बढ़ती असमानता चिंता की बात है : मनमोहन

Edited By shukdev,Updated: 24 Jun, 2019 11:26 PM

increasing inequality is a matter of concern manmohan

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सोमवार को कहा कि बढ़ती असमानता चिंता की बात है और कल्याणकारी राज्य होने के नाते देश में काफी गरीबी या आर्थिक विषमता नहीं हो सकती है। सामाजिक विकास रिपोर्ट ....

नई दिल्ली: पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सोमवार को कहा कि बढ़ती असमानता चिंता की बात है और कल्याणकारी राज्य होने के नाते देश में काफी गरीबी या आर्थिक विषमता नहीं हो सकती है। सामाजिक विकास रिपोर्ट ‘भारत में बढ़ती असमानता, 2018' जारी करने के अवसर पर सिंह ने कहा कि कुछ क्षेत्र और सामाजिक समूह गरीबी हटाने वाले विभिन्न कार्यक्रमों और ठोस नीतियों के बावजूद काफी गरीब हैं। पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत आज दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है लेकिन आर्थिक विकास की उच्च दर बढ़ती असमानता से जुड़ी हुई है जिसमें आर्थिक, सामाजिक, क्षेत्रीय और ग्रामीण शहरी असमानता शामिल है। 

उन्होंने कहा, ‘बढ़ती असमानता हमारे लिए चिंताजनक है क्योंकि आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक असमानतओं का बुरा प्रभाव हमारी तेज, समग्र एवं सतत विकास को क्षति पहुंचा सकते हैं।' सिंह ने बढ़ती असानमता को वैश्विक घटना बताया जबकि स्वीडन, जर्मनी और अन्य देश इसके अपवाद हैं। उन्होंने कहा, ‘भारत कल्याणकारी देश है, हम अति गरीबी या असमानता को अनुमति नहीं दे सकते।'

कांग्रेस नेता ने संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान शुरू की गई कई योजनाएं गिनाईं जैसे शिक्षा का अधिकार कानून, सूचना का अधिकार कानून, वन अधिकार कानून, हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) कानून, महात्मा गांधी राष्ट्रीय शहरी रोजगार गारंटी कानून आदि। उन्होंने कहा कि इन अधिकारों को प्रभावी रूप से लागू करने से समस्या का समाधान हो जाएगा। सामाजिक विकास परिषद की इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 2000 से 2017 के बीच संपत्ति में असानता छह गुना बढ़ी है।

इसमें बताया गया है कि 2015 में देश की एक फीसदी आबादी के पास करीब 22 फीसदी राष्ट्रीय आय थी जो 1980 के दशक की तुलना में छह फीसदी की बढ़ोतरी है। इसमें बताया गया है, ‘देश के दस फीसदी सर्वाधिक धनी लोगों के पास देश की कुल संपत्ति का करीब 80.7 फीसदी है जबकि 90 फीसदी आबादी के पास कुल संपत्ति का महज 19.3 फीसदी है।'' रिपोर्ट का संपादन प्रोफेसर टी. हक और डी. एन. रेड्डी ने किया है और इसमें 22 अध्याय हैं जिन्हें विख्यात अर्थशास्त्रियों और अन्य सामाजिक विज्ञानियों ने लिखा है। 

 

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