मिशन 2019ः क्या मोदी का करिश्मा बरकरार है?

Edited By Seema Sharma,Updated: 14 Jan, 2019 09:56 AM

is modi s charisma intact

भाजपा 2014 के लोकसभा चुनावों के बाद से अलग-अलग राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में हुई जीत का सेहरा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सिर पर बांधती आई है लेकिन अब जब 3 राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा की हार हुई है

नई दिल्ली: भाजपा 2014 के लोकसभा चुनावों के बाद से अलग-अलग राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में हुई जीत का सेहरा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सिर पर बांधती आई है लेकिन अब जब 3 राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा की हार हुई है तो यह चर्चा का विषय बन गया है कि क्या मोदी का करिश्मा बरकरार है? इन विधानसभा चुनावों में माहौल बनाने और हार को जीत में तबदील करने की जो कला प्रधानमंत्री मोदी में बताई जाती है, इस बार वह काम नहीं आ सकी। छत्तीसगढ़ में 3 बार सत्ता में रही रमन सिंह सरकार को जितने जोरदार तरीके से जनता ने नकारा है, वह दिखाता है कि यहां मोदी की रैलियों का कोई असर नहीं हुआ।
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स्थानीय मुद्दे, राज्य स्तरीय नेता और माहौल को मोदी का जादू बदल नहीं पाया। इसी तरह मध्य प्रदेश में भी शिवराज चौहान चौथी बार सत्ता पर काबिज होने में सफल नहीं हो सके। मध्य प्रदेश में जितनी कांटे की टक्कर रही उसमें किसी जादू के चलने का सबूत नहीं मिला। वहीं राजस्थान में हवा का रुख वसुंधरा राजे और उनके राजशाही रवैये के खिलाफ शुरू से बना हुआ था। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और वसुंधरा राजे के खराब रिश्तों की चर्चा भी थी। इस सबके बावजूद प्रचार के अंतिम चरण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का प्रचार भी राजस्थान में चुनावी दृश्य को बदल नहीं पाया मगर इसके बावजूद राजनीति का गहरा ज्ञान रखने वालों से की गई बात में यह सामने आया है कि सीधे तौर पर यह कहना मुश्किल है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का करिश्मा फीका पड़ गया है क्योंकि राज्यों के हिसाब से स्थिति बदली भी है। इससे पहले कई राज्यों में भाजपा ने जीत का परचम भी लहराया है।
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मोदी जैसे नेता अपनी कमजोरी से खुद के लिए खतरा बन सकते हैं
प्रधानमंत्री मोदी का करिश्मा 2017 के मध्य के बाद फीका पडऩा शुरू हो गया था। बात यह है कि बहस का मुद्दा खुला होगा या नहीं। वह चुनावों में कई ऐसे मुद्दों को लेकर खेलेंगे जो अब तक वह खेलते आए हैं। उनका करिश्मा राहुल गांधी की लोकप्रियता बढऩे के साथ ही घटना शुरू हो गया। राहुल गांधी कोई खास प्रतिभाशाली नेता नहीं मगर वह मोदी के सामने एक ‘चैलेंजर’ बनकर उभरे हैं। इस वर्ष राजनीतिक घटनाक्रम क्या रूप लेगा अभी किसी को मालूम नहीं है मगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी निश्चित तौर पर राहुल गांधी को एक विश्वसनीय नेता के रूप में उभारने में प्रभावी ढंग से भूमिका निभाएंगे। मोदी के लिए राहुल गांधी को विपक्ष के चेहरे के रूप में प्रधानमंत्री के दावेदार के तौर पर पेश नहीं करने की जरूरत होगी क्योंकि इतनी जल्दबाजी से मतदान की लड़ाई मोदी बनाम गांधी बन सकती है। भाजपा हरसंभव तरीके से राहुल गांधी की राजनीतिक परिपक्वता को लेकर उनका मजाक उड़ाएगी। मोदी बार-बार कांग्रेस नेतृत्व की खामियों को लेकर उन पर निशाना साध रहे थे जब वह क्षेत्रीय नेता से राष्ट्रीय नेता के रूप में उभर कर सामने आए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसे नेता अपनी कमजोरी से खुद के लिए खतरा बन सकते हैं। उनके मौजूदा स्टैंड को देखने के लिए हमें उनके अतीत को देखने की जरूरत है। 2013-14 में भाजपा की जीत के बारे में निश्चितता थी और अंतिम जीत की तालिका अटकलबाजी का विषय बन गई थी। तब कहा गया कि मोदी इसका विकल्प हैं। इसके विपरीत नाटकीय उलटफेर में मौजूदा राजनीतिक माहौल में यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि भाजपा 2014 की 282 सीटों के निकट प्राप्त कर सकती है। पार्टी की अधिक गिरावट की आशाओं को रोकना इसलिए जरूरी हो गया है क्योंकि उनकी संख्या अब महत्वपूर्ण रूप से ‘टीना’ (कोई विकल्प नहीं ) के पहलू पर निर्भर है।

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करिश्मे में गिरावट के रूप
मोदी के करिश्मे में गिरावट के सबूत मौजूदा परिस्थितियों में दिखाई देने लगे हैं। इसका पहला संकेत गुजरात में उस समय मिलना शुरू हो गया था जब प्रधानमंत्री की जनसभा से लोगों ने उठना शुरू कर दिया। 2014 के चुनावी माहौल में उनके सभा स्थलों पर मोदी-मोदी के नारे लगते थे और लोग अपने चेहरों पर मोदी के मुखौटे पहन कर आया करते थे, मगर अब यह सब अपशगुन बन गया है। 2018 में उनका करिश्मा फीका होने का सबूत बढ़ता गया जो धीमी गति में था। भाजपा अधिकांश चुनाव हार गई। वर्ष के अंत में अंतिम मुकाबला आ गया। भाजपा में मोदी के नाम पर प्रत्येक चुनाव जीतना एक रिवाज बन गया था। परिस्थिति यह हो गई कि उनके मनोनीत मुख्यमंत्री के दावेदारों को हार तक का सामना करना पड़ा। इन हिन्दी राज्यों में मोदी ब्रांड कोई काम नहीं कर पाया। पार्टी चुनाव हार गई। इन राज्यों में 2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने 200 सीटों पर विजय प्राप्त की थी। 2014 में मोदी की सभाओं में भारी संख्या में लोग आया करते थे। तब मनमोहन सरकार के खिलाफ सरकार विरोधी माहौल बन गया था। इसका लाभ मोदी और भाजपा ने खूब उठाया। इसमें मोदी के गुजरात मॉडल का भी खूब प्रचार किया गया जहां एक खिड़की प्रशासन पर जोर दिया गया। लोग इस तरफ काफी आकॢषत हुए। इसका कारण यह था कि मनमोहन सिंह ने गठबंधन की मजबूरियों के बारे में बयान दिया था और 2014 के चुनावों मेंं मोदी एक शक्तिशाली वक्ता के रूप में उभरकर सामने आए। लोगों को उनमें एक परिपक्व नेता की छवि दिखाई दी।

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मुश्किल काम
बाहरी होने का लाभ अब कोई बड़ी बात नहीं है। मतदाता आज किसी को दोषी नहीं ठहरा सकते। युवा मतदाताओं को अतीत के गठबंधन के बारे में प्रत्यक्ष रूप से याद कम ही है। मोदी के करिश्मे का पुन: उजागर होना कठिन काम है। यह ङ्क्षहदुत्व के वोट बैंक और रियायतों पर निर्भर कर सकता है।

नोटबंदी और जी.एस.टी. जैसे फैसलों से मोदी सशक्त दिखाई देते हैं
हाल ही के विधानसभा चुनावों के संदर्भ में मोदी का करिश्मा साफ गिरता दिखाई देता है। प्रत्येक बार ऐसे करिश्मे कुछ ठोस आधार पर बनाए जाते हैं। लगातार वादे कई बार विनाशकारी साबित होते हैं। उत्तर प्रदेश में 2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा चरम सीमा पर दिखाई दी और विधानसभा चुनावों के दौरान लोगों में धारणा थी कि भगवा पार्टी अब वैसा जीत का सवाद नहीं चख पाएगी मगर यह उस समय गलत साबित हुआ जब विधानसभा के चुनाव परिणाम सामने आए। मोदी ने लोगों को गलत करार दिया। उनका करिश्मा कभी खत्म नहीं हुआ था। वास्तव में गुजरात में मोदी का करिश्मा हर दिन बढ़ता गया। उनका करिश्मा उनकी कड़ी मेहनत, वादे पूरे करना और लोगों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता से बना था। उनकी एक मजबूत राजनीतिक इच्छा और विजन है।

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मोदी भारतीय राजनीति में एक बड़ी घटना के रूप में उभरे
जब घोटालों के कारण समाचार पत्रों में हैडलाइन बनती थी, जब नीति वार्तालाप खोखली हो गई और हरेक बात नकारात्मक दिखाई दी तब मोदी एक आशा के रूप में उभर कर सामने आए। कुछ लोगों ने भाजपा के लिए ऐसे प्रभावशाली फतवे की भविष्यवाणी की थी। यह मोदी का ही दबदबा था कि चुनाव में उनकी पार्टी को जीत मिली। अधिकतर राज्यों में उनका राजनीतिक ग्राफ बढ़ा। मोदी ने नोटबंदी और जी.एस.टी. जैसे कई कठोर फैसलों का जुआ खेला। उसके बाद ऐसा दिखाई दिया कि वह मजबूत हो गए हैं। वह एक विजन वाले व्यक्ति हैं जो विपरीत परिस्थितियों को अवसरों में बदलने की क्षमता रखते हैं। वह एक साहसिक नेता हैं जो डोकलाम में चीन का मुकाबला कर सकते हैं और जो पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक कर दुनिया को अपना दबदबा दिखा सकते हैं।

बदलाव पर जोर
भ्रष्टाचार मुक्त सरकार उपलब्ध करवाने के अपने प्रयासों से मोदी ने उच्चतम पदों पर भ्रष्टाचार को अतीत की बात बनाकर रख दिया है। उनकी सरकार ने अति गरीब लोगों के जीवन स्तर में बदलाव पर जोर दिया। उनकी जनकल्याणकारी योजनाओं प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना, डायरैक्ट बैनिफिट ट्रांसफर, स्वच्छ भारत अभियान, जनधन योजना और मुद्रा योजना से देश में बड़ा बदलाव आया है। देहात की तरफ ज्यादा ध्यान दिया गया और बड़ा बजट रखा गया। 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करना सरकार का लक्ष्य है। इसके अतिरिक्त आयुष्मान भारत, मिशन इंद्रधनुष और प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना से लोगों को लाभ मिला है। यहां तक कि मोदी के विरोधियों ने भी उनके करिश्मे को माना और जनता में उनकी अपील प्रभावशाली होने लगी। उन्होंने अपने लिए भी पाबंदी लगाई। उन्होंने लोगों की आशाओं को पूरा करने के लिए हरसंभव काम किया और निर्धारित समय से पहले लक्ष्यों को पूरा किया। मुख्यमंत्री के रूप में गुजरात का उत्थान किया। गुजरात एक शाइङ्क्षनग उदाहरण बन गया। प्रधानमंत्री के रूप में भी वह प्रभाव छोड़ रहे हैं। नीति निर्धारण से लेकर सुशासन तक उनका दबदबा रहा है।

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मोदी की लोकप्रियता में गिरावट आई है मगर सभी राज्यों में ऐसा नहीं
निश्चित रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता में गिरावट आई है, लेकिन ऐसा सभी राज्यों में नहीं है। राज्य से राज्य तक उनकी लोकप्रियता जगह-जगह बदली है। मई 2018 में हुए कई सर्वेक्षणों के मुताबिक मोदी की लोकप्रियता में पिछले एक साल में कमी आई है जो 2014 के मुकाबले 3 प्रतिशत कम होकर 33 प्रतिशत पर पहुंच गई है। हाल ही के विधानसभा चुनावों में 3 राज्यों छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में भाजपा की हार केवल यह बताती है कि उनकी लोकप्रियता में और गिरावट आई है। मोदी को वोट देने वालों ने उनसे सकारात्मक बदलाव लाने और देश को विकास के रास्ते पर ले जाने की अपेक्षा की। लोगों को अधिक नौकरियों के निर्माण की उम्मीद थी, जिसके परिणामस्वरूप देश के लिए तेजी से आॢथक विकास हुआ। भाजपा की जीत के बाद के 2 वर्षों में मोदी की लोकप्रियता में काफी वृद्धि हुई। यह लोगों का उनके प्रति बढ़ते विश्वास का स्पष्ट संकेत था लेकिन पिछले एक साल में परिस्थितियां बदल गई हैं।

आइए, इसे पूरे प्रदेश और राज्यों के हिसाब से देखें-
लोकप्रियता एक शिखर पर

पूर्वोत्तर राज्यों में मोदी के करिश्मे में उल्लेखनीय गिरावट नहीं देखी गई, केवल आंशिक रूप से क्योंकि कांग्रेस ने इन राज्यों में कई दशकों तक शासन किया। आंशिक रूप से बदलाव की इच्छा है। इन क्षेत्रों में मोदी अपेक्षाकृत नए हैं। असम में 2018 की शुरूआत में मोदी का करिश्मा शिखर पर था। ओडिशा में 2014 से उनकी लोकप्रियता में तेजी से वृद्धि हुई है। पश्चिम बंगाल में मोदी की लोकप्रियता में न केवल वृद्धि हुई है बल्कि वह मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस के समक्ष मुख्य चुनौतीकत्र्ता के रूप में उभरे हैं। वहां की कांग्रेस को तीसरे स्थान पर रखा गया है। सर्वेक्षणों के मुताबिक बिहार में मोदी की लोकप्रियता बढ़ रही है। 2014 में 46 प्रतिशत से मई 2018 में 56 प्रतिशत तक बढ़ी है।

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लोकप्रियता निरंतर रही है
राजस्थान जहां हाल ही के विधानसभा चुनावों में भाजपा हार गई, दिल्ली, हरियाणा और गुजरात में मोदी की लोकप्रियता न केवल यथोचित रूप से शिखर पर रही है बल्कि पिछले साढ़े 4 वर्षों में भी यह लगातार बनी रही है। हरियाणा में मोदी का राष्ट्रीय नेतृत्व संदेह में कहीं नहीं है।


लोकप्रियता कम हुई
कुछ राज्यों में तस्वीर अलग है। उत्तर प्रदेश में सर्वेक्षणों ने उनकी लोकप्रियता में भारी गिरावट का संकेत दिया है। अप्रैल 2017 में 56 प्रतिशत से 35 प्रतिशत तक। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि यह लोकसभा चुनाव से पहले अप्रैल-मई 2014 में उनकी लोकप्रियता की रेटिंग से कम है। मध्य प्रदेश, झारखंड, महाराष्ट्र और पंजाब में उनकी लोकप्रियता में इसी तरह की गिरावट है। सबसे खतरनाक गिरावट आंध्र प्रदेश में है, जहां मोदी को 2014 में 56 प्रतिशत मतदाताओं द्वारा सबसे उपयुक्त प्रधानमंत्री के तौर पर उम्मीदवार माना गया था। अब यह घटकर 20 प्रतिशत रह गया है। तेलंगाना ने भी उनकी लोकप्रियता में उल्लेखनीय गिरावट देखी है। 2014 में 33 प्रतिशत से मई 2018 में 17 प्रतिशत तक। तमिलनाडु में तस्वीर अलग नहीं है। दक्षिण में कर्नाटक एकमात्र अपवाद है जहां मोदी की लोकप्रियता बरकरार है।

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