चीन को टक्कर देने के लिए 'भारत-जापान' की ये हैं तैयारियां

Edited By Punjab Kesari,Updated: 13 Sep, 2017 07:07 PM

india and japan are preparing to counter china

दोनों देश थर्ड वर्ल्ड माने जाने वाले देशों में इंफ्रास्ट्रक्चर और कनेक्टिविटी बनाकर इस रिश्ते को और मजबूत बना रहे हैं

नई दिल्लीः जापानी पीएम शिंजो आबे के भारत दौरे को बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट से जोड़ा जा रहा है लेकिन जानकार, इस रिश्ते को द्विपक्षीय संबध के दायरे तक सीमित नहीं मान रहे हैं। उनके मुताबिक, दोनों देश थर्ड वर्ल्ड माने जाने वाले देशों में इंफ्रास्ट्रक्चर और कनेक्टिविटी बनाकर इस रिश्ते को और मजबूत बना रहे हैं। एेसे में जानकार इसे चीन की काट के रूप में देख रहे हैं। चीन के वन बेल्ट वन रोड (ओबीओआर) प्रॉजेक्ट के मद्देनजर भारत और जापान की रिश्तों को बेहतर करने की पहल और भी ज्यादा प्रासंगिक हो जाती है। दोनों ही मुल्क चाहते हैं कि आबे और मोदी के मुलकात से एशिया-अफ्रीका ग्रोथ कॉरिडोर (एएजीसी) जैसे प्रॉजेक्ट को रफ्तार मिले। भारत और जापान की साझीदारी से जुड़े इस प्रॉजेक्ट में ईरान के चाहबहार बंदरगाह को विकसित करना भी शामिल है। 

बता दें कि गुरुवार को होने वाली दि्वपक्षीय बातचीत का अजेंडा तय करने के लिए दोनों देशों के अधिकारी जी-जान से जुटे हुए हैं। इस साल की शुरुआत में, सिविल न्यूक्लियर डील के प्रभाव में आने के बाद दोनों देशों के बीच कोई ऐसा अहम मुद्दा नहीं बचा, जो लंबित पड़ा हो। ऐसे में दोनों ही देश मानते हैं कि रणनीतिक रिश्तों को नई ऊंचाई पर ले जाने के लिए यही सही वक्त है। 

एशिया और अफ्रीका में बेहतर कनेक्टिविटी बनाने के मकसद को पूरा करने के लिए दोनों देशों को एक दूसरे की अहमियत से बखूबी परिचित है। जहां जापान बेहद कम दरों पर वित्तीय मदद मुहैया करा रहा है, वहीं भारत की अफ्रीकी देशों में मौजूदगी और छवि, दोनों ही बेहद मजबूत है। आबे के भारत दौरे पर एएजीसी प्रॉजेक्ट की औपचारिक शुरुआत हो सकती है। भारत और जापान इस प्रॉजेक्ट को चीन के ओबीओआर की छवि के ठीक उलट उसके जवाब के तौर पर पेश करेंगे। 

मोदी और आबे की बातचीत के बाद दोनों देशों की ओर से जॉइंट स्टेटमेंट जारी किया जाएगा। माना जा रहा है कि इसमें भारत के ऐक्ट ईस्ट पॉलिसी की झलक देखने को मिल सकती है। दोनों देश चाहबहार बंदरगाह के प्रॉजेक्ट को रफ्तार देने की दिशा में भी चर्चा कर सकते हैं। इस प्रॉजेक्ट के जरिए भारत के अफगानिस्तान और सेंट्रल एशिया तक आसानी से पहुंचने की दिशा में आने वाली अड़चनें दूर होंगी। 

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