22 अक्तूबर 1947ः कबाइलियों ने लगाया था नारा- हिन्दू की जर और सिख का सिर

Edited By Monika Jamwal,Updated: 22 Oct, 2020 11:02 AM

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लार्ड बर्डवुड ने अपनी किताब टू नेशनस एंड कश्मीर में 22 अक्तूबर 1947 का काला सच उकेरा है

श्रीनगर: लार्ड बर्डवुड ने अपनी किताब टू नेशनस एंड कश्मीर में 22 अक्तूबर 1947 का काला सच उकेरा है  इतिहास के पन्नों में दबा काला सच यह है कि उस दिन सात हजार कबाइली तीन सौ लारियों में भरकर एबेटाबाद से होते हुये जम्मू कश्मीर में आ घुसी थी। जेएंडके स्टेट इन्फेंटरी के जवानों ने इन्हें मुज्फराबाद जाने से रोकना था, इनमें डोगरा और मुस्लमानों की दो कंपनियां-कपंनियां थीं। अफसोस इस बात का था कि मुस्लमान जवानों की कपंनियां दुश्मनों के खेमे में जा मिली दुश्मनों की इन टोलियों ने वो किया जो इतिहास में काले अक्षरों से लिखा गया।


बारामूला में लूट, बलातकार और हत्या का नंगा खेल
मुज्जफराबद और दोमेल में तांडव करने के बाद 25 अक्तूबर तक कबाइली झेहलम वादी की तरफ का रूख कर चुके थे उनका टारगेट बारामूला था । नशे में चूर, जंगली बन चुके आदिवासियों पर सफलता का नशा ऐसा हावी हो गया कि वो भूल गये कि उनका मकसद क्या था और वे लूट, बलातकार में व्यस्त हो गये । उनके इस कुकर्म की शिकार कुछ यूरोपिय नन भी हुईं जोकि लोगों की मदद करने और आत्मध्यान के लिए वहां पर थीं झेहलम की सुन्दरता को तहस नहस कर उनके सिर पर जो खुमारी चढ़ी उसमें उन्होंने एक नारा लगाया और वो नारा था , हिन्दू की जर और सिख का सिर। अदविासी जंगली वर्ताव के लिए जाने जाते हैं और उन्होंने वही सब किया। दो दिन तक उन्होंने बारामूला में लूट और बलातकार का तांडव किया। हांलाकि कबाइली श्रीनगर को हासिल करने का सपना सच नहीं कर पाए। वे लोग लूटपाट करने में इतने व्यस्त थे कि जब उनके मुख्य नेता भारतीय सेना के साथ आमने-सामने हुये तो बाकी के कबाइली सैनिक बारामूला और उसके आस पास लूट में व्यस्त थे।  इसमें कोई शक नहीं कि किस्मत से ही श्रीनगर कबाइलयों के हाथ नहीं लगा और इस बात का खुलासा अकबर खान ने अपनी किताब रेडर्स इन कश्मीर में किया है।

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कबाइली ृ4 अक्तूबर को बारामूला पहुंचे। बारामूला श्रीनगर से 35 मील दूर है। तब तक कश्मीर का विलय भारत में नहीं हुआ था और भारतीय सेना कश्मीर नहीं पहुंची थी। सिर्फ दो घंटे लगते और कबाइली श्रीनगर में दाखिल हो जाते। बाकी सब उनके भरोसे। लेकिन कबाइली लूट में व्यस्त रहे और वे असली मकसद भूल गये। अकबर खान ने अपनी किताब में रेप का जिक्र नहीं किया है।
हमलावरों की बर्बरता का वर्णन ले जनरल एल पी सेन ने किया है। वे उस समय ब्रिगेड कमांडर थे और दुश्मनों से लोह लेने पहुंचे थे। उन्हेंने लिखा है,  भारतीय सेना श्रीनगर शहर में दाखिल हुई और  8 नवंबर 1947 को उसे कबाइली हमले से मुक्त करवा लिया गया। उन्होंने कहा है, कबाइली बारामूला की लूट और वहां रेप में व्यस्त हो गये। 14000 की आबादी में से सिर्फ एक हजार लोग बचे। उन्होंने उस समय को दोहराया जब दिल्ल्ली में नादिर शाह ने उत्पात मचाया था। लार्ड बर्डबुड लिखते हैं, पाकिस्तान उसी समय हार गया था जब उसने कश्मीर मिशन के लिए कबाइली लोग चुने थे। उन्होंने लिखा है, कश्मीर में लडाई के लिए पाकिस्तान ने महासू जनजाति को चुना। यह आदिवासी समुदाय के सबसे जंगली और खतरनाक लोग हैं। पास्तिान ने यही मूर्खता कर दी। इनमें अफरीदी,वाना वजरी, मोहम्मद, स्वाति और वुनरेवाला जाति के लोग थे। पख्तूनों ने किसी की भी कमान को मानने से इन्कार कर दिया। खुर्शीद अहमद नामक सैन्य कमांडर ने उन्हें समझाने का प्रयास किया कि वे सब लूट और बलातकार में से निकलें और उस काम को पूरा करें जो उन्हें दिया गया पर खुर्शीद को कबाइलियों ने बहुत बुरी मौत दी। हमलावरों को लगा कि भारत अयोग्य है और वो उन्हें जवाब नहीं देगा पर भारतीस राजनीति में इसको लेकर पाकिस्तान को कडा जवाब देने की ठानी और उसकी घुसपैंठ को वॉर के तौर पर लिया। नेहरू ने इसको लेकर प्रतिक्रिया दी और कहा, कष्मीर में पाकिस्तान की घुसपैंठ अचानक नही है बल्कि सोची समझी साजिश है।


1965 का युद्ध
  समय बीतने के साथ भारत का कश्मीर के साथ रिश्ता मजबूत होता गया। पाकिस्तान के हुक्मरानों के मन में डर बैठ गया कि वो कश्मीर को खो सकते हैं। 1964 में आईएसआई के निदेशक ब्रिगेडियर रियाज हुसैन ने अनुमान लगाने शुरू कर दिये कि चीन से हारने और नेहरू की मौत के बाद कश्मीर में लोग परेशान हैं। भारत से नाखुश हैं। उन्हें लगा कि यही मौका है भारत से कश्मीर को हथियाने का। इसी साजिश के मददेनजर पाकिस्तान ने एक बड़ी साजिश रची और दो आॅपरेशन शुरू किये। कश्मीर में आॅपरेशन गिबरालतार  और जम्मू में आॅपरेशन ग्रैंड स्लैम। पहले आॅपरेशन में गोरिल्ला युद्ध था। पाकिस्तान की चाल थी कि कश्मीर की अशांति से निपटने के लिए जम्मू कश्मीर की सारी ताकत और ध्यान लगा दिया जाए और उसके बाद वो जम्मू में आॅपरेशन ग्रैंड स्लैम शुरू करता। पाकिस्तान भूल गया था कि गोरिल्ला युद्ध तब जीता जा सकता है जब उसे जनता का सहयोग हो और कश्मीर में उसे वो नहीं मिला। कश्मीर को हथियाने के लिए पाकिस्तान ने कई चालें चलीं पर उसने कश्मीर को सिवाय दर्द के कुछ नहीं दिया।
 

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