US-ब्राजील समेत दुनिया के कई देशों में पहुंची Hydroxychloroquine, जानिए कैसे बनती है ये दवा

Edited By Seema Sharma,Updated: 08 Apr, 2020 05:35 PM

hydroxychloroquine reached many countries of the world including us brazil

देश में फैले कोरोना वायरस से निपटने के लिए इन दिनों हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन का इस्तेमाल हो रहा है। भारत मेंं कोरोना ने पैर पसारने ही शुरू किए थे तब सरकार ने पैरासिटामोल और हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन (HCQ) के निर्यात पर रोक लगा दी थी हालांकि मंगलवार को...

नेशनल डेस्कः देश में फैले कोरोना वायरस से निपटने के लिए इन दिनों हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन का इस्तेमाल हो रहा है। भारत मेंं कोरोना ने पैर पसारने ही शुरू किए थे तब सरकार ने पैरासिटामोल और हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन (HCQ) के निर्यात पर रोक लगा दी थी हालांकि मंगलवार को इसे हटा लिया गया और दोनों दवाओं को लाइसेंस वाली कैटिगरी में डाल दिया है। साथ ही सरकार ने आश्वासन भी जताया है कि जिन भी देशों को मलेरिया के इलाज में इस्तेमाल की जाने वाली इस दवा की जरूरत होगी, उनकी मदद की जाएगी। ऐसे में फार्मा कंपनियों ने इस दवा का प्रॉडक्शन कई गुना करने का फैसला किया है।

 

हालांकि यह पूरी तरह से नहीं कहा जा सकता कि मलेरिया के इलाज में काम आने वाली यह दवा कोरोना में भी कारगर है। कुछ केसों में यह दवा काम कर रही है जिसके चलते अमेरिका, ब्राजील, इटली, ब्रिटेन और दुनिया के कई देश भारत से इस दवा की मांग कर रहे हैं। हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोलान्ड ट्रंप ने इस दवा के लिए भारत को धमकी भी दे डाली कि अगर उसे हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन दवाई न दी गई तो भारत को इसका करार जवाब मिलेगा। लेकिन 24 घंटे में ही ट्रंप के सुर नरम पड़ गए और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ की। 

 

जिस दवा की इतनी डिमांड है तो आइए आपको बताते हैं कि देश की कौन-कौन सी फार्मा कंपनियां यह दवा बनाती हैं।

कई कंपनियां बनाती हैं HCQ
देश की कई कंपनियां पैरासिटामोल और हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन (HCQ) बनाती हैं लेकिन जायडस कैडिला और इप्का लैबोरेटरीज कंपनियां प्रमुख हैं। ये कंपनियां दवा की प्रॉडक्शन को 5-6 गुना बढ़ाकर 70 मीट्रिक टन तक कर सकती हैं। अगर ये कंपनियां फुल कपैसिटी पर काम करें तो हर महीने 200 एमजी की 35 करोड़ टैबलेट तैयार की जा सकती हैं। भारत में HCQ की एक टैबलेट की कॉस्ट 3 रुपए से कम होती है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक 7 करोड़ मरीजों को ठीक करने के लिए 10 करोड़ टैबलेट काफी हैं। ऐसे में बाकी प्रॉडक्शन का निर्यात किया जा सकता है।

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