फांसी देने से पहले जल्लाद कान में बोलता है यह आखिरी शब्द, सुनते ही थर-थर कांपने लगते हैं अपराधी

Edited By Anil dev,Updated: 22 Aug, 2019 01:32 PM

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किसी जघन्य अपराध के लिए दोषी को सजा-ए-मौत सुनाई जाती है और जब फांसी देने का समय आता है तो कुछ नियमों का बड़ी सावधानी से पालन करना पड़ता है। अगर नियमों का ध्यान न रखा जाए तो फांसी की प्रक्रिया अधूरी मानी जाती है।

नेशनल डेस्क:  किसी जघन्य अपराध के लिए दोषी को सजा-ए-मौत सुनाई जाती है और जब फांसी देने का समय आता है तो कुछ नियमों का बड़ी सावधानी से पालन करना पड़ता है। अगर नियमों का ध्यान न रखा जाए तो फांसी की प्रक्रिया अधूरी मानी जाती है। फांसी का फंदा, फांसी देने का समय आदि का विशेष ध्यान रखा जाता है। फांसी में सबसे बड़ी भूमिका होती है जल्लाद की। जिस अपराधी को फांसी दी जाती है, उसके आखिरी वक्त में उसके साथ जल्लाद ही खड़ा होता है। वहीं, फांसी देने से पहले अपराधी के कानों में जल्लाद कुछ बोलता है और उसके बाद चबूतरे से जुड़ा लीवर खींच देता है।

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दरअसल जल्लाद फांसी देने के कुछ देर पहले वह अपराधी के कान में यह कहता है कि भाई मुझे माफ कर देना, मैं तो एक सरकारी कर्मचारी हूं। कानून के हाथों मजबूर हूं। इसके बाद अगर मुजरिम हिंदू है तो वह उसे राम राम बोलता है। वही अगर मुस्लिम है तो वह उसे आखिरी दफा सलाम करता है। साथ ही जल्लाद कहता है कि मैं तो सरकार के हुक्म का गुलाम हूं, इसलिए जानबूझकर तुम्हें मौत नहीं दे रहा हूं।

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जानिए फांसी के वक्त की एक-एक बात

  • कोर्ट में अपराधी को फांसी की सजा सुनाने के बाद जज पेन की निब तोड़ देते हैं। निब तोड़ना इस बात का प्रतीक है कि अब उस व्यक्ति का जीवन समाप्त हो गया है। 
  • फांसी देते वक्त जेल अधीक्षक, एग्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट, जल्लाद और डॉक्टर मौजूद रहते हैं। इनके बिना फांसी नहीं दी जाती।
  • फांसी देने से पहले कैदी को नहलाया जाता है और नए कपड़े पहनाए जाते हैं।
  • फांसी देने से पहले व्यक्ति की आखिरी इच्छा भी पूछी जाती है, जिसमें परिजनों से मिलना, अच्छा खाना या अन्य इच्छाएं शामिल होती हैं, जो भी वो अपनी इस जिंदगी के खत्म होने से पहले करना चाहता है।

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  • मनीला रस्सी से फांसी का फंदा बनता है। बिहार के बक्सर जेल में एक मशीन है, जिसकी मदद से फांसी का फंदा बनाया जाता है।
  • फांसी सुबह होने से पहले ही दी जाती है। ऐसा इसलिए ताकि सुबह जेल के अन्य कैदियों का काम न रुके। वैसे, अंग्रेजों के जमाने से ही ऐसी व्यवस्था चली आ रही है। साथ ही, इस समय इसलिए भी फांसी दी जाती है, ताकि सुबह कैदी के परिवार वाले उसका अंतिम संस्कार समयानुसार कर सकें।

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