गुजरात के किसानों ने की बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट रोकने की मांग, SC ने जारी किया सरकार को नोटिस

Edited By Yaspal,Updated: 17 Jan, 2020 11:05 PM

gujarat farmers demand stoppage of bullet train project

सुप्रीम कोर्ट महत्वाकांक्षी अहमदाबाद-मुंबई बुलेट ट्रेन परियोजना के लिये भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को चुनौती देने वाली किसानों की याचिकाओं पर सुनवाई के लिये शुक्रवार को सहमत हो गया। इन किसानों ने गुजरात होईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी है जिसने उनकी...

नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट महत्वाकांक्षी अहमदाबाद-मुंबई बुलेट ट्रेन परियोजना के लिये भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को चुनौती देने वाली किसानों की याचिकाओं पर सुनवाई के लिये शुक्रवार को सहमत हो गया। इन किसानों ने गुजरात होईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी है जिसने उनकी याचिकाओं को खारिज कर दिया था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और जापान के प्रधान मंत्री शिन्जो अबे ने सितंबर, 2017 में यह परियोजना शुरू की थी। अहमदाबाद-मुंबई के बीच बुलेट ट्रेन 320-350 प्रति किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलेगी और 508 किलोमीटर की इस दूरी में 12 स्टेशन होंगे।

न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति अनिरूद्ध बोस की पीठ ने हाईकोर्ट के 19 सितंबर, 2019 के फैसले के खिलाफ किसानों की याचिकाओं पर केन्द्र, गुजरात सरकार और अन्य को नोटिस जारी किये। इन अपीलकर्ताओं ने अंतरिम राहत के रूप में गुजरात सरकार को बुलेट ट्रेन परियोजना के लिये भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया पर आगे बढ़ने से रोकने का अनुरोध किया है। पीठ ने अपने आदेश में प्रतिवादियों को याचिका और भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया पर रोक लगाने के आवेदन पर नोटिस जारी किये। इन नोटिस का जवाब 20 मार्च तक देना है।

पीठ ने कहा कि गुजरात सरकार के वकील को नोटिस तामील किया जाये और इस पर चार सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल किया जा सकता है। इस जवाब का प्रत्युत्तर इसके बाद दो सप्ताह के भीतर दाखिल किया जाये। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में गुजरात सरकार द्वारा 2016 में भूमि अधिग्रहण कानून में किये गये संशोधन को सही ठहराया था। संशोधित भूमि अधिग्रहण कानून को बाद में राष्ट्रपति से अपनी संस्तुति प्रदान कर दी थी।

हाईकोर्ट ने किसानों के इस दावे को अस्वीकार कर दिया कि गुजरात सरकार को भूमि अधिग्रहण के लिये अधिसूचना जारी करने का अधिकार नहीं है क्योंकि यह परियोजना गुजरात और महाराष्ट्र दो राज्यों के बीच बंटी हुयी है। अदालत ने यह भी कहा था कि सामाजिक प्रभाव के आकलन के बगैर ही भूमि अधिग्रहण शुरू करने के लिये अधिसूचना जारी करना भी वैध है।

 

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