क्या इन आंकड़ों में छिपा है ‘आएगा तो मोदी ही’ नारे का आत्मविश्वास?

Edited By Pardeep,Updated: 16 May, 2019 05:53 AM

is it hidden in these figures if modi comes the confidence of the slogan

पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 2 नारे दिए थे जो बच्चे-बच्चे की जुबां पर चढ़ गए थे। ये नारे थे-‘अच्छे दिन आने वाले हैं’ और ‘मोदी आने वाला है।’ मोदी की हर जनसभा में उनके आने से पहले यही नारे संगीतबद्ध करके बजाए जाते थे। अब भी तमाम खींचातानी के बाद...

इलेक्शन डेस्क(संजीव शर्मा): पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 2 नारे दिए थे जो बच्चे-बच्चे की जुबां पर चढ़ गए थे। ये नारे थे-‘अच्छे दिन आने वाले हैं’ और ‘मोदी आने वाला है।’ मोदी की हर जनसभा में उनके आने से पहले यही नारे संगीतबद्ध करके बजाए जाते थे। अब भी तमाम खींचातानी के बाद भाजपा एक नारे पर आकर टिक गई है। यह नारा है-‘आएगा तो मोदी ही।’ भाजपा समर्थक जहां हर मौके और हर बात पर इस नारे को फिट करने में लगे हुए हैं वहीं सियासी पंडित भी यह सोचने में मशगूल हैं कि इसकी वजह क्या है कि ‘आएगा तो मोदी ही।’ वह कौन-सा गणित है जो मोदी और शाह के दिमाग में इतना ज्यादा आत्मविश्वास बनाए हुए है। हमने भी कुछ खंगालने की कोशिश की है। आइए देखते हैं क्या निकला इस मंथन में।

200 से अधिक लखवोटिया सीटें 
2014 के चुनाव में 312 सीटें ऐसी थीं जिन पर जीत का अंतर 1 लाख से अधिक था। इनमें से 207 सीटें भाजपा ने जीती थीं। पिछले चुनाव में भाजपा ने 42 सीटों पर 3 लाख से अधिक वोटों से जीत दर्ज की थी। इसी तरह 75 सीटों पर भाजपा उम्मीदवारों को 2 लाख से ज्यादा के मतांतर से जीत हासिल हुई थी। इसके अतिरिक्त 38 सीटों पर डेढ़ लाख वोटों के अंतर से जीत हासिल की थी और 52 सीटों पर उसे 1 लाख से ज्यादा वोटों के अंतर से जीत मिली थी। ये सभी सीटें मिलकर 207 बनती हैं जो उसकी कुल सीटों का करीब 75 फीसदी है। 

सोशल मीडिया पर बढ़त 
कोई शक नहीं कि इस बार का चुनाव पूरी तरह से सोशल मीडिया पर लड़ा जा रहा है। हालांकि मोदी ने 2014 में ही इसका इस्तेमाल कर लिया था लेकिन कांग्रेस अभी भी इस मामले में पिछड़ी हुई है। भाजपा ने संगठन के स्तर पर सोशल मीडिया प्रकोष्ठ बनाए हुए हैं। बूथ लैवल तक 5 लोगों की टीम सोशल मीडिया हैंडल कर रही है जबकि कांग्रेस समेत बाकी दल अभी इस मामले में केंद्रीय टीम तक ही सीमित हैं। ऐसे में जब कोई मसला वायरल करना हो तो भाजपा की पावर विपक्ष से कहीं ज्यादा है। कई बार तो ऐसी बात भी सच दिखने लगती है जो वास्तव में हुई ही न हो क्योंकि उसे सोशल मीडिया के हर प्लेटफार्म पर फैला दिया जाता है।

गुजरात में भाजपा ने सभी 26 सीटों में से 24 पर 1 लाख या उससे अधिक के माॢजन से जीत हासिल की थी। भाजपा के मौजूदा सांसदों में प्रीतम मुंडे ऐसी सांसद हैं जिन्होंने अपनी सीट 6 लाख 96 हजार 321 वोटों के अंतर से जीती है। हालांकि यह आम चुनाव न होकर उपचुनाव था जो उनके पिता गोपीनाथ मुंडे की मृत्यु के बाद अक्तूबर 2014 में हुआ था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद वडोदरा सीट 5 लाख 70 हजार 128 और वाराणसी सीट 3 लाख 71 हजार 785 वोट से जीती थी।

मध्य प्रदेश की 29 में से जिन 27 सीटों पर भाजपा जीती थी उनमें से 15 पर जीत का अंतर डेढ़ लाख से ज्यादा था। यहां सुषमा स्वराज ने विदिशा सीट 4 लाख 10 हजार 698 वोटों के अंतर से जीती थी। इसी तरह राजस्थान की 25 में से 17 सीटों पर भाजपा की जीत का मार्जिन 1 लाख से 3 लाख के बीच था। 

हिमाचल में भी शांता कुमार करीब 2 लाख के मार्जिन से जीते थे। जाहिर है कि भाजपा को इन सीटों पर मतांतर घटने का तो अनुमान है लेकिन हारने का कतई नहीं। 

एकजुट विपक्ष 
भाजपा को इस चुनाव में दूसरा सबसे बड़ा लाभ बिखरे विपक्ष की वजह से होता दिख रहा है। सभी दल मोदी को हटाने के दावे तो कर रहे हैं लेकिन वे आपस में एकजुट नहीं हैं। जिस महागठबंधन की चर्चा बड़े जोर-शोर के साथ शुरू हुई थी वह महज उत्तर प्रदेश तक सिमट गया है। उस पर भी यह तय नहीं है कि वहां कांग्रेस अकेले लड़कर किसे झटका देना चाहती है। उधर भाजपा ने सारा कैम्पेन मोदी के नाम कर दिया है। किसी भी सांसद के लिए निजी तौर पर वोट नहीं मांगे जा रहे। सब मोदी के नाम पर वोट मांग रहे हैं जबकि दूसरी तरफ  प्रधानमंत्री का कोई चेहरा नहीं है। राहुल गांधी ने भी गुजरात और कर्नाटक में पी.एम. बनने की इच्छा जताने के बाद खुद को पीछे कर लिया है। वह लगातार मोदी को हटाने की बात तो कर रहे हैं लेकिन प्रधानमंत्री कौन होगा इस पर चुप्पी साध लेते हैं। भाजपा को निश्चित तौर पर इसका लाभ मिलने की उम्मीद है। 

मत प्रतिशत और सीट शेयर का अंतर 
भाजपा के पक्ष में एक और सबसे बड़ी बात है पिछले चुनाव में वोट और सीट शेयर की। 2014 के चुनाव में कुल 55 करोड़ 38 लाख 01 हजार 801 वोट पड़े थे। इसमें से भाजपा को 17 करोड़ 16 लाख 60 हजार 230 वोट मिले थे। इसके विपरीत कांग्रेस को 10 करोड़ 69 लाख 35 हजार 942 वोट मिले थे। इस तरह से भाजपा का वोट शेयर 31 फीसदी था जबकि कांग्रेस का महज 19.31 फीसदी। 

भाजपा को इसमें 12.20 प्रतिशत का लाभ और कांग्रेस को 9.24 प्रतिशत का नुक्सान हुआ था। बात अगर सीट शेयर की करें तो 2014 के चुनाव में भाजपा का सीट शेयर 51.93 फीसदी था जबकि कांग्रेस महज 8.01 फीसदी पर थी। यही नहीं भाजपा के अलावा किसी भी पार्टी का सीट शेयर प्रतिशत दहाई से नीचे था। जाहिर है कि इतनी बड़ी गिरावट को रोकने के लिए विपक्ष का एकजुट होना जरूरी था जो हुआ नहीं। ऐसे में भाजपा अगर कह रही है कि आएगा तो मोदी ही तो उसकी एक वजह यह भी है। 

1 लाख  से अधिक के मार्जिन से जीती गईं सीटें  
पार्टी                            सीटें   
भाजपा                         207  
ए.आई.ए.डी.एम.के.         25 
तृणमूल कांग्रेस               16 
बीजद                           14 
शिवसेना                       14 
कांग्रेस                          08 
टी.आर.एस.                   06 
माकपा                          02 
सपा                             02 
आप                            02 
राजद                           01 
अन्य                           15

यहां नहीं जीते तो जाएगा भी मोदी ही 
भाजपा ने पिछली बार कुछ राज्यों में क्लीन स्वीप कर डाला था। भाजपा ने गुजरात की सभी 26 व राजस्थान की भी सभी 25 सीटें जीती थीं। इसी तरह एम.पी. की 29 में से 27 और छत्तीसगढ़ की 11 में से 10 सीटें भाजपा के खाते में गई थीं। उत्तर प्रदेश की 80 में से 73, महाराष्ट्र की 48 में से 41 और बिहार की 40 में से 32 सीटें एन.डी.ए. के पास थीं। यानी इन राज्यों की कुल 259 सीटों में से भाजपा/एन.डी.ए. के पास 237 सीटें थीं। भाजपा का हिस्सा इसमें 208 सीटों का था। अब राजस्थान, एम.पी. और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकारें हैं। महाराष्ट्र, यू.पी. और बिहार में गठबंधन की टक्कर मिल रही है। ऐसे में यहां अगर घाटा पड़ा तो दिक्कत हो जाएगी। हालांकि भाजपा इस बार  पश्चिम बंगाल और दक्षिण में लाभ पाने की उम्मीद कर रही है जिस पर ही सारा खेल टिका हुआ है।    
 


             

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