एक साल में दो सहियोगियों ने छोड़ा भाजपा का साथ, क्या एनडीए में खुद को असुरक्षित कर रहे छोटे दल?

Edited By Yaspal,Updated: 27 Sep, 2020 07:53 PM

in a year two partners left the bjp

शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) से अलग होने की घोषणा के साथ ही पिछले एक साल के भीतर केंद्र में सत्तारूढ़ भगवा दल का दो सबसे पुराने भरोसेमंद और वैचारिक प्रतिबद्धता वाले सहयोगियों का साथ छूट गया है। हालांकि...

नई दिल्लीः शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) से अलग होने की घोषणा के साथ ही पिछले एक साल के भीतर केंद्र में सत्तारूढ़ भगवा दल का दो सबसे पुराने भरोसेमंद और वैचारिक प्रतिबद्धता वाले सहयोगियों का साथ छूट गया है। हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पार्टी की राजनीतिक शक्ति पहले की अपेक्षा मजबूत हुयी है। शिअद का राजग से अलग होने से मोदी सरकार पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा लेकिन सीमावर्ती राज्य पंजाब में भाजपा के लिए परेशानियां पैदा हो सकती है।

पंजाब में अकाली और भाजपा के बीच गठबंधन से दोनों दलों को राज्य के मतदाताओं के अलग-अलग धड़ों का समर्थन मिलता रहा है। राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है भाजपा अकाली दल से नाराज उसके एक धड़े को साधने का प्रयास कर सकती है जो सुखबीर सिंह बादल से नाराज हैं। हालांकि केंद्र द्वारा पारित कृषि सुधार विधेयकों के खिलाफ हो रहे किसानों के प्रदर्शन और सभी राजनीतिक दलों की तरफ से उन्हें मिल रहे समर्थन ने भाजपा की मुश्किलें जरूर खड़ी कर दी है।

उल्लेखनीय है कि कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों के भारी विरोध के बावजूद हाल में आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020, कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक 2020 तथा कृषक (सशक्तीकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन एवं कृषि सेवा पर करार विधेयक, 2020 को संसद से पारित कर दिया गया था। देशभर के कई हिस्सों खासकर पंजाब और हरियाणा के किसान तथा किसान संगठन इन विधेयकों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं।

इन्हीं विधेयकों के मुद्दे पर शिअद शनिवार को ढाई दशक पुराने इस गठबंधन से अलग हो गई। शिव सेना नेता संजय राउत ने शिअद के राजग से अलग होने पर भाजपा पर निशाना साधा और कहा कि भगवा दल जिस गठबंधन का नेतृत्व कर रहा है उसे वह राजग कहना पसंद नहीं करेंगे क्योंकि उनकी पार्टी और अकाली दल इसके प्रमुख स्तंभों में थे। उन्होंने कहा कि पिछले साल शिव सेना को राजग से अलग होने के लिए ‘‘मजबूर'' किया गया।

जाहिर तौर पर उनका इशारा भाजपा द्वारा महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री पद की साझेदारी की शिव सेना की मांग को नकार देने की ओर था। इसके बाद शिव सेना ने कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) से हाथ मिला लिया और उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने। भाजपा ने शिअद के राजग से अलग होने को उसकी ‘‘राजनीतिक मजबूरी'' बताया है जबकि शिव सेना का विपक्षी दलों के साथ जाने को उसने सत्ता की लालच में बनाया गया ‘‘बेमेल गठबंधन'' करार दिया था। इन दोनों दलों के गठबंधन से बाहर चले जाने के बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुवाई वाला जनता दल (यूनाइटेड) भाजपा का सबसे पुराना सहयोगी बन गया है।

वर्ष 2013 से 2017 को छोड़कर कुमार भाजपा के साथ ही रहे हैं और वह बिहार में गठबंधन का चेहरा भी हैं। भाजपा के एक नेता ने बताया कि दोनों दलों का राजग से जाना दुर्भाग्यपूर्ण है लेकिन इसके लिए भाजपा को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। उन्होंने कहा, ‘‘भाजपा ना तो मुख्यमंत्री का पद शिव सेना को दे सकती थी और ना ही कृषि सुधार के अपने एजेंडे से पीछे हट सकती थी।'' मालूम हो कि लोकसभा चुनाव से पहले तेलुगु देशम पार्टी ने भी आंध्र प्रदेश को विशेष दर्जा के मुद्दे पर राजग का दामन छोड़ दिया था।

 

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