रिसर्चः गर्मी और उमस से बनी मौसमी स्थितियां बढ़ा सकती हैं भारत की मुश्किलें

Edited By Tanuja,Updated: 11 May, 2020 06:04 PM

india prone to weather event combining extreme heat

एक रिसर्च में यह खुलासा हुआ  है कि भारत समेत दुनिया के कई हिस्सों में वैश्विक तापमान में  बढ़ौतरी के कारण वायुमंडलीय गर्मी और उमस के मिलने से ...

न्यूयॉर्कः एक रिसर्च में यह खुलासा हुआ है कि भारत समेत दुनिया के कई हिस्सों में वैश्विक तापमान में बढ़ौतरी के कारण वायुमंडलीय गर्मी और उमस के मिलने से बेहद खतरनाक मौसमी परिस्थितियां बन रही हैं।  रिसर्च के अनुसार ऐसी परिस्थितियों के अर्थव्यवस्थाओं पर विनाशकारी प्रभाव पड़ सकते हैं। मौसम केंद्रों के 1979 से 2017 तक के आंकड़ों का विश्लेषण करने पर शोधार्थियों ने पाया कि रिसर्च काल के दौरान भीषण उष्मा और आर्द्रता का संयोजन दोगुना हो गया है।

 

जर्नल ‘साइंस एडवांसेज' में प्रकाशित रिसर्च के मुताबिक भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान, पश्चिमोत्तर ऑस्ट्रेलिया, लाल सागर के तटीय क्षेत्रों और कैलिफोर्निया की मैक्सिको की खाड़ी में भीषण गर्मी और उमस की कई घटनाएं हुईं। वैज्ञानिकों ने कहा कि सऊदी अरब के शहर जहरान, कतर के दोहा और संयुक्त अरब अमीरात के रास अल खैमा में सबसे ज्यादा घातक आंकड़े 14 बार दर्ज किये गए। इन शहरों की आबादी मिलाकर करीब 30 लाख है। उन्होंने हाल में एक दर्जन से ज्यादा बार संक्षिप्त प्रकोपों को सैद्धांतिक मानव उत्तरजीविता सीमा के पार होते देखा।

 

शोधकर्ताओं के मुताबिक अब तक मौसम संबंधी ये भीषण घटनाक्रम स्थानीय इलाकों तक सीमित रहे और महज कुछ घंटों में खत्म हो गए, लेकिन अब इनके आने की आवृत्ति और तेजी बढ़ रही है। कोलंबिया विश्वविद्यालय के पीएचडी प्रतिभागी के तौर पर रिसर्च करने वाले इस रिसर्च के प्रमुख लेखक कोलिन रेमंड ने कहा, “पूर्व में हुए रिसर्च में अनुमान व्यक्त किया गया था कि यह अबसे कुछ दशक बाद होगा, लेकिन यह दिखाता है कि यह अभी हो रहा है।” रेमंड ने कहा, “इन घटनाओं के होने का समय बढ़ेगा और इनके प्रभाव में आने वाले क्षेत्र का दायरा भी वैश्विक तापमान के सीधे समानुपात में बढ़ेगा।”

 

पूर्व में ऐसी अजीबोगरीब घटनाएं क्यों नहीं देखी गईं, इसका जवाब देते हुए वैज्ञानिकों ने कहा कि पूर्व के रिसर्च में आम तौर पर बड़े इलाके में उष्मा और आर्द्रता के औसत को एक बार में कई घंटों तक मापा जाता था। हालिया रिसर्च में रेमंड और उनके सहकर्मियों ने 7877 मौसम केंद्रों से आए हर घंटे के आंकड़ों का सीधे रिसर्च किया, जिससे उन्हें छोटे इलाकों को प्रभावित करने वाले कम देर रहने वाले इन मौसमी दुष्चक्रों का भी सही पता लगाने में मदद मिली।

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