अंतरिक्ष में अपनी सूक्ष्म नजर के लिए भारत का हानले है, कुछ खास...

Edited By Ashish panwar,Updated: 17 Jan, 2020 07:46 PM

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भारत ने लद्दाख में 45 मीटर की ऊंचाई पर हानले से एक टेलिस्‍कोप स्‍थापित किया है। इस टेलिस्कोप की मदद से अंतरिक्ष और इससे जुड़ी दिलचस्‍प घटनाओं को करीब से जानने में काफी मदद मिलेगी। यह टेलिस्‍कोप लेह से करीब 200 किमी दूर हानले में स्‍थापित किया गया...

नेशनल डेस्कः भारत ने लद्दाख में 45 मीटर की ऊंचाई पर हानले से एक टेलिस्‍कोप स्‍थापित किया है। इस टेलिस्कोप की मदद से अंतरिक्ष और इससे जुड़ी दिलचस्‍प घटनाओं को करीब से जानने में काफी मदद मिलेगी। यह टेलिस्‍कोप लेह से करीब 200 किमी दूर हानले में स्‍थापित किया गया है। इंडियन एस्‍ट्रोनॉमिकल ऑब्‍जरवेटरी, हानले में यह टेलिस्‍कोप स्‍थापित किया गया है। अंतरिक्ष में रूचि रखने वालों के लिए हानले पहले से ही खास जगह रहा है। दरअसल, यहां पर भारत ने 2018 में पहला रोबोटिक टेलिस्‍कोप स्‍थापित किया गया था। करीब 19 हजार मीटर की ऊंचाई पर स्थित लद्दाख अंतरिक्ष के जानकारों के लिए इसलिए भी खास है क्‍योंकि यहां से अंतरिक्ष के जो नजारे दिखाई देते हैं वहां आमतौर पर देश के दूसरे भागों से नहीं दिखाई देते हैं। 

 

हानले इसलिए भी खास है क्‍योंकि यहां पर अंतरिक्ष में होने वाले ट्रांसिएंट इवेंट को ऑब्‍जर्व किया जा सकता है। ट्रांसिएंट इवेंट अंतरिक्ष में होने वाली वह छोटी लेकिन अहम घटना होती है जिसमें कुछ पल के लिए ऊर्जा का शॉर्ट लाइव बर्स्‍ट होता है। अंतरिक्ष पर नजर रखने वालों के लिए यह घटना बेहद खास होती है। इस टेलिस्‍कोप पर करीब 3.5 करोड़ रुपये का खर्च आया था जिसमें बेंगलुरू का इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ एस्‍ट्रॉफिजिक्‍स, आईआईटी मुंबई शामिल था। वर्तमान में जो टेलिस्‍कोप स्‍थापित किया गया है उसको भाभा परमाणु अंसुधान केंद्र (बीएआरसी) में तैयार किया गया है। इसके डिजाइन को बीएआरसी के साथ मिलकर तीन अन्य एजेंसियों ने तैयार किया है।

 

आपको बता दें कि कुछ समय पहले ही चीन ने दक्षिण-पश्चिम में स्थित गुइझोऊ प्रांत में टेलिस्‍कोप स्‍थापित किया है जो दुनिया का सबसे बड़ा फाइल्‍ड रेडियो टेलिस्‍कोप है। इसके अलावा यह दुनिया का दूसरे नंबर का सिंगल एपरेचर टेलिस्‍कोप भी है। इसका नाम फास्‍ट- फाइव हंड्रेड मीटर एपरेचर स्‍फेरिकल रेडियो टेलिस्‍कोप है। यह अब तक करीब 44 तेजी से घूमने वाला न्यूट्रॉन या तारों की खोज कर चुका है जिन्‍हें पल्‍सर कहा जाता है। पल्‍‍‍‍सर रेडियो वेव इलेक्‍ट्रोमेग्‍नेटिक रेडिएशन उत्सर्जित करता है। इस टेलिस्‍कोप का आकार 30 फुटबॉल ग्राउंड के बराबर है। इसको बनने में करीब 5 वर्ष का समय लगा था। दुनिया के कई देशों में विशालकाय टेलिस्‍कोप लगे हुए हैं जो अंतरिक्ष में हुई छोटी घटना को भी ऑब्‍जर्व कर लेते हैं। इसी फहरिस्‍त में स्‍पेन में लगा दुनिया के सबसे बड़े टेलिस्‍कोप में से एक ग्रान टेलिस्‍कोपियो केनारियाज है। यह स्‍पेन के केनरी आइसलैंड पर स्‍थापित किया गया है। इसको डिजाइन और डेवलेप करने में करीब एक हजार लोगों और 100 कंपनियों का योगदान रहा है। इसको बनकर तैयार होने में दस साल लगे थे। 24 जुलाई 2009 को इसका आधिकारिक तौर पर उदघाटन किया गया था।  

 

स्‍पेन के बाद इस लिस्‍ट में अमेरिका में हवाई के मोना की स्थित केक-1 और केक-2 का आता है। इसकी शुरुआत 1993 और 1996 में हुई थी। यह दोनों ही करबी 33 फीट चौड़े हैं। इसके डिजाइन को तैयार करने की शुरुआत 1977 में अमेरिका में दो यूनिवर्सिटी ने शुरू की थी। इसके नामकरण को लेकर एक दिलचस्‍प कहानी भी है। दरअसल, इसको बनाने की लागत काफी अधिक थी। इसको देखते हुए हॉवर्ड बी केक ने केक-1 प्रोजेक्‍ट के लिए 70 मिलियन डॉलर का योगदान दिया था। केक 1 की शुरुआत जहां 1985 में हुई थी। केक-2 की शुरुआत भी उनके ही दिए योगदान से हुई थी।  इसमें नासा के अलावा यूनिवर्सिटी ऑफ केलीफॉर्निया और कालटेक शामिल हैं। इसका प्रशासन केलीफॉर्निया एसोसिएशन फॉर रिसर्च इन एस्‍ट्रॉनामी करती है। 

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