला किया गया। वीडियो आने के बाद उसने कहा कि राजनीति में आने के बाद मुझे इसे स्वीकार करना है। हालांकि, भाजपा नेता अपने को इस वीडियो से अलग रखने की बात करते हैं लेकिन यह कहना नहीं भूलते कि पाटीदार नेता के वीडियो आने के बाद युवाओं के बीच उनकी लोकप्रियता घटी है। हार्दिक पटेल पहले सरदार पटेल ग्रुप से जुड़े हुए थे, जिसका नेतृत्व लालजी पटेल करते थे। बाद में वह इससे अलग हो गए और पाटीदारों के आरक्षण का मुद्दा उठाया। अगस्त 2015 में अहमदाबाद में एक बड़ी रैली भी की और फिर उन्हें गिर॥स्रतार किया गया। इस आंदोलन के दौरान 14 लोगों की मौत हो गई थी।

2002 के बाद गुजरात में पहली बार देखी गई थी ऐसी स्थिति
साल 2002 के बाद गुजरात में पहली बार ऐसी स्थिति देखी गई थी। हालांकि, इस आंदोलन के बाद हार्दिक को 6 महीने के लिए गुजरात से बाहर कर दिया गया लेकिन उनके अन्य सहयोगियों ने गुजरात में आंदोलन जारी रखा। इस बीच हार्दिक राजस्थान रहे लेकिन कई नेताओं के साथ मुलाकात भी की। पाटीदारों को खुश करने के लिए भाजपा सरकार ने आर्थिक तौर पर पिछड़ों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए अध्यादेश पारित किया, जिसे बाद में हाईकोर्ट ने अवैध करार दे दिया। गुजरात सरकार ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील भी की है। गुजरात लौटने के बाद हार्दिक ने फिर से पाटीदारों को एकत्र करना शुरू किया और भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोल दी। इस बीच उनके कई सहयोगियों ने उनका साथ छोड़ दिया। पास कोर कमेटी के सदस्य चिराग पटेल और केतन पटले भाजपा में चले गए और अभी वरूण पटेल और रेशमा पटेल भी भाजाप में शामिल हो गए हैं। नरेंद्र पटेल भी भाजपा में गए थे लेकिन बाद में उन्होंने भाजपा के ऊपर आरोप लगाया और फिर भाजपा का साथ छोड़ दिया। ऐसे में पाटीदार किस ओर जाएंगे इस बारे में फिलहाल कोई दावा नहीं किया जा सकता है, लेकिन इतना तो तय है कि आगामी चुनाव में कई सीटों पर पाटीदार उम्मीदवारों का भविष्य तय करेंगे।


कांग्रेस को हार्दिक का साथ
भले हीं ओबीसी नेता अल्पेश ठाकुर कांग्रेस में शामिल हुए हों लेकिन कांग्रेस हार्दिक पटेल को अपना मुख्य हथियार बना रहे हैं। साल 2015 के स्थानीय चुनाव में हार्दिक के आंदोलन के कारण उसे फायदा हुआ था। सूरत के निकाय चुनाव में 116 में से 33 सीटों पर कांग्रेस की जीत हुई थी। अब कांग्रेस विधायक महेश पटेल कहते हैं कि पाटीदार समुदाय हार्दिक के साथ है। उनका कहना है कि सेक्स वीडियो को मुद्दा नहीं बल्कि आरक्षण मुद्दा है। दूसरी ओर हार्दिक के पूर्व सहयोगी वरूण पटेल कहते हैं कि हार्दिक परोक्ष तौर पर कांग्रेस का समर्थन करते रहे, जो हम नहीं चाहते थे और इसलिए हमने भाजपा में शामिल होने का फैसला किया। 

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