नोटबंदी के बाद भारत ने 1.1 करोड़ नौकरियां गंवाईं, 10 गुना लोगों ने नहीं भरा इनकम टैक्स रिटर्न

Edited By Seema Sharma,Updated: 04 Apr, 2019 10:57 AM

india has lost 1 1 million jobs after the demonetisation

नोटबंदी के बाद भारत ने साल 2018 में 1. 1 करोड़ नौकरियां गंवाई और इनमें से 90 लाख नौकरियां तो केवल ग्रामीण क्षेत्रों में ही खत्म हुई हैं। भाजपा नीत राजग सरकार के पांच साल के कार्यकाल पर सिविल सोसाइटी संगठनों के एक समूह ने एक आरोपपत्र जारी कर यह दावा...

नई दिल्ली: नोटबंदी के बाद भारत ने साल 2018 में 1. 1 करोड़ नौकरियां गंवाई और इनमें से 90 लाख नौकरियां तो केवल ग्रामीण क्षेत्रों में ही खत्म हुई हैं। भाजपा नीत राजग सरकार के पांच साल के कार्यकाल पर सिविल सोसाइटी संगठनों के एक समूह ने एक आरोपपत्र जारी कर यह दावा किया। लोकसभा चुनाव शुरू होने से हफ्ते भर पहले जारी किए गए दस्तावेजों के मुताबिक नवंबर 2016 में हुई नोटबंदी के चलते 35 लाख नौकरियां खत्म हुई थीं और उसके बाद से 2018 तक 1. 1 करोड़ नौकरियां खत्म हुईं। वहीं साल 2016-2017 के बाद स्टॉप फाइलर्स की श्रेणी में आने वाले टैक्सदाताओं की संख्या में भी इजाफा हुआ है। नोटबंदी के बाद आईटी रिटर्न दाखिल तो किया गया मौजूदा समय में ऐसा नहीं है। बता दें कि स्टॉप फाइलर्स में वो लोग आते हैं जो जिनकी मौत हो चुकी है या फिर जिनके पैन कार्ड कैंसल या सरेंडर हो चुके हैं। ऐसे में 2016- 2017 स्टॉप फाइलर्स की संख्या बढ़ी है।
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आरोपपत्र में दावा किया गया है कि 2015 से राज्यों में भूख से बच्चों सहित कम से कम 75 लोगों की मौत हुई। इसने मौत की वजह लंबे समय तक भूखे रहने को बताया है। आरोपपत्र के मुताबिक इनमें से 42 लोगों की मौत इस वजह से हुई कि उन्हें राशन देने से इनकार कर दिया गया क्योंकि उनके आधार को योजना से नहीं जोड़ा गया था या योजना में उन्हें शामिल नहीं किया गया था। हालांकि, इसने अपने आंकड़ों का स्रोत नहीं बताया है। विभिन्न अभियानों के प्रतिनिधियों ने यहां पीपुल्स एजेंडा या जन सरोकार 2019 की घोषणा करते हुए राजनीतिक दलों से जवाबदेही की मांग की। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि वे दिन गए, जब राजनीतिक दल खोखले वादे किया करते थे।
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संवाददाता सम्मेलन में यह घोषणा की गई कि विभिन्न सिविल सोसाइटी समूह अपनी चिंताएं मुखरता से उठाने के लिए दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में छह अप्रैल को जुटेंगे। उस दिन जन सरकोर कार्यक्रम में शामिल होने वाले राजनीतिक दलों में कांग्रेस, माकपा, भाकपा, द्रमुक, राजद, तृणमूल कांग्रेस, आप, तेदेपा, राकांपा, जेडीएस, भाकपा (एमएल), लोजद और स्वराज इंडिया शामिल हैं। उनकी मांगों में संसद और विधानसभाओं में महिला आरक्षण विधेयक को लागू करने, वन अधिकार अधिनियम को अक्षरश: लागू करने, पीडीएस को सार्वभौम करने और जन स्वास्थ्य खर्च में वृद्धि करना शामिल है। दस्तावेज के मुताबिक आरोपपत्र में यह भी आरोप लगाया गया है कि राजग सरकार ने ‘मिड डे मील’ के खर्च में कटौती की। इसे वर्ष 2014- 15 के 10,523 करोड़ रुपए से घटा कर 2018- 19 में 9,949 करोड़ रुपया कर दिया गया। दस्तावेज में आरोप लगाया गया है कि आरटीआई अर्जियों का लंबित रहना 2014-15 के 8.5 लाख से बढ़ कर 2017-18 में 14.5 लाख हो गया।

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