दिल्ली में कितने बंदर? पहली बार होगी जनगणना

Edited By Seema Sharma,Updated: 11 Jul, 2019 03:31 PM

how many monkeys in delhi census will be for the first time

रिहायशी इलाकों में बंदरों को पकड़ने पर करोंड़ों रुपए खर्च करने और उन्हें असोला वन्यजीव अभयारण्य भेजने के बावजूद राष्ट्रीय राजधानी में पिछले साल बंदरों के काटने के 950 मामले और दो लोगों के मरने का मामला दर्ज किया गया, जो दिखाते हैं

नई दिल्ली: रिहायशी इलाकों में बंदरों को पकड़ने पर करोंड़ों रुपए खर्च करने और उन्हें असोला वन्यजीव अभयारण्य भेजने के बावजूद राष्ट्रीय राजधानी में पिछले साल बंदरों के काटने के 950 मामले और दो लोगों के मरने का मामला दर्ज किया गया, जो दिखाते हैं कि बंदरों के खतरे को रोकने के प्रयास नाकाफी रहे। कई लोगों के मुताबिक बंदरों की समस्या इसलिए बनी हुई है क्योंकि इन्हें पकड़ने और इनके बंध्याकरण के लिए नगर निगम या वन्य विभाग कौन जिम्मेदार है, इसे लेकर अब भी भ्रम की स्थिति बनी हुई है। वहीं बंदरों की समस्या से निपटने के लिए दिल्ली में मौजूद बंदरों की जनगणना की जाएगी। यह जनगणना देहरादून में मौजूद वाइल्डलाइफ इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया की मदद से होगी।


दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार को दिए थे निर्देश
इससे पहले 2007 में दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार से बंदरों को पकड़ने के लिए पिंजरा मुहैया कराने तथा नगर निगमों को इसे अलग-अलग स्थानों पर रखने का निर्देश दिया था। अदालत ने अधिकारियों को पकड़े गए इन बंदरों को असोला अभयारण्य में छोड़ने तथा वन विभाग को उन्हें भोजन उपलब्ध कराने का निर्देश दिया था ताकि ये बंदर वहां से कहीं और नहीं जाए। मानव बस्तियों में बंदरों के प्रवेश को रोकने के लिए अदालत ने अधिकारियों को वैसी जगहों के बाहरी क्षेत्र में 15 फुट ऊंची दीवार बनाने का भी निर्देश दिया था जहां बंदरों को भेजा गया है।


20,000 से अधिक बंदरों को अभयारण्य भेजा गया था
अधिकारियों ने बताया कि 20,000 से अधिक बंदरों को अभयारण्य भेजा गया लेकिन मानव बस्तियों में कितने बंदर इधर-उधर भटक रहे हैं, इसका कोई वास्तविक आंकड़ा नहीं है। इसके अलावा असोला अभयारण्य में भेजे गए बंदर भी मानव बस्तियों में वापस आ जाते हैं क्योंकि दीवारों में लोहे का ढांचा बना है जिससे ये बंदर आसानी से दीवार से निकल आते हैं। 2018 में नगर निगमों ने कुल 878 बंदरों को पकड़ा था जिसमें पूर्वी दिल्ली नगर निगम (ईडीएमसी) ने सिर्फ 20 बंदर पकड़े थे। दक्षिण दिल्ली नगर निगम के एक अधिकारी ने बताया कि वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 के तहत ‘रिसस मकाक' एक संरक्षित पशु है, इसका मतलब है कि बंदरों को पकड़ने और उन्हें अभयारण्य भेजने की जिम्मेदारी वन विभाग की है। अधिकारी ने बताया कि इसलिए हाईकोर्ट के निर्देश के कई अर्थ हैं। इसमें यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि बंदरों को पकड़ने और उनके बंध्याकरण के लिए कौन जिम्मेदार है। वहीं वन विभाग की दलील है कि मानव बस्तियों में पाए जाने वाले बंदर घरेलू हो जाते हैं, ऐसे में वे वन्य जीव नहीं रह जाते हैं।


बंदरों के लिए गर्भनिरोधक टीकाकरण
दिल्ली के मुख्य वन्यजीव संरक्षक ईश्वर सिंह ने 2018 में बंदरों की आबादी रोकने के लिए उनके लैप्रोस्कोपिक बंध्याकरण का सुझाव दिया था। इसके बाद उच्च न्यायालय के निर्देश पर इस संबंध में एक समिति भी गठित की गई जिसमें निगम संस्थाओं और डीडीए के अधिकारी, दिल्ली के मुख्य वन संरक्षक और गैर सरकारी संगठन एसओएस की सदस्य सोनिया घोष शामिल थीं। एसओएस ने आगरा में आगरा विकास प्राधिकरण के साथ मिलकर बंदरों के बंध्याकरण परियोजना का सर्वेक्षण किया था। एक अधिकारी ने बताया कि बंदरों के बंध्याकरण के संबंध में वन विभाग द्वारा टेंडर निकाले जाने के बाद पशु अधिकार कार्यकर्त्ताओं के विरोध की वजह से कोई आगे नहीं आया। पशु अधिकार कार्यकर्त्ता कुत्तों के बंध्याकरण का तो प्रस्ताव दे रहे हैं लेकिन वे बंदरों की सर्जरी का विरोध करते हैं। पशु अधिकार कार्यकर्त्ता गौरी मौलेखी की दलील है कि बंध्याकरण से बंदर ज्यादा आक्रामक हो सकते हैं। इसके बजाय वह बंदरों की आबादी को रोकने के लिए उनके गर्भनिरोधक टीकाकरण का समर्थन करती हैं। सरकार ने इस संबंध में राष्ट्रीय प्रतिरक्षाविज्ञान संस्थान और भारतीय वन्यजीव संस्थान को कोष जारी किया है जो इस टीके को विकसित कर रहे हैं।

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