Edited By Seema Sharma,Updated: 09 Aug, 2018 01:40 PM
पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक (ई.पी.आई.) 2018 में भारत को 7 माह बाद ही निचले पायदान के 5 देशों में शुमार करने पर केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने मंगलवार को कहा कि सूचकांक में ‘बदलाव किया गया’ है। हाल ही में जारी पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक 2018 में भारत को...
नई दिल्ली: पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक (ई.पी.आई.) 2018 में भारत को 7 माह बाद ही निचले पायदान के 5 देशों में शुमार करने पर केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने मंगलवार को कहा कि सूचकांक में ‘बदलाव किया गया’ है। हाल ही में जारी पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक 2018 में भारत को 180 देशों की सूची में 177वां स्थान दिया गया है जबकि वर्ष 2016 के पर्यावरणीय प्रदर्शन सूचकांक में भारत 141वें स्थान पर था। इस तरह से भारत के 36 अंक घट गए हैं। मंत्रालय ने कहा कि जिन वैज्ञानिक तर्कों से समझाने का प्रयास किया गया है वह ‘मनमाना’ प्रतीत होता है। मंत्रालय ने यह भी कहा कि ‘वास्तविक निगरानी डाटा के आधार पर नासा उपग्रह द्वारा एकत्रित आंकड़ों पर बनी रिपोर्ट पर उसे भरोसा है लेकिन उसकी समीक्षा नहीं की गई है। येल और कोलंबिया विश्वविद्यालय ने विश्व आर्थिक मंच के साथ मिलकर जनवरी में स्विट्जरलैंड के डेवोस में द्विवार्षिक रिपोर्ट जारी की गई थी, जिसमें 180वें देशों की रैंकिंग हुई थी। भारत पर्यावरणीय स्वास्थ्य श्रेणी में सूची में सबसे नीचे है। यहां हवा की गुणवत्ता 180 से घटकर 178 पर पहुंच गई है। ई.पी.आई. ने पाया कि वायु गुणवत्ता सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए बहुत बड़ा पर्यावरणीय खतरा बनी हुई है।
मंत्रालय ने कहा है कि रिपोर्ट के आकलन के अनुसार 3 स्तरों (नीति उद्देश्यों, अंक श्रेणियों और संकेतकों) को तवज्जो दी गई है। 2016 और 2018 आंकड़े अलग-अलग हैं। लोकसभा में लिखित उत्तर में राज्य मंत्री महेश शर्मा ने कहा कि विभिन्न भार और पद्धति के उपयोग में अंतर का तात्पर्य है कि रैंकिंग तुलनात्मक नहीं है। उन्होंने कहा कि श्रेणी के तहत ‘जल संसाधन’ के तहत, दिखाया गया एकमात्र संकेतक अपशिष्ट जल उपचार है, जो विकसित देशों को शीर्ष पर रखता है क्योंकि यह किसी समस्या का समाधान करने की क्षमता का एक उपाय है।
उन्होंने कहा कि ई.पी.आई. 2016 के तहत वायु गुणवत्ता केवल पर्यावरण स्वास्थ्य के तहत एक श्रेणी के रूप में बनाई गई है, जबकि ई.पी.आई. 2018 में ‘पारिस्थितिक तंत्र जीवन शक्ति’ के तहत वायु प्रदूषण की एक अतिरिक्त श्रेणी है, जो ‘गलत लगता है’। रिपोर्ट में भारत 177वें जबकि बंगलादेश 179वें रैंक पर है। इसके अलावा निचले पायदान के 5 देशों में बुरुंडी, कांगो और नेपाल भी शामिल हैं। रिपोर्ट (स्वास्थ्य मैट्रिक्स और मूल्यांकन संस्थान, 2017) में कहा गया था कि पिछले दशक में अल्ट्रा-फाइन पी.एम. 2.5 प्रदूषकों का बढऩा मौत की वजह बन रहा है और भारत में सालाना 1,640,113 मौतें अनुमानित हैं।
आगे की राह
- पर्यावरणीय समस्याओं का वास्तविक समाधान विकास की पर्यावरणीय लागतों को पहचानने और इन लागतों को ताॢकक बनाने में है।
- सौर ऊर्जा की ओर तीव्र संक्रमण के लिए सबसिडी देने के साथ ही अधिक प्रदूषणकारी ईंधनों, जैसे-पैट्रोल और डीजल की कीमत के उचित निर्धारण से भी इसे पूरित किया जा सकता है।
- कोयला-आधारित संयंत्रों द्वारा उत्पादित बिजली की लागत, आंशिक रूप से ही सही उपभोक्ताओं से वसूली जाने वाली कीमत में प्रतिबिंबित होनी चाहिए।
- इसी तरह, इलैक्ट्रिक वाहनों के उपयोग की ओर संक्रमण में इन वाहनों के मूल्य निर्धारण में इनकी सामाजिक लागत का समावेशन किया जाना चाहिए।
- हालांकि पर्यावरण की गुणवत्ता को रातों-रात बहाल करना संभव नहीं है। किंतु यह सुनिश्चित करना होगा कि पर्यावरणीय लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में हम आगे-पीछे नहीं बल्कि आगे की ओर बढ़ते रहें।