हरेन पांड्या मर्डर केस: नहीं मिली 10 दोषियों को राहत, सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की पुनर्विचार याचिका

Edited By Yaspal,Updated: 21 Nov, 2019 07:06 PM

haren pandya murder case sc dismisses reconsideration petition

उच्चतम न्यायालय ने गुजरात के पूर्व गृह मंत्री हरेन पांड्या की हत्या के दोषियों की पुनर्विचार याचिकाएं गुरुवार को खारिज कर दी। न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति विनीत सरन की पीठ ने पांच जुलाई के अपने फैसले के खिलाफ 12...

नई दिल्लीः उच्चतम न्यायालय ने गुजरात के पूर्व गृह मंत्री हरेन पांड्या की हत्या के दोषियों की पुनर्विचार याचिकाएं गुरुवार को खारिज कर दी। न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति विनीत सरन की पीठ ने पांच जुलाई के अपने फैसले के खिलाफ 12 में से 10 दोषियों की पुनर्विचार याचिकाएं निरस्त कर दी। सर्वोच्च अदालत ने 12 में से 10 दोषियों की ओर से दायर पुनर्विचार याचिकाओं को खारिज किया।

अदालत ने कहा कि फैसले पर दोबारा से विचार करने कि मांग में कोई योग्यता नहीं है। फैसले में कोई कमी या खामी नहीं है। वर्ष 2003 के हत्या मामले में उच्चतम न्यायालय के फैसले को पलटते हुए आरोपियों को उम्र कैद की सजा सुनाई थी। गुजरात उच्च न्यायालय साल 2003 के हरेन पांड्या हत्याकांड के सभी 12 आरोपियों को हत्या के आरोप से बरी कर दिया था। गुजरात में नरेंद्र मोदी की सरकार के समय तत्कालीन गृह मंत्री हरेन पांड्या की 26 मार्च 2003 को अहमदाबाद के लॉ गाडर्न इलाके में उस समय गोली मारकर हत्या कर दी गई थी, जब वे सुबह की सैर कर रहे थे। इस हत्या का आरोप 12 लोगों पर था।

उच्च न्यायालय ने इस मामले की सुनवाई में कहा था कि सीबीआई की जांच की दिशा स्पष्ट नहीं है। उच्च न्यायालय ने यह भी कहा था कि जांच के दौरान कुछ तथ्यों की अनदेखी की गई और बहुत कुछ छूट गया। हाईकोर्ट में मामला जाने से पहले सेशन कोर्ट ने आरोपियों को हत्या करने और आपराधिक साजिश रचने का दोषी माना था।

गौरतलब है कि हरेन पांड्या की हत्या उस वक्त हुई थी गुजरात में नरेंद्र मोदी की सरकार थी। उस समय आतंकवाद निरोधक कानून के तहत विशेष पोटा कोर्ट ने सभी आरोपियों को दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी। आरोपियों ने इस फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। वर्ष 2011 में 29 अगस्त को गुजरात उच्च न्यायालय ने सत्र अदालत के फैसले को पलट दिया और सभी आरोपियों को बरी कर दिया। उच्च न्यायालय के इस फैसले के खिलाफ सीबीआई ने 2012 में सुप्रीम कोर्ट  का दरवाजा खटखटाया था।

 

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