किस्सा उन भारतीयों का जो वैसा भारत बनाने में जुटे है जैसा लिखा गया था सविधान में

Edited By Isha,Updated: 26 Jan, 2019 03:45 PM

indians are engaged in making india as they were written in the constitution

आज गणतंत्र दिवस है। वह दिन जब हम भारतीयों को हमारा संविधान मिला था। जब हमें हमारे अधिकारों और कत्र्तव्यों से रू-ब-रू करवाया गया था। संविधान को लागू हुए आज 69 वर्ष हो गए हैं। बीते इन वर्षों में हमने तरक्की की बुलंदियों को छुआ

नेशनल डेस्क(पीयूष शर्मा): आज गणतंत्र दिवस है। वह दिन जब हम भारतीयों को हमारा संविधान मिला था। जब हमें हमारे अधिकारों और कत्र्तव्यों से रू-ब-रू करवाया गया था। संविधान को लागू हुए आज 69 वर्ष हो गए हैं। बीते इन वर्षों में हमने तरक्की की बुलंदियों को छुआ है और इसके कई आयाम स्थापित किए हैं, लेकिन आज भी हम पूरी तरह से वैसा भारत नहीं बना पाए हैं जैसा संविधान में तय किया गया था। आज हम आपको कुछ ऐसे लोगों से मिलवाने जा रहे हैं जो ठीक वैसा भारत बनाने में जुटे हैं जैसे भारत की कल्पना गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर और डॉ. भीम राव अंबेडकर ने की थी। हमारा मकसद आपको इन लोगों से सिर्फ रू-ब-रू करवाने का ही नहीं है, बल्कि यह बताने का भी है कि तमाम मुश्किलों के बावजूद इन्होंने अब तक हार नहीं मानी है।


मिलिए बानी और रोबिन से जो रैड लाइट एरिया में काम करने वाली महिलाओं की बेटियों को पढ़ा-लिखा कर उन्हें आजादी, सामाजिक और आर्थिक न्याय दिलवा रही हैंः
बा
त 2010 की है। मुंबई में रहने वाली कोलकाता की बानी दास एक ऐसी संस्था में काम करती थी जो ह्यूमन ट्रैफिकिंग का शिकार हुई महिलाओं और बच्चियों को रैस्क्यू कर लाती थी। यह संस्था महिलाओं को रैड लाइट एरिया और डांस बार्स से बाहर निकाल कर तो लाती थी, लेकिन उन्हें एक ऐसी बिल्डिंग में रखती थी जो जेल जैसी थी। लड़कियां वहां अचार और पापड़ बनाने का काम करती थीं। उनमें से ज्यादातर बाहर जाकर एक नई जिंदगी की शुरूआत करना चाहती थीं, ...लेकिन संस्था की तरफ से बाहर जाने की अनुमति नहीं थी और बानी को अपनी संस्था की यही बात बुरी लगती थी। सुजाता नाम की एक लड़की थी जिसे डांस बार से रैस्क्यू कर लाया गया था। संस्था ने सुजाता को उसके घर पहुंचाने का जिम्मा बानी को दिया। बानी चली गई, लेकिन सुजाता को उसके परिवार ने नहीं अपनाया। बाद में संस्था ने भी हाथ खड़े कर लिए। बानी ने उस संस्था को छोड़  खुद लड़की की देखभाल करने का फैसला किया। जब बानी उस संस्था में काम करती थी तो उसकी मुलाकात रोबिन चौरसिया नाम की अमरीका में जन्मी एक लड़की से हुई थी। वह उसी संस्था में काम करने के लिए आई थी लेकिन कुछ समय बाद अमरीका लौट गई थी।

रोबिन को भी पता था कि वहां रैस्क्यू कर लाई गई लड़कियां आजाद होकर भी आजाद नहीं थीं।   रोबिन ने बानी को मुंबई में एक घर किराए पर लेने के लिए कहा। बानी घर लेकर सुजाता के साथ वहां रहने लगी। जब रोबिन इंडिया आई तो दोनों ने मिलकर अपनी संस्था शुरू की, नाम रखा ‘क्रांति’ जिसमें मानसिक, आॢथक और सामाजिक तौर पर तैयार होने वाली पहली लड़की सुजाता थी।  सुजाता अब शादीशुदा है। वह अपने पति के साथ  एक सैलून चला रही है। सुजाता अच्छी आर्टिस्ट (पेंटर) भी है। ‘क्रांति’ सुजाता के साथ शुरू तो हो गई थी, अब बानी और रोबिन का अगला मकसद था रैड लाइट एरिया में पल रहीं सैक्स वर्कर्स की बेटियों के लिए काम करना। उन्होंने मुंबई के रैड लाइट एरिया कमाठीपुरा में विजिट की। एक दिन किसी ने कह दिया कि ‘सैक्स वर्कर की बेटी सैक्स वर्कर ही बनेगी, आप क्या कर लोगे।’ यह बात बानी और रोबिन को बहुत बुरी लगी। उन्होंने ठान लिया कि वे सैक्स वर्कर्स की बेटियों को पढ़ाएंगी और उन्हें फख्र से जीना सिखाएंगी। बस यहीं से कारवां चल पड़ा। दोनों ने एक घर किराए पर लिया, जहां एक के बाद एक कुल 20 बच्चियों को रखा। किसी से मदद नहीं ली। रोबिन के पास कुछ सेविंग्स थीं और कुछ फंड्स जुटा लिए गए। फिर स्ट्रगल शुरू हुई बच्चों का एडमिशन करवाने की। क्रांति की तरफ से जब भी बानी और रोबिन एडमिशन के लिए जाते स्कूल इन बच्चों को एडमिशन नहीं देते। कड़ी मशक्कत के बाद एक-आध स्कूल एडमिशन के लिए राजी हुआ। बच्चों ने पढ़ाई शुरू कर दी। जैसे-जैसे स्कूल के बाकी बच्चों को पता चला तो उनका रवैया बदल गया। टीचर्स भी इन्हें वैसा ट्रीटमैंट नहीं देते थे जैसा कि बाकी बच्चों को मिलता था।  

बानी और रोबिन ने फैसला किया कि  इन बच्चियों को स्कूल नहीं भेजेंगे, घर पर ही पढ़ाएंगे।  बच्चियों को घर पर ही पढ़ाया जाने लगा।  रोबिन यू.एस. एयरफोर्स में थीं। पढ़ी-लिखी थीं इसलिए यह जिम्मा उन्होंने उठाया। बच्चियों का एडमिशन ओपन स्कूल में करवा दिया गया। अब वे स्कूल सिर्फ एग्जाम देने के लिए जाती हैं। रोबिन के साथ-साथ कुछ वॉलंटियर्स उन बच्चियों को घर पर पढ़ाने आते हैं। खैर, एक मुसीबत टली ही थी कि दूसरी आन पड़ी। जहां ये लोग किराए का घर लेकर रह रहे थे वहां लैंडलॉर्ड को किसी ने बता दिया कि लड़कियां अनाथ नहीं बल्कि सैक्स वर्कर्स की बेटियां हैं।  अब तक लैंडलॉर्ड को यही पता था कि सभी बच्चे अनाथ हैं। ‘क्रांति’ को घर खाली करने के लिए बोल दिया गया। अब तक क्रांति 4 घर बदल चुकी है और पांचवीं बार फिर से बदलने वाली है। दरअसल बानी, रोबिन और बच्चियों को एक बार फिर से मार्च तक घर खाली कर देने का ऑर्डर मिला है।  यह सिलसिला जारी है लेकिन बानी और रोबिन हार मानने वालों में से नहीं हैं। दोनों घर बदलती रहती हैं और बच्चियों की पढ़ाई के साथ-साथ उनकी एक्स्ट्रा एक्टिविटीज भी जारी हैं। कोई गिटार सीखता है तो कोई पेंटिंग। कोई ड्रमिंग कर रही है तो कोई  थैरेपिस्ट है।  खुशी की बात यह है कि 20 में से 4 बच्चियां अमरीका में हैं। एक इटली में और एक यू.के. में है। 3 बच्चियों को हाल ही में दिल्ली की एक यूनिवॢसटी में एडमिशन मिला है। इन्हीं में से एक है श्वेता कट्टी जो देश की पहली ऐसी लड़की है जो जन्मी और पली मुंबई के कमाठीपुरा रैड लाइट एरिया में लेकिन पढ़ाई विदेश में कर रही है। यह क्रांति की वजह से संभव हो पाया। 

बानी दास ने बातचीत के दौरान बताया..
‘कमाठीपुरा में सैक्स वर्कर्स और उनके बच्चों का जीवन कैसा होता है, यह जानकरपहली बार मेरी भी रूह कांप गई थी। एक छोटा-सा कमरा होता है, जिसमें एक चारपाई रखने और मुश्किल से 5 कदम चलने की जगह होती है। उस चारपाई के नीचे राशन और चूल्हा रखा होता है। उसी चारपाई के नीचे बच्चे होते हैं। ...और जो उस चारपाई पर हर दिन घटता है, बच्चे सब सुनते और जाने-अनजाने में देखते हैं। हर रोज बच्चे उस भयावह मंजर के गवाह बनते हैं। कई बार तो उनकी मां को मारा-पीटा भी जाता है। यह सब बच्चों के जेहन में घर कर जाता है। क्रांति का सबसे पहला टास्क होता है बच्चों के जेहन से वह सब निकालना और उन्हें यकीन दिलाना कि इस सबके बाहर एक खूबसूरत दुनिया है। हम उन्हें थैरेपी देते हैं। उनकी काऊंसङ्क्षलग करते हैं।’

‘क्रांति’ की एक स्टूडैंट बताती है
‘मेरी मां सैक्स वर्कर है और कमाठीपुरा मेरा घर है। मुझे एक नेपाली आंटी ने खाना खिलाया है और एक बंगाली अंकल ने घुमाया-फिराया  है। मेरी मां ने कभी नहीं चाहा कि मैं ये सब  करूं। बचपन में ही उन्होंने मेरा स्कूल में एडमिशन करवा दिया था, मैंने बहुत सहा है। बहुत ताने सुने हैं। गंदी गालियां तक सुनी हैं लेकिन पढ़ाई नहीं छोड़ी। बस एक ही दुख है कि जिससे मैं कमाठीपुरा में बची रही वह घटना मेरे साथ स्कूल में घटी। मेरे एक टीचर ने ही मुझे सैक्सुअली एब्यूज किया था। तब मैं नासमझ भी थी लेकिन कैसे कोई टीचर ऐसे कर सकता है? खैर, मैं अब स्कूल नहीं जाती। मैं क्रांति का हिस्सा हूं। खुश हूं हम परिवार की तरह हैं। मुझे यहां थैरेपी मिलती है। पढऩे-लिखने के साथ-साथ बहुत कुछ सीख भी रहे हैं।’ क्रांति ने फिलहाल सिर्फ 20 बच्चियों को जिम्मा उठाया है। बानी और रोबिन का कहना है कि उनका मकसद 100-200 लड़कियों को इकठ्ठा कर अखबारों में नाम छपवाना नहीं है। वे इन 20 को ही एजैंट ऑफ सोशल चेंज बनाएंगी जो आगे जाकर अपनी जैसी अन्य बच्चियों की मदद करेंगी और उन्हें समाज में बराबरी का दर्जा दिलवाएंगी।

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