गुजरात में किसानों की नाराजगी BJP पर पड़ सकती है भारी

Edited By Anil dev,Updated: 24 Apr, 2019 11:13 AM

gujarat bjp narendra modi amit shah

गुजरात में किसानों की नाराजगी इस बार भाजपा पर भारी पड़ सकती है। गुजरात में सौराष्ट्र का किसान इस समय बेहद नाराज है। उनकी इस नाराजगी की मूल वजह फसल बीमा और फसल की सही कीमत नहीं मिलना है। चुनाव विशेषज्ञों ने बताया कि गुजरात में अपेक्षा से कम बारिश का...

इलैक्शन डैस्क: गुजरात में किसानों की नाराजगी इस बार भाजपा पर भारी पड़ सकती है। गुजरात में सौराष्ट्र का किसान इस समय बेहद नाराज है। उनकी इस नाराजगी की मूल वजह फसल बीमा और फसल की सही कीमत नहीं मिलना है। चुनाव विशेषज्ञों ने बताया कि गुजरात में अपेक्षा से कम बारिश का सीधा असर कपास की खेती पर पड़ा है। किसानों की अपेक्षा थी कि फसल में हुए नुक्सान के एवज में उन्हें करीब 60 फीसदी तक फसल बीमा मिलेगा लेकिन फसल बीमा के जरिए 17 से 41 फीसदी के बीच मुआवजा दिया गया। 

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मोदी और शाह से जुड़ा है गुजरात
वहीं मूंगफली की खरीद में देरी और सही कीमत न मिलने से भी किसान रुष्ट हैं। गुजरात में किसानों की यह नाराजगी नतीजे तो नहीं बदल पाएगी पर हार और जीत का अंतर जरूर कम कर सकती है। गुजरात में 26 सीटें हैं। चूंकि गुजरात सीधे तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से जुड़ा हुआ है। लिहाजा पूरे देश की निगाहें खासतौर पर गुजरात में हो रहे मतदान की तरफ  हैं। 2019 के इस लोकसभा चुनाव में भाजपा यह मानकर चल रही है कि 2014 के लोकसभा चुनाव की तरह उसे इस बार भी गुजरात से बड़ी जीत हासिल होगी। वहीं बीते विधानसभा चुनाव की सफलता को देखते हुए इस बार कांग्रेस भी गुजरात से अच्छी खबर की आस लगाए हुए है। हालांकि इस चुनाव में किसके खाते में खुशी आती है और किसके खाते में गम इसका फैसला 23 मई को लोकसभा चुनाव 2019 के अंतिम नतीजे सामने आने के बाद ही हो सकेगा।


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जातिगत समीकरण
दोनों ही प्रमुख राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों की घोषणा में जातिवादी राजनीति भी दिखी है। भाजपा ने 9 ओ.बी.सी., 5 आदिवासी, 6 पाटीदार, 2 दलित जबकि एक 1 बनिया को टिकट दिया है। कांग्रेस ने 9 ओ.बी.सी., 8 पाटीदार, 5 आदिवासी, 2 दलित, 1 बनिया और एक मुस्लिम को टिकट दिया है। दिलचस्प बात तो यह है कि 1984 के बाद पहली बार कांग्रेस ने मुस्लिम को टिकट दिया है जबकि भाजपा ने तो कभी मुस्लिम को सांसद के चुनाव के लिए टिकट नहीं दिया है। वहीं पिछले 27 साल से गुजरात में भाजपा का राज है, ऐसे में एंटी-इन्कम्बैंसी भी भाजपा को 26 में से 26 सीटें जीत पाने में मुश्किल खड़ी कर रही है।

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क्या पाटीदार निभाएंगे निर्णायक भूमिका?
2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव में पाटीदारों ने अहम भूमिका अदा की थी, पाटीदारों के आंदोलन का असर था कि 60 से 70 फीसदी पाटीदारों ने अपना पाला बदल दिया था। लोकसभा चुनाव 2019 में ऐसी स्थिति नहीं है। पाटीदारों का बड़ा वर्ग है जो हार्दिक के कांग्रेस में जाने से नाराज है। फिलहाल गुजरात में दिख रही स्थिति के अनुसार आंदोलनरत पाटीदारों की संख्या 30 से 35 फीसदी तक सिमट गई है। उन्होंने बताया कि 30 से 35 फीसदी पाटीदार हमेशा से कांग्रेस के पक्ष में रहे हैं। पाटीदारों की यह टूट चुनाव में कहीं न कहीं भाजपा के लिए मददगार साबित हो सकती है। अर्बन और सब-अर्बन इलाकों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जादू अभी भी बरकरार है। यह जादू भाजपा के पक्ष में नतीजे परिवर्तित कर सकता है।

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