Edited By shukdev,Updated: 09 Feb, 2019 04:02 PM
पिछले पांच सालोें में देश में बेरोजगारी का आंकडा काफी ज्यादा बढ़ चुका है। बिजनस स्टैंडर्ड की खबर के अनुसार एनडीए शासनकाल में बेरोजगारी में तेजी से वृद्धि हुई है। अखबार ने अपनी रिपोर्ट में NSSO के एक सर्वे का हवाला दिया है। धर्म, जाति और लिंग के आधार...
नई दिल्ली: पिछले पांच सालोें में देश में बेरोजगारी का आंकडा काफी ज्यादा बढ़ चुका है। बिजनस स्टैंडर्ड की खबर के अनुसार एनडीए शासनकाल में बेरोजगारी में तेजी से वृद्धि हुई है। अखबार ने अपनी रिपोर्ट में NSSO के एक सर्वे का हवाला दिया है। धर्म, जाति और लिंग के आधार पर किए गए इस सर्वे में पाया गया कि बेरोजगारी का सबसे ज्यादा असर सिख समुदाय उसके बाद हिंदू और मुस्लिमों पर पड़ा है। वहीं, महिलाओं की बात करें तो ग्रामीण इलाकों में अनुसूचित जनजाति के साथ-साथ सामान्य वर्ग की महिलाओं में भी रोजगार का अभाव हुआ है।
सर्वे में 2011-12 और 2017-18 के तुलनात्मक अध्ययन में पाया गया कि मोदी सरकार रोजगार के अवसर मुहैया कराने में नाकाम रही है। जिस तरह से मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने बेरोजगारी की समस्याओं को निपटारा किया, उतने कारगर ढंग से मोदी सरकार इस समस्या से निपटने में असफल रही है। NSSO की रिपोर्ट के मुताबिक 2011-12 के मुकाबले 2017-18 में सिख समुदाय में बेरोजगारी 2 गुना (शहर) और 5 गुना (गांव) में बढ़ी है।
इसी तरह हिंदुओं में दो गुनी (शहर) और तीन गुनी (गांव) और इसके बाद मुसलमानों में दो गुनी रफ्तार से बेरोजगारी बढ़ी है। अगर बेरोजगारी के मामले में महिलाओं का जातिगत विश्लेषण करें तो 2011-12 की तुलना में 2017-18 में अनुसूचित जनजाति और सामान्य वर्ग की माहिलाओं में बेरोजगारी काफी तेजी से बढ़ी है। शहरी इलाकों की बात करें तो अनुसूचित जाति की महिलाओं का आंकड़ा रोजगार के मामले में बेहद कम है।