Edited By Seema Sharma,Updated: 27 Aug, 2018 12:54 PM
भारत और पाकिस्तान के बीच लंबे समय से सिंधु जल समझौते को लेकर विवाद चल रहा है। दनों देशों की सरकारें कब से इस विवाद को सुलझाने के प्रयास करती रही हैं। वहीं एक बार फिर से पाकिस्तान की नई इमरान खान सरकार इस पर चर्चा करने पर विचार बना रही है।
नई दिल्लीः पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के कार्यभार संभालने के बाद पहली द्विपक्षीय वार्ता के तहत भारत और पाकिस्तान बुधवार को लाहौर में सिंधु जल संधि के विभिन्न आयामों पर फिर से अपनी बातचीत शुरू करेंगे। समाचार पत्र डॉन ने एक सरकारी अधिकारी के हवाले से खबर दी है कि भारत के सिंधु जल आयुक्त पीके सक्सेना के बुधवार को उनके पाकिस्तानी समकक्ष सैयद मेहर अली शाह के साथ दो दिवसीय बातचीत के लिए आज यहां पहुंचने की संभावना है। भारत-पाकिस्तान के स्थायी सिंधु आयोग की पिछली बैठक मार्च में नई दिल्ली में आयोजित की गई थी। इस दौरान दोनों पक्षों ने 1960 की सिंधु जल संधि के तहत जल बहाव और इस्तेमाल किए जाने वाले पानी की मात्रा पर ब्यौरा साझा किया था।
इमरान के 18 अगस्त को प्रधानमंत्री बनने के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच यह पहली अधिकारिक वार्ता होगी। पाकिस्तान के 22वें प्रधानमंत्री बनने पर खान को लिखे पत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दोनों देशों के बीच अच्छे पड़ोसियों के संबंध बनाने का भारत का संकल्प व्यक्त किया था। पाकिस्तानी पक्ष 29-30 अगस्त को निर्धारित दो दिवसीय बातचीत के दौरान भारत द्वारा बनाई गई दो जल संग्रहण और पनबिजली परियोजनाओं पर अपनी आपत्तियां फिर से दर्ज करा सकता है।
अधिकारी ने बताया कि पाकिस्तान चेनाब नदी पर 1000 मेगावॉट पाकुल डुल और 48 मेगावॉट लोअर कलनई पनबिजली परियोजनाओं पर अपनी चिंताएं व्यक्त करेगा। पाकिस्तान और भारत के जल आयुक्तों की साल में दो बैठकें होती हैं और परियोजना स्थलों की तकनीकी यात्राओं की व्यवस्था करनी होती है। हालांकि समयबद्ध बैठकों और यात्राओं को लेकर पाकिस्तान को कई सारी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।आखिर यह सिंधु समझौता है क्या, कैसे हुआ और इसके तोड़ने से पाकिस्तान और भारत पर क्या असर पड़ेगा पर एक नजर।
1960 में हुआ था समझौता
1960 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तानी शासक अयूब खान में समझौता हुआ था। इसके तहत सिंधु बेसिन में बहनें वाली 6 नदियों में से सतलुज, रावी और ब्यास पर तो भारत का पूर्ण अधिकार है। वहीं पश्चिमी हिस्से की सिंधु, चेनाब और झेलम के पानी का भारत सीमित इस्तेमाल कर सकता है। 1948 में दोनों देशों का बंटवारा होने के कुछ महीने बाद ही भारत ने सिंधु नदी का पानी रोक दिया था। इसके लिए पाकिस्तान को 1953-1960 तक मेहनत करनी पड़ी। पाकिस्तान के सालों तक गिड़गिड़ाने के बाद 19 सितंबर 1960 को भारत के साथ सिंधु नदी जल समझौता हुआ। तब से अब तक पाकिस्तान इस पानी को धड़ल्ले से इस्तेमाल कर रहा है। पाकिस्तान के लिए इससे भी बड़ी चिंता की बात यह है कि रावी और झेलम नदियां भी भारत से होकर पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में जाती हैं। अगर सिंधु नदी जल समझौता रद्द हुआ तो रावी और झेलम नदियों का पानी भी रोका जा सकता है, ऐसा होने से पाकिस्तान की कृषि व्यवस्था चौपट हो जाएगी।
संधि तोड़ने पर भारत के सामने चुनौती
पहली नजर में तो ये लगता है कि समझौता तोड़ने का फैसला पाकिस्तान को प्यासा मार सकता है लेकिन ये इतना आसान भी नहीं है। समझौते में तय हुआ था कि भारत सिंधु, झेलम और चिनाब पर बांध नहीं बनाएगा। जिसकी वजह से भारत के सामने दिक्कत ये है कि पाकिस्तान के हिस्से वाली नदियों का पानी रोकने के लिए भारत को बांध और कई नहरें बनानी होंगी जिसमें बहुत पैसा और वक्त लगेगा। इससे विस्थापन की समस्या का सामना भी करना पड़ सकता है और पर्यावरण भी प्रभावित होगा, यानी फौरी तौर पर पाकिस्तान इससे प्रभावित नहीं होगा बल्कि भारत पर भी इसका असर पड़ेगा।
ये है विवाद
पाकिस्तान कई बार वर्ल्ड बैंक के सामने जम्मू-कश्मीर में भारत के किशनगंगा और राटले पनबिजली परियोजना का मुद्दा उठा चुका है। पाक ने रातले, किशनगंगा सहित भारत द्वारा बनाए जा रहे 5 पनबिजली परियोजनाओं के डिजाइन को लेकर चिंता जाहिर की थी और वर्ल्ड बैंक से कहा था कि ये डिजाइन सिंधु जल समझौते का उल्लंघन करते हैं। इन परियोजनाओं को लेकर पाकिस्तान ने साल 2016 में विश्व बैंक को शिकायत कर पंचाट के गठन की मांग की थी। वहीं पाक के विरोध पर भारत का कहना है कि परियोजनाएं समझौते का उल्लंघन नहीं करती हैं और वर्ल्ड बैंक को एक निष्पक्ष एक्सपर्ट नियुक्त करना चाहिए।