सरकारी नौकरी के चयन में योग्यता को नजर अंदाज करना संविधान का उल्लंघन : सुप्रीम कोर्ट

Edited By rajesh kumar,Updated: 25 Feb, 2021 07:21 PM

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उच्च न्यायालय में याचिका लंबित रहने के दौरान मूल चयन सूची के आधार पर 42 उम्मीदवारों की नियुक्त कर दी गई। वहीं, झारखंड पुलिस महानिदेशक की अध्यक्षता वाली गठित समिति की अनुशंसा के आधार तैयार संशोधित सूची के आधार पर 43 लोगों की भी नियुक्ति की गई।

नेशनल डेस्क: उच्चतम न्यायालय ने कहा कि सरकारी नौकरियों के लिए चयन योग्यता के आधार पर होना चाहिए और अधिक अंक प्राप्त करने वालों को नजर अंदाज कर कम योग्य को नियुक्त करना संविधान का उल्लंघन होगा। न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी की पीठ ने यह टिप्पणी झारखंड उच्च न्यायालय का फैसला बरकरार रखते हुए की जिसमें उच्च न्यायालय ने प्रशासन द्वारा अनियमितता में सुधार पर तैयार संशोधित चयन सूची के बाद मेरिट के आधार पर 43 व्यक्तियों को पुलिस उपनिरीक्षक पद पर नियुक्ति की अनुमति दी थी।

झारखंड सरकार के गृह विभाग ने वर्ष 2008 में पुलिस उपनिरीक्षक, अटेंडेंट और कंपनी कमांडर के पद के लिए विज्ञापन जारी किया था। अंतिम प्रकाशित सूची में 382 लोगों का चयन हुआ था लेकिन बाद में राज्य सरकार ने उच्च स्तरीय समिति का गठन चयन प्रक्रिया में अनियमितता की जांच करने के लिए की। असफल अभ्यार्थियों ने झारखंड उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल की। उच्च न्यायालय में याचिका लंबित रहने के दौरान मूल चयन सूची के आधार पर 42 उम्मीदवारों की नियुक्त कर दी गई।

वहीं, झारखंड पुलिस महानिदेशक की अध्यक्षता वाली गठित समिति की अनुशंसा के आधार तैयार संशोधित सूची के आधार पर 43 लोगों की भी नियुक्ति की गई। उच्च न्यायालय ने पाया कि 43 याचिकाकर्ता प्रशासन द्वारा चयन में की गई अनियमितता के लिए जिम्मेदार नहीं हैं और उनके खिलाफ धोखाधड़ी आदि के आरोप नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में हस्तक्षेप के लिये कुछ लोगों की अर्जी खारिज कर दी जिसमें कहा गया था कि विज्ञापन से परे जाकर नियुक्त करने का अधिकार नहीं है।

उच्चतम न्यायालय द्वारा पिछले हफ्ते आए फैसले में कहा गया, ‘इसमें कोई शक नहीं है कि सरकारी नौकरी पर नियुक्ति योग्यता के आधार पर होनी चाहिए। उन व्यक्तियों को नजर अंदाज कर जिन्हें अधिक अंक प्राप्त हुए और कम योग्य व्यक्ति की नियुक्ति करना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन होगा।' अदालत ने 43 याचिकाकर्ताओं को मुख्य रूप से इस आधार पर राहत दी कि उनकी नियुक्त पहले ही हो चुकी है और वे राज्य में कुछ समय से सेवा दे रहे हैं और उन्हें इस बात की सजा नहीं दी जा सकती जिसमें उनकी कोई गलती नहीं है।

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