NGT ने हरियाणा सरकार को लगाई फटकार, कहा-लोगों की कब्र पर नहीं हो सकता औद्योगिक विकास

Edited By Yaspal,Updated: 07 Nov, 2019 10:44 PM

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राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने बृहस्पतिवार को कहा कि औद्योगिक विकास लोगों की जान की कीमत पर नहीं हो सकता और यह ‘‘वायु और पानी'''' की गुणवत्ता को ताक पर रखकर नहीं होना चाहिए। एनजीटी ने यह बात हरियाणा सरकार को

नई दिल्लीः राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने बृहस्पतिवार को कहा कि औद्योगिक विकास लोगों की जान की कीमत पर नहीं हो सकता और यह ‘‘वायु और पानी'' की गुणवत्ता को ताक पर रखकर नहीं होना चाहिए। एनजीटी ने यह बात हरियाणा सरकार को प्रदूषण फैलाने वाले कारखानों के निरीक्षण की अवधि में कमी लाने का निर्देश देते हुए कही। एनजीटी अध्यक्ष न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल के नेतृत्व वाली पीठ ने कहा कि ‘‘अत्यधिक प्रदूषण फैलाने'' वाले उद्योगों के संबंध में निरीक्षण की अवधि में कमी लाने और आवृत्ति बढ़ाने की जरूरत है।
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पीठ ने कहा, ‘‘कहने की जरूरत नहीं है कि औद्योगिक विकास सतत तरीके से जरूरी है, यह वायु और पानी की गुणवत्ता की कीमत पर नहीं हो सकता, जो जीवन के लिए जरूरी है। औद्योगिक विकास लोगों की जान की कीमत पर नहीं हो सकता।'' पीठ ने कहा, ‘‘नौकरशाही प्रक्रियाओं में छूट, उसे सरल एवं आसान बनाने और औद्योगिक विकास एवं रोजगार सृजन कार्यक्रमों को प्रोत्साहित करने पर कोई आपत्ति नहीं हो सकती लेकिन ऐसी पहल को वायु एवं पानी की गुणवत्ता में गिरावट के संदर्भ में संतुलित किया जाना चाहिए तथा वायु एवं पानी की गुणवत्ता संरक्षित की जानी चाहिए।''
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हरित अधिकरण ने कहा कि कम प्रदूषण फैलाने वाले ‘‘हरित श्रेणी'' में भी निगरानी जरूरी है जिससे यह पता चल सके कि ‘‘हरित'' दर्जे का सही तरीके से इस्तेमाल हो रहा है या नहीं। अधिकरण ने कहा कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के लिए यह जरूरी है कि वह वायु और जल गुणवत्ता संबंधी डेटा को लेकर सभी राज्यों में नीतियों की समीक्षा सुनिश्चित करे। एनजीटी ने कहा कि नीति में जल (संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण) कानून, 1974 के साथ ही वायु (प्रदूषण रोकथाम एवं नियंत्रण) कानून, 1981 के संदर्भ में निरीक्षण शामिल होना चाहिए। एनजीटी ने कहा कि अगली सुनवायी तिथि से पहले सीपीसीबी कार्यवाही रिपोर्ट ईमेल के माध्यम से दाखिल करे।
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एनजीटी ने हरियाणा सरकार को निरीक्षण अवधि में कमी लाने का निर्देश दिया और कहा कि अधिक प्रदूषण फैलाने वाली 17 श्रेणी में अनिवार्य निरीक्षण की अवधि तीन महीने, लाल श्रेणी में छह महीने, नारंगी श्रेणी में एक वर्ष और हरित श्रेणी में दो वर्ष होगी। पीठ ने कहा, ‘‘इस समय-सीमा और अन्य बदलावों का सीपीसीबी द्वारा अन्य राज्यों के लिए जल (संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण) कानून, 1974 के साथ ही वायु (प्रदूषण रोकथाम एवं नियंत्रण) कानून, 1981 के तहत पालन किया जा सकता है, जब तक कि किसी विशेष राज्य के लिए अपवाद के कारण न हों।''
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पीठ ने हरियाणा के मुख्य सचिव को भी निर्देश दिया कि वह सीपीसीबी की रिपोर्ट में उल्लेखित कमियों को दूर करने के लिए कार्रवाई सुनिश्चित करें, विशेष तौर पर भूमिगत जल में फ्लोराइड के संबंध में। अधिकरण ने यह निर्देश शैलेश सिंह की ओर से दाखिल एक अर्जी पर सुनवायी के दौरान दिया। अर्जी में उन औद्योगिक इकाइयों को बंद करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था जो जल (संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण) कानून, 1974 के साथ ही वायु (प्रदूषण रोकथाम एवं नियंत्रण) कानून, 1981 के तहत जरूरी वैधानिक अनुमति के बिना संचालित हो रहे हैं। अर्जी में आरोप लगाया गया है कि ये उद्योग जल प्रदूषण फैला रहे हैं। अर्जी में यह निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया है कि इन उद्योगों का जल बिना शोधित किये खेतों में डालने से रोका जाए।

 

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