भारत-चीन संबंध और डा. कोटनीस

Edited By Punjab Kesari,Updated: 26 Apr, 2018 01:58 AM

india china relations and dr kotnis

मोदी 27-28 अप्रैल को चीन के दौरे पर जा रहे हैं। मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच एक अनौपचारिक शिखर वार्ता होगी, जिसमें सीमा विवाद निपटारे की दिशा में कदम आगे बढ़ सकता है।

नेशनल डेस्कः मोदी 27-28 अप्रैल को चीन के दौरे पर जा रहे हैं। मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच एक अनौपचारिक शिखर वार्ता होगी, जिसमें सीमा विवाद निपटारे की दिशा में कदम आगे बढ़ सकता है। दोनों देशों के बीच सीमा विवाद पर अगर कुछ शांतिपूर्ण रवैया बना तो यह दक्षिण एशिया में स्थायी स्थिरता कायम कर सकता है। ऐसा लग रहा है कि चीन भारत के साथ अपने संबंधों को सही रास्ते पर आगे बढ़ाना चाहता है। वह आपसी सहयोग के नए क्षेत्रों में काम करना चाहता है जिससे दोनों देशों के सभी प्रकार के संबंध और मजबूत हो  सकें। प्रधानमंत्री मोदी भी चीन से अब नए तरह के रिश्ते बनाने की कोशिश करेंगे। भारत और चीन की आपस में दोस्ती बेहतर होगी तो न केवल भारत और चीन की सीमाएं तनाव रहित हो जाएंगी, बल्कि चीन से दोस्ती पर घमंड करने वाले भारत के पड़ोसी देशों के राजनीतिक समीकरण भी बिगड़ जाएंगे। 1.30 अरब की आबादी वाला भारत और 1.40 अरब की आबादी वाले चीन यानी दुनिया की एक-तिहाई आबादी की आपसी गांठें मजबूत होंगी तो पूरी दुनिया का शक्ति संतुलन भारत और चीन के पक्ष में झुक जाएगा।

अमेरिका को पछाड़कर चीन बना भारत का सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर
भारत और चीन के बीच 1962 के युद्ध के बाद रुके द्विपक्षीय कारोबार को 1978 में शुरू किया गया। इस शुरूआत के बाद 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पहल पर दोनों देशों ने मोस्ट फेवर्ड नेशन (एम.एफ.एन.) एग्रीमैंट पर समझौता किया। इस समझौते के बाद 2000 तक दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय कारोबार बढ़कर 3 बिलियन अमरीकी डालर तक पहुंच गया। इसके बाद अगले 8 सालों के दौरान दोनों देशों के बीच कारोबार लगभग 52 बिलियन डालर की नई ऊंचाई पर पहुंच गया और इस साल चीन अमरीका को पीछे छोड़ते हुए भारत का सबसेबड़ा ट्रेडिंग पार्टनर बन गया लेकिन इस कारोबार में भारतको कम ही फायदा हुआ है जबकि चीन फल-फूल रहाहै।

भारत और चीन के आपसी कारोबार के लिए देशों के बीच तीन बॉर्डर ट्रेडिंग प्वाइंट बेहद अहम हैं जिनमें नाथू ला पास (सिक्किम), शिप्की ला पास (हिमाचल प्रदेश) और लिपुलेख पास (उत्तराखंड) शामिल हैं। लिपुलेख पास के रास्ते कारोबार के लिए दोनों देशों ने भारत में गुंजी बाजार और तिब्बत में पूलान मार्कीट को चुना है। इस रास्ते व्यापार 1 जून से 30 सितम्बर तक होता है। वहीं शिप्की ला पास के रास्ते कारोबार करने के लिए दोनों देशों ने भारत के हिमाचल प्रदेश में नाम्ग्या मार्कीट और तिब्बत के जादा काऊंटी की जियुबा मार्कीट को चुना है।

इसके अलावा सिक्किम के नाथू ला पास के जरिए कारोबार का अनुबंध 23 जून, 2003 को हुआ था लेकिन इस रास्ते से कारोबार की शुरूआत 2006 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में हुई थी। समझौते के तहत इस कारोबार के लिए भारत के सिक्किम में छान्गू मार्र्कीट और तिब्बत की रेन्किनगांग मार्कीट को चुना गया। इस रास्ते दोनों देश 1 मई से 30 नवम्बर तक कारोबार करते हैं।

दोनों देशों के बीच हो सकती है व्यवहारिक रिश्ते की शुरूआत
डोकलाम पर महीनों तक गतिरोध बने रहने और भारत द्वारा सख्ती दिखाने के बाद अब चीन को भी यह समझ में आ गया है कि यह 1962 का भारत नहीं है। इधर भारत ने चीन को कई अच्छे संकेत भी दिए हैं। मोदी की इस यात्रा से दोनों देशों के बीच एक व्यावहारिक रिश्ते की शुरूआत हो सकती है। भारत और चीन के बीच इस पिघलती बर्फ में दोनों देशों की समझदारी और व्यावहारिकता दिख रही है। चीन शायद यह भी समझ चुका है कि अब एशिया की एक बड़ी ताकत बन चुके भारत से उलझने की जगह कारोबारी सांझेदारी रखने में ज्यादा भलाई है।

कोटनीस की बहुत कम उम्र में ही दिसम्बर 1942 में मौत हो गई थीडा
कोटनीस की अमर कहानी : सामयिक सत्य यही है कि दोनों देश डा. कोटनीस की अमर कहानी को दोहराते हुए आपसी रिश्ते सुधार कर पुराने रिश्तों में अतीत की मिठास को फिर से बहाल करें। भारत-चीन मैत्री का प्रतीक माने जाने वाले डाक्टर द्वारकानाथ शांताराम कोटनीस उन 5 भारतीय युवा चिकित्सकों में से थे, जो 1938 के दूसरे चीन-जापान युद्ध के दौरान चीनवासियों की मदद के लिए उनके वतन गए थे। उनके निधन के करीब 7 दशकबाद भी उनकी नि:स्वार्थ सेवा, साहस, समर्पण और बलिदान को आज भी चीनवासी श्रद्धा से याद करते हैं। उनके अलावा अन्य सभी सकुशल स्वदेश लौट आए लेकिन बीमारी की वजह से डाक्टर कोटनीस की बहुत कम उम्र में ही दिसम्बर 1942 में मौत हो गई थी।

डाक्टर कोटनीस का जन्म 10 अक्तूबर, 1910 को महाराष्ट्र के शोलापुर में एक निम्न मध्यवर्गीय परिवार में हुआ था। वह जब मध्य चीन के हेबई सूबे पहुंचे तो उनकी उम्र 28 साल थी। उनका कहना था कि मरीजों के आने की प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए बल्कि स्वयं मरीजों तक पहुंच जाना चाहिए।

इसी अथक परिश्रम का असर बाद में उनकी सेहत पर पडऩे लगा था। अपने निधन से 1 वर्ष पूर्व नवम्बर 1941 में उन्होंने चीन की एक युवती गाओ शिंगलान से विवाह कर लिया। उनका एक पुत्र भी था जिसका नाम यिनहुआ रखा गया था, जिसका शाब्दिक अर्थ-‘यिन’ यानी भारत और ‘हुआ’ यानी चीन है। उनके निधन पर चीन के शीर्ष नेता माओ त्से तुंग ने कहा था, ‘‘सेना ने अपना मददगार और जनता ने अपना दोस्त खो दिया है।’’ - डा. वरिन्द्र भाटिया

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