दिल्ली में कराई जाएगी आर्टिफिशियल बारिश, IIT कानपुर के वैज्ञानिक करेंगे मदद

Edited By Seema Sharma,Updated: 23 Nov, 2018 02:25 PM

iit kanpur help in delhi s artificial rain

आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिकों ने वायु प्रदूषण की गंभीर स्थिति का सामना कर रही दिल्ली में कृत्रिम बारिश कराने के लिए इसरो से विमान हासिल करने सहित सभी तैयारियां कर ली हैं, बस अब मौसम के अनुकूल होने का इंतजार किया जा रहा है।

नई दिल्ली: आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिकों ने वायु प्रदूषण की गंभीर स्थिति का सामना कर रही दिल्ली में कृत्रिम बारिश कराने के लिए इसरो से विमान हासिल करने सहित सभी तैयारियां कर ली हैं, बस अब मौसम के अनुकूल होने का इंतजार किया जा रहा है। हालांकि, वैज्ञानिक इस बारे में आश्वस्त नहीं हैं कि यह (कृत्रिम बारिश) कब कराई जाएगी, क्योंकि इसके लिए मौसम का अनुकूल होना जरूरी है। आईआईटी कानपुर के उप निदेशक मणिंद्र अग्रवाल ने कहा कि हमने सभी तैयारियां कर ली हैं और इसरो से विमान भी हासिल कर लिया है, जिसकी जरूरत कृत्रिम बारिश कराने के लिए पड़ेगी। 
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आईआईटी दिल्ली के छात्र भी कर रहे मदद
आईआईटी कानपुर ‘साल्ट मिक्स’ और अन्य जरूरी उपकरण मुहैया कर कृत्रिम बारिश कराने के लिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की मदद कर रहा है। वहीं, आईआईटी दिल्ली के छात्रों का एक समूह भी कृत्रिम बारिश के लिए मौसम की परिस्थितियों के अनुकूल होने पर नजरें जमा कर मौसम वैज्ञानिकों की मदद कर रहा है। अग्रवाल ने कहा कि मानसून से पहले और इसके दौरान कृत्रिम बारिश कराना आसान होता है, लेकिन सर्दियों के मौसम में यह कोशिश आसान नहीं होती, क्योंकि इस दौरान बादलों में नमी की मात्रा ज्यादा नहीं होती।
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चीन कई वर्षों से करा रहा कृत्रिम बारिश 
यह तकनीक महाराष्ट्र में और लखनऊ के कुछ हिस्सों में पहले ही परखी जा चुकी है। हालांकि, भारत में यह पहला मौका है, जब वायु प्रदूषण से हुए नुकसान का मुकाबला करने के लिए एक बड़े भू-भाग पर कृत्रिम बारिश कराई जाएगी। उल्लेखनीय है कि चीन कई वर्षों से कृत्रिम बारिश कराने के लिए 'क्लाउड सीडिंग' तकनीक का उपयोग कर रहा है। अमेरिका, इजरायल, दक्षिण अफ्रीका और जर्मनी ने भी इस प्रौद्योगिकी का उपयोग किया है। 
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कैसे होती है कृत्रिम बारिश
कृत्रिम बारिश (क्लाउड सीडिंग) एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें सिल्वर आयोडाइड, शुष्क बर्फ और यहां तक कि खाने का नमक सहित विभिन्न तरह के रसायनिक पदार्थों को पहले से मौजूद बादलों में डाला जाता है, ताकि उन्हें मोटा और भारी किया जा सके और उनके बरसने की संभावना बढ़ जाए। इस प्रक्रिया में वायु में रसायनों (ज्यादातर नमक) को बिखरा कर बारिश की मात्रा और प्रकार में बदलाव करना भी शामिल है। रसायनों को बादलों में विमान से बिखेरा जाता है। गौरतलब है कि दिल्ली में वायु की गुणवत्ता पिछले तीन हफ्तों में सतर्क करने वाले स्तर पर पहुंच गई है। गौरतलब है कि वर्ष 2016 में सरकार ने कृत्रिम बारिश के लिए क्लाउड सीडिंग की संभावना तलाशी थी, लेकिन इस योजना पर कभी काम नहीं किया गया है।

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