व्यक्ति की ‘न’ को ‘हां’ में बदल देती है ये शक्ति

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 19 Sep, 2019 07:48 AM

importance of prayer

ऋग्वेद जो हमारे देश का सबसे प्राचीन ग्रंथ है, उसमें सबसे पहले भगवान की प्रार्थना की गई है। पूरा ऋग्वेद अनेक देवी-देवताओं की प्रार्थना से भरा हुआ है। अगर व्यक्ति प्रार्थना नहीं करेगा तो हृदय नीरस ही बना रहेगा।

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

ऋग्वेद जो हमारे देश का सबसे प्राचीन ग्रंथ है, उसमें सबसे पहले भगवान की प्रार्थना की गई है। पूरा ऋग्वेद अनेक देवी-देवताओं की प्रार्थना से भरा हुआ है। अगर व्यक्ति प्रार्थना नहीं करेगा तो हृदय नीरस ही बना रहेगा। प्रार्थना में ईश्वर के साथ संबंध जुड़ता है और फिर परमात्मा का रस पूजक के जीवन में उतरता है। प्रार्थना में वह शक्ति है जिससे हृदय प्रसन्न रहता है, बुद्धि शुद्ध होती है, आचरण श्रेष्ठ बनता है और सामाजिक जीवन में गरिमा प्राप्त होती है। प्रार्थना हमारे हृदय में मार्जिनी का काम करती है और हृदय को शुद्ध कर देती है।

PunjabKesari Importance of prayer

प्रार्थना एक ऐसी सीढ़ी है, जिस पर चढ़कर मानव स्वर्ग तक पहुंच सकता है। प्रार्थना दिव्य तत्व है। जब आंख बंद कर आप भगवान को देखने का प्रयत्न करते हैं तब आपको दिखता है कि भगवान इतनी दूर नहीं हैं जितना हम समझते हैं। प्रार्थना आवरण को हटा देती है। प्रार्थना जीवन की सार्थकता है। प्रार्थना एक दिव्य मंत्र है, भगवान परमेश्वर को बांधने वाली एक कड़ी है। प्रार्थना सबके लिए मंगलदायी है इसलिए हमारे धर्म और शास्त्रों में प्रार्थना का विधान है।

उत्तम स्वास्थ्य जीवन की आवश्यकता है तो मन की स्वस्थता के लिए मानसिक व्यायाम को स्वयं सिद्ध महत्ता तथा आत्मा को स्वस्थ रखने के लिए प्रार्थना से बढ़कर अन्य कोई वस्तु है ही नहीं। आत्मा की शुद्धता ही उसका स्वास्थ्य है। यद्यपि आत्मा अपावनता से शुद्ध परमात्म स्वरूप है, फिर भी दैहिक भोग-लिप्सा एवं मानसिक चापल्यता की सांठ-गांठ से जन्मी कलुषता आत्मा के तेज को मलिन कर उसे अपवित्र बनाने का निरंतर कुचक्र रचती है।

PunjabKesari Importance of prayer

इस कुचक्र को निष्फल कर आत्मा को स्वस्थ बनाने का कार्य प्रार्थना करती है। प्रार्थना से ही तन-मन पवित्र होता है। यह आत्मानंद ही आत्मा की शुद्धता एवं स्वस्थता का प्रमाण है।

प्रार्थना न तो याचना है और न ही चाटुकारिता, बल्कि स्वयं को शक्ति सम्पन्न बनाने का साधन है। प्रार्थना कुछ चुनिंदा शब्द समूहों का मात्र संगीतमय उच्चारण न होकर व्यक्ति की आंतरिक शक्तियों की अभिव्यक्ति तथा परमात्मा के समक्ष आत्मसमर्पण है। केवल आराध्य के सामीप्य-लाभ से प्रार्थना का उद्देश्य पूरा नहीं होता। प्रार्थना वस्तुत: तीन सोपानों से सम्पन्न होने वाली साधना है। प्रथमत: व्यक्ति अपनी अंर्तनहित शक्तियों की अनुभूति करता और उनकी सामर्थ्य से परिचित होता है। द्वितीयत:, निज अहंकार का परित्याग कर विनम्र भाव से परमशक्ति के चरणों में अपने को समर्पित करता हुआ अंत में प्रभु की कृपा का पात्र बनने के लिए श्रद्धालीन हो मन, क्रम, वचन से स्वयं को श्री चरणों में रमाता है। आत्मसमर्पण की संपूर्ण प्रक्रिया ही प्रार्थना है।

प्रार्थना प्रार्थी को भिक्षुक नहीं दानी बनाती है। यह भ्रम है कि प्रार्थना व्यक्ति को धर्मभीरु बनाती है। प्रार्थनारत प्राणी तनावयुक्त जीवन जीता है।

PunjabKesari Importance of prayer

हृदय की पुकार, श्रद्धा और विश्वास के भाव की अभिव्यक्ति का दूसरा नाम है- प्रार्थना। यह है भक्त और भगवान के मध्य का सेतु। प्रार्थना से आत्मा पुष्ट होती है जैसे शरीर भोजन से। यह व्यक्ति को बल, आध्यात्मिक शक्ति और स्फूर्ति प्रदान करती है। प्रार्थना सभी को करनी पड़ती है-चाहे वह योगी हो या भोगी, साधक हो, गुरु हो या शिष्य। प्रार्थना अपने से अधिक सामर्थ्यवान से की जाती है। ईश्वर के समतुल्य अन्य कोई भी नहीं। अत: सर्वशक्तिमान, सृष्टि के रचयिता को शरीर के रोम-रोम से, हृदय की गहराइयों से की गई प्रार्थना सदैव फल प्रदान करती है।

गीता में कहा गया है कि अर्जुन भी प्रार्थना करता हुआ श्रीकृष्ण के चरणों में गिर पड़ा। प्रार्थना व्यक्ति के ‘न’ को ‘हां’ में बदल देती है। विपत्ति के समय प्रत्येक व्यक्ति की यही स्थिति होती है क्योंकि जीव अल्पज्ञ है और परमात्मा सर्वज्ञ और अनंत है। जीवन की अंधेरी घड़ी में प्रार्थना ही आशा की किरण बनकर पथ-प्रदर्शक बनती है। हृदय से की गई प्रार्थना ईश्वर तक पहुंच जाती है। जब प्रेमपूर्वक और तीव्र प्रार्थना ऊपर जाती है तब प्रभु की कृपा नीचे उतरती है। इस ढंग की प्रार्थना हमारे प्रारब्ध को काटती है, कर्मफल का लेखा-जोखा रखने वाला भगवान सारे नियम तोड़कर प्रार्थी का भाग्य बदल देता है।

प्रार्थना में हमारी कल्पना-शक्ति से भी अधिक कार्य करने की शक्ति है। सुंदर-सुंदर वस्तुओं के लिए प्रभु की सेवा में प्रार्थना कर देना पर्याप्त नहीं है। प्रार्थना के पश्चात् हाथ पर हाथ रखकर जो मूर्खता में बैठा रहता है, वह कुछ नहीं पाता। प्रार्थना तो पुरुषार्थ की भूमिका है। पुरुषार्थ, प्रार्थना, प्रतीक्षा तीनों साथ-साथ चलते हैं। दूसरों को कष्ट मिले ऐसी अहंकार, घृणा, ईर्ष्या से भरी प्रार्थना तामसिक है। सात्विक प्रार्थना वह है जो निष्काम है, जो हृदय में शांति की धारा और आत्मा में आनंद की वृष्टि करती है।

Related Story

Trending Topics

India

397/4

50.0

New Zealand

327/10

48.5

India win by 70 runs

RR 7.94
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!