Edited By Yaspal,Updated: 04 Dec, 2022 07:15 PM
गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार में दूसरों का धर्मांतरण कराने का अधिकार शामिल नहीं है। सरकार ने शीर्ष अदालत से राज्य के एक कानून के प्रावधान पर हाईकोर्ट के स्थगन को रद्द करने का अनुरोध किया
नई दिल्लीः गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार में दूसरों का धर्मांतरण कराने का अधिकार शामिल नहीं है। सरकार ने शीर्ष अदालत से राज्य के एक कानून के प्रावधान पर हाईकोर्ट के स्थगन को रद्द करने का अनुरोध किया। इस कानून के तहत विवाह के माध्यम से धर्मांतरण के लिए जिला मजिस्ट्रेट की पूर्व अनुमति आवश्यक है।
गुजरात हाईकोर्ट ने 19 अगस्त और 26 अगस्त 2021 के अपने आदेशों के माध्यम से राज्य सरकार के धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम, 2003 की धारा 5 के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी थी। वकील अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर जनहित याचिका के जवाब में दाखिल अपने हलफनामे में राज्य सरकार ने कहा कि उसने एक आवेदन दाखिल कर हाईकोर्ट के स्थगन को खारिज करने का अनुरोध किया है।
हलफनामे में कहा गया, ‘‘धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार में दूसरों का धर्म बदलने का मौलिक अधिकार शामिल नहीं है। कथित अधिकार में किसी का धोखाधड़ी, छल, बलपूर्वक, प्रलोभन या अन्य तरीकों से धर्मांतरण करना शामिल नहीं है।'' राज्य सरकार ने कहा कि मध्य प्रदेश धर्म स्वातंत्र्य अधिनियम, 1968 और उड़ीसा धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम, 1967 की संवैधानिकता को 1977 में एक संविधान पीठ के समक्ष चुनौती दी गयी थी। दोनों कानून गुजरात धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम, 2003 के संगत हैं।
सरकार ने कहा, ‘‘गुजरात राज्य में संगठित और बड़े स्तर पर अवैध धर्मांतरण की समस्या पर नियंत्रण और लगाम लगाने के प्रावधान वाले गुजरात धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम, 2003 को इस अदालत ने कायम रखा है।'' राज्य ने कहा कि उच्च न्यायालय ने आदेश पारित करते हुए इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि 2003 के कानून की धारा 5 के क्रियान्वयन पर रोक लगाने से कानून का उद्देश्य ही विफल हो जाएगा।