चाहें तो मुझे सजा दे दें, चुनाव आयोग को संदेह से करें मुक्तः इलेक्शन कमिश्नर के हलफनामे में बड़ा खुलासा

Edited By Yaspal,Updated: 07 May, 2021 07:28 PM

if you want punish me free the election commission from suspicion

निर्वाचन आयुक्त राजीव कुमार ने एक मसौदा हलफनामे में कहा था कि हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों के कुछ चरणों को कोरोना वायरस महामारी के चलते स्थगित करने से शेष चरणों के चुनाव राष्ट्रपति शासन के तहत कराने की नौबत आ

नई दिल्लीः निर्वाचन आयुक्त राजीव कुमार ने एक मसौदा हलफनामे में कहा था कि हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों के कुछ चरणों को कोरोना वायरस महामारी के चलते स्थगित करने से शेष चरणों के चुनाव राष्ट्रपति शासन के तहत कराने की नौबत आ सकती थी और ऐसा होने पर आयोग पर एक दल के खिलाफ दूसरे दल का पक्ष लेने के आरोप लगते।

कुमार ने इस हलफनामे को मद्रास हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट में पेश करने की योजना बनाई थी। प्रक्रियात्मक कारणों के चलते दाखिल नहीं किये जा सके इस मसौदा हलफनामे में कुमार ने इस्तीफा देने और सजा भुगतने के लिये तैयार रहने की पेशकश करते हुए कहा कि ''लोकतंत्र की रक्षा के लिए संस्था पर उठायी गई शंकाओं से मुक्ति दिलाने की जरूरत है। कहीं ऐसा न हो कि उस पर बहुत अधिक बढ़ा-चढ़ाकर और अपमानजनक शब्दों में आरोप लगाने का चलन शुरू हो जाए।

सूत्रों ने कहा कि कुमार ने मद्रास हाईकोर्ट की उन टिप्पणियों के जवाब में यह हलफनामा दायर करने की योजना बनाई थी, जिनमें अदालत ने कहा था कि कोविड-19 मामलों में तेज वृद्धि के लिये निर्वाचन आयोग अकेले जिम्मेदार है और उसके जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ हत्या के आरोपों में मामला दर्ज किया जा सकता है।

यह मसौदा हलफनामा भारत निर्वाचन आयोग की ओर से मद्रास हाईकोर्ट में पेश अर्जी और सुप्रीम कोर्ट की इन टिप्पणियों पर रोक लगाने के लिये सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका का हिस्सा नहीं था। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने आयोग की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि उच्च न्यायालय की मौखिक टिप्पणियां ''आधिकारिक न्यायिक रिकॉर्ड'' का हिस्सा नहीं हैं, लिहाजा उन पर रोक लगाने का कोई सवाल पैदा नहीं होता।

निर्वाचन आयोग के सूत्रों ने बताया कि वकील की सलाह के अनुसार कुमार की ओर से ''अतिरिक्त हलफनामा'' पेश किया जाना फिलहाल तकनीकी रूप से संभव नहीं था। मुख्य निर्वाचन आयुक्त सुशील चंद्रा से संपर्क किया तो उन्होंने कहा, ''कोरोना वायरस से उत्पन्न मौजूदा हालात में हम सभी को कोविड-19 से प्रभावित लोगों की भलाई के लिये काम करना चाहिये और इस विशेष मुद्दे (निर्वाचन आयोग के खिलाफ मद्रास उच्च न्यायलय की टिप्पणियां) को माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा निपटा लिया गया है तथा आयोग की चिंताएं प्रकट की जा चुकी हैं। 

यह माना जा चुका है कि मद्रास उच्च न्यायालय की टिप्पणियां पूरी तरह से अनुचित हैं...सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले का निपटारा कर दिया है।'' बताया जा रहा है कि मसौदा हलफनामे में कुमार ने कहा था कि कोविड-19 की रोकथाम के लिये पश्चिम बंगाल चुनाव के चरणों को मिलाना जन प्रतिनिधित्व कानून के प्रावधानों के तहत संभव नहीं था।

कुमार ने निजी रूप से इसकी सजा भुगतने की इच्छा जतायी और आयोग पर लगाए गए आरोपों को वापस लेने की अपील की। उन्होंने कहा कि निर्वाचन आयुक्त होने के नाते वह व्यक्तिगत जिम्मेदारियों से नहीं भागना चाहते और सजा देने की बात अदालत पर छोड़ रहे हैं।

मसौदा हलफनामे में कुमार ने कहा कि चुनाव समय पर संपन्न नहीं कराने से जटिलताएं पैदा होती और हो सकता था कि शेष चरणों के चुनाव राष्ट्रपति शासन के दौरान कराने पड़ते, जिससे आयोग पर एक दल के खिलाफ दूसरे दल का पक्ष लेने के आरोप लगाए जाते।

गौरतलब है कि चुनाव संपन्न नहीं होने और विधानसभा का कार्यकाल पूरा हो जाने की सूरत में किसी राज्य या केन्द्र शासित प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू किया जा सकता है। 

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